क्या हैं जम्मू-कश्मीर से जुड़े दो बिल, जिसपर संसद में कटा हंगामा, घाटी और कश्मीरी पंडितों को इससे क्या फायदा?
अनुच्छेद 370 के हटाने के बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार राज्य में फिर से एक बड़ा बदलाव करने जा रही है। इस बाबत सरकार ने दो विधेयक लोकसभा में मंगलवार 5 दिसंबर को पेश किए, जोकि बुधवार 6 दिसंबर को लंबी चर्चा के बाद पास हो गए। आइए समझते हैं कि क्या हैं ये दोनों विधेयक-
नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर की स्थिति को पूरी तरह से बदलने की ठान ली है। साल 2019 में धारा-370 हटाने के बाद अब केंद्र सरकार ने फिर एक बड़ा कदम उठाया है। केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में आरक्षण और पुनर्गठन को लेकर दो प्रस्ताव लेकर आई। मंगलवार को इसे लोकसभा में पेश किया गया। निचले सदन में इसे लेकर दो दिनों तक चर्चा हुई। इस दौरान जमकर हंगामा भी हुआ। लेकिन बुधवार को इसे ध्वनि मत से पारित कर दिया गया।
जानिए क्या हैं दोनों बिल?
लोकसभा ने बुधवार 6 दिसंबर को जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 और जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023 पारित कर दिए। सरकार ने सदन में बिल पेश करते हुए बताया कि विधेयक वर्षों से अधिकारों से वंचित विस्थापितों और सम्मान के लिए लड़ रहे वर्ग को ओबीसी के तहत आरक्षण देने के लिए लाया गया है। इसके साथ ही इससे राज्य की राजनीतिक भेदभाव को भी खत्म किया जा सकेगा।
जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023
सरकार की तरफ से संसड में पेश जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 से घाटी में आरक्षण का रूप बदला जाएगा। यह बिल जम्मू और कश्मीर आरक्षण अधिनियम, 2004 में संशोधन करता है। अधिनियम अनुसूचित जाति जातियां, अनुसूचित जनजातियां और अन्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के सदस्यों को नौकरियों और व्यावसायिक संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण प्रदान करता है।
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023
वहीं जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023 जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में संशोधन करता है। 2019 अधिनियम ने जम्मू और कश्मीर विधानसभा में सीटों की कुल संख्या 83 तय करने के लिए 1950 अधिनियम की दूसरी अनुसूची में संशोधन किया था। इसमें अनुसूचित जाति के लिए छह सीटें आरक्षित की गईं थी। अनुसूचित जनजाति के लिए कोई सीट आरक्षित नहीं की गई। वहीं इस बिल में सीटों की कुल संख्या बढ़ाकर 90 कर दी गई है। यह अनुसूचित जाति के लिए सात सीटें और अनुसूचित जनजाति के लिए नौ सीटें भी आरक्षित करता है।
इसके साथ ही अब जम्मू-कश्मीर का उपराज्यपाल कश्मीरी प्रवासी समुदाय से अधिकतम दो सदस्यों को विधानसभा में नामांकित कर सकते हैं। नामांकित सदस्यों में से एक महिला होनी चाहिए। विधेयक में यह भी कहा गया है कि उपराज्यपाल पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के विस्थापितों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक सदस्य को विधान सभा में नामित कर सकते हैं।
क्यों लाए गए ये दोनों विधेयक?
लोकसभा में इन दोनों बिलों को लेकर हुई चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में आतंकवाद की वजह से लोगों ने बहुत कुछ सहा है। तमाम लोगों को अपने घर और व्यवसाय छोड़कर भागना पड़ा। वह आज भी विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार इन दो विधेयकों के जरिए उन्हें उनका खोया हुआ सम्मान और अधिकार देना चाहती है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के दौर में राज्य से 46 हजार 631 परिवार विस्थापित हुए थे। इसके अलावा पाकिस्तान के साथ हुए युद्धों के दौरान 41 हजार 844 परिवार विस्थापित हुए थे। अमित शाह ने कहा कि सरकार का प्रयास इन्हीं परिवारों के लिए है।