Explainer: भारत के "अटल" इरादों का नगमा और हौसलों की कहानी है चंद्रयान-1 से 3 की यात्रा, दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग वाला होगा पहला देश!
देश के पूर्व प्रधानमंत्री व भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई ने सबसे पहले मिशन मून की शुरुआत की थी। अगस्त 2003 में पूर्व पीएम ने मून मिशन का ऐलान किया और अब 20 वर्षों में तीसरा चंद्रयान चांद के सफर पर है। अगर लैंडर सफल रहा तो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला भारत दुनिया का पहला देश हो जाएगा।
Chandrayaan-3 : भारत का चंद्रयान-3 अपने "अटल" इरादों के साथ चांद के सफर पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद (इसरो) के वैज्ञानिकों के अनुसार 23 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर इसके सॉफ्ट लैंडिंग करने की योजना है। बता दें कि 14 जुलाई 2023 को चंद्रयान-3 ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चांद के लिए उड़ान भरी थी। एलवीएम3-एम4 रॉकेट के जरिए चंद्र मिशन-‘चंद्रयान-3’ का सफल प्रक्षेपण किया गया है। अब यह 41 दिन की अपनी यात्रा में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर एक बार फिर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ का प्रयास करेगा, जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंच पाया है। अगर ऐसा हुआ तो भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश हो जाएगा।
वैसे तो अभी तक चांद की सतह पर अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ और चीन ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कर चुके हैं, लेकिन उनकी ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर नहीं हुई है। इसके अलावा अगर इसरो चंद्रयान-3 मिशन लैंडर को उतारने में सफल हो जाता है, तो अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ के बाद भारत चंद्र सतह पर ‘सॉफ्ट-लैंडिंग’ की तकनीक में महारत हासिल करने वाला चौथा देश बन जाएगा। इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि एजेंसी ने 23 अगस्त को भारतीय समयानुसार शाम 5.47 बजे चंद्रमा की सतह पर "तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण" सॉफ्ट-लैंडिंग की योजना बनाई है।
भारत के "मिशन मून" का इतिहास (चंद्रयान-1 से 3 तक)
देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई ने सबसे पहले चांद पर पहुंचने का सपना देखा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपने अटल इरादों के साथ पहली बार 15 अगस्त 2003 को चंद्रयान कार्यक्रम की घोषणा की थी। इसके बाद इसरो ने पहली बार 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी। आठ नवंबर 2008 चंद्रयान-1 ने प्रक्षेपवक्र पर स्थापित होने के लिए चंद्र स्थानांतरण परिपथ (लुनर ट्रांसफर ट्रेजेक्ट्री) में प्रवेश किया। इसके साथ ही 14 नवंबर 2008 को चंद्रयान-1 चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव के समीप दुर्घटनाग्रस्त हो गया, लेकिन उसने चांद की सतह पर पानी के अणुओं की मौजूदगी की पुष्टि की। इसके बाद इसरो ने 28 अगस्त 2009 को चंद्रयान-1 कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा कर दी।
चंद्रयान-2
वर्ष 2009 में चंद्रयान-1 के बाद चंद्रयान-2 मिशन पर निकलने के लिए भारत को करीब 10 वर्ष लग गए। मंद गति से ही सही, लेकिन देश ने अपने इरादों को कमजोर नहीं होने दिया। इस बार फिर 22 जुलाई 2019 को वह दिन भी आया जब श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण किया गया। 20 अगस्त 2019 को चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया। इसके बाद बारी थी लैंडर विक्रम के चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की। मगर दो सितंबर 2019 को यह चंद्रमा की ध्रुवीय कक्षा में चांद का चक्कर लगाते वक्त लैंडर ‘विक्रम’ अलग हो गया, लेकिन चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर लैंडर का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया। लैंडर भले ही विफल हो गया, लेकिन चांद की कक्षा में अंतरिक्ष यान के पहुंच जाने से भी भारत ने बहुत कुछ हासिल कर लिया। वह इसरो को चांद की समय-समय पर अलग-अलग तस्वीरें भेजता रहा। इससे भारत को चंद्रयान-3 लांच करने में बहुत मदद मिली।
चंद्रयान-3 : भारत का चंद्रयान-3 श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 14 जुलाई 2023 को चांद के सफर पर रवाना हो गया है। इसरो के वैज्ञानिकों ने आगामी 23 अगस्त को चांद की सतह पर इसके सॉफ्ट लैंडिंग की योजना बनायी है, जिससे भारत इस उपलब्धि को हासिल करने वाले देशों की फेहरिस्त में शामिल हो जाएगा। चंद्रयान-3 इस दौरान 41 दिन की का सफर तय करेगा। इसके बाद वह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर एक बार फिर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ का प्रयास करेगा, जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंच पाया है। यदि इस बार चंद्रयान-3 लैंडर को उतारने में सफल हो जाता है, तो अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ के बाद भारत चंद्र सतह पर ‘सॉफ्ट-लैंडिंग’ की तकनीक में महारत हासिल करने वाला चौथा देश बन जाएगा। जबकि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बनकर पूरे तिरंगा फयहराएगा। इससे पहले चंद्रयान-2 सात सितंबर 2009 को‘सॉफ्ट लैंडिंग’का प्रयास करते इसका लैंडर 'विक्रम' ब्रेकिंग प्रणाली में विसंगतियों के कारण चंद्रमा की सतह पर गिर पड़ा था।
दक्षिणी ध्रुव पर ही क्यों जा रहा चंद्रयान-3
इसरो के वैज्ञानिकों के अनुसार भारत चंद्रमा की सतह पर सभी भूभौतिकीय, रासायनिक विशेषताओं के लक्ष्य को लेकर काम कर रहा है। अभी तक कोई भी देश चांद के दक्षिणी ध्रुव तक नहीं किया गया है। किसी ने भी चंद्रमा की सतह पर तापीय विशेषताओं का परीक्षण नहीं किया है जो इसरो इस मिशन में करेगा। चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र पर्यावरण और इससे उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों के कारण बहुत अलग भूभाग हैं और इसलिए अज्ञात बने हुए हैं। चंद्रमा पर पहुंचने वाले पिछले सभी अंतरिक्ष यान भूमध्यरेखीय क्षेत्र में, चंद्र भूमध्य रेखा के उत्तर या दक्षिण में कुछ डिग्री अक्षांश पर उतरे थे। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र का अध्ययन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके आसपास स्थायी रूप से अंधेरे वाले क्षेत्रों में पानी की मौजूदगी की संभावना हो सकती है।
615 करोड़ की लागत से चांद पर चला चंद्रयान-3
चंद्रयान-3 को सिर्फ 615 करोड़ की लागत से तैयार किया गया। जबकि चंद्रयान-2 पर करीब 978 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। वहीं चंद्रयान-1 को 386 करोड़ की लागत पर लांच किया गया था। इस लिहाज से चंद्रयान-2 बेहद किफायती कहा जा रहा है। इसरो ने कहा कि चंद्रयान-3 में एक स्वदेशी प्रणोदन मॉड्यूल, लैंडर मॉड्यूल और एक रोवर शामिल है, जिसका उद्देश्य अंतर-ग्रहीय अभियानों के लिए आवश्यक नई तकनीकों को विकसित करना और प्रदर्शित करना है। इसमें एलवीएम3-एम4 रॉकेट अपनी श्रेणी में सबसे बड़ा और भारी है जिसे वैज्ञानिक 'फैट बॉय' या ‘बाहुबली’ कहते हैं। इसरो के वैज्ञानिकों ने कहा कि वांछित ऊंचाई पर पहुंचने के बाद लैंडर मॉड्यूल चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के लिए उतरना शुरू कर देगा। अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, एलवीएम3एम4 रॉकेट सफलतापूर्वक छह जटिल अभियानों को अंजाम दे चुका है। यह भारतीय और अंतरराष्ट्रीय ग्राहक उपग्रहों को ले जाने वाला सबसे बड़ा एवं भारी प्रक्षेपण यान भी है।
चांद और पृथ्वी इस वर्ष होंगे करीब, चंद्रयान लिखेगा भारत का नसीब
वैज्ञानिकों के अनुसार 2023 में चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण का कारण यह है कि वर्ष में इस अवधि के दौरान पृथ्वी और चंद्रमा एक-दूसरे के करीब होंगे। लैंडर की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के बाद इसके भीतर से रोवर बाहर निकलेगा और चंद्र सतह पर घूमते हुए अपने उपकरण-एपीएक्सएस-एल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर की मदद से अन्वेषण कार्य को अंजाम देगा। यह चंद्र सतह की रासायनिक संरचना और खनिज संरचना के बारे में समझ बढ़ाने संबंधी कार्य करेगा। रोवर की अभियान अवधि एक चंद्र दिवस (धरती के 14 दिन) के बराबर होगी। चंद्रयान-3 अपने साथ विभिन्न उपकरण ले गया है जो चंद्रमा की मिट्टी से संबंधित समझ बढ़ाने और चंद्र कक्षा से नीले ग्रह की तस्वीरें लेने में इसरो की मदद करेंगे। उपकरणों में ‘रंभा’ और ‘इल्सा’ भी शामिल हैं, जो 14-दिवसीय मिशन के दौरान सिलसिलेवार ढंग से ‘पथ-प्रदर्शक’ प्रयोगों को अंजाम देंगे।
रंभा और इल्सा करेंगे चांद की खोदाई
रंभा और इल्सा उपकरण चंद्रमा के वायुमंडल का अध्ययन करने के साथ इसकी खनिज संरचना को समझने के लिए सतह की खुदाई करेंगे। लैंडर ‘विक्रम’ तब रोवर ‘प्रज्ञान’ की तस्वीरें लेगा जब यह कुछ उपकरणों को गिराकर चंद्रमा पर भूकंपीय गतिविधि का अध्ययन करेगा। लेजर बीम का उपयोग करके, यह प्रक्रिया के दौरान उत्सर्जित गैस का अध्ययन करने के लिए चंद्र सतह के एक टुकड़े ‘रेजोलिथ’ को पिघलाने की कोशिश करेगा। चंद्रमा पर कोई वायुमंडल नहीं है, लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है। क्योंकि इससे गैस निकलती हैं। वे आयनित हो जाती हैं और सतह के बहुत करीब रहती हैं। यह दिन और रात के साथ बदलता रहता है।" लैंडर के साथ लगा उपकरण ‘रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फियर एंड एटमॉस्फियर (रंभा) चंद्र सतह के नजदीक प्लाज्मा घनत्व और समय के साथ इसके बदलाव को मापेगा।
पानी के साथ चांद पर जीवन की होगी खोज
चंद्रयान-3 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी खोजने के साथ सतह पर जीवन की संभावना भी तलाशेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार ‘लेजर-इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप’ (लिब्स) लैंडिंग स्थल के आसपास चंद्र मिट्टी और चट्टानों की मौलिक संरचना का पता लगाएगा, जबकि ‘अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर’ (एपीएक्सएस) चंद्र सतह की रासायनिक संरचना और खनिज संरचना संबंधी अध्ययन करेगा। ‘स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ’ (शेप) नामक उपकरण निकट-अवरक्त तरंगदैर्ध्य रेंज में अध्ययन करेगा, जिसका उपयोग सौर मंडल से परे जीवन की खोज में किया जा सकता है। लैंडर का चंद्र सतह पर उतरने का समय काफी मायने रखता है, क्योंकि इससे उपकरणों के अध्ययन करने की अवधि का निर्णय होता है। चंद्रयान-3 अपने लैंडर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास 70 डिग्री अक्षांश पर उतारेगा। चंद्रमा पर रात का तापमान शून्य से 232 डिग्री सेल्सियस नीचे तक गिर जाता है। सोमनाथ ने कहा, "तापमान में भारी गिरावट आती है और प्रणाली के रात के उन 15 दिनों तक बरकरार रहने की संभावना को देखना होगा। यदि यह उन 15 दिनों तक बरकरार रहती है और नए दिन की सुबह होने पर बैटरी चार्ज हो जाती है, तो यह संभवतः अंतरिक्ष यान के जीवन को बढ़ा सकता है।"
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