Explainer: 10 प्वाइंट में समझिए कांग्रेस-सपा का गठबंधन आखिर क्यों अखिलेश यादव के लिए है घाटे का सौदा
Explainer: यूपी में सपा-कांग्रेस के बीच गठबंधन होने से किसको सबसे ज्यादा फायदा होगा। आइए 10 प्वाइंट में जानते हैं।
नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस के बीच गठबंधन होने से किसको सबसे ज्यादा फायदा होगा। इसकी चर्चा हर तरफ की जा रही है। इंडिया गठबंधन के तहत सपा यूपी में कांग्रेस को 17 सीटें देने को तैयार हुई है जबकि कांग्रेस मध्य प्रदेश की खुजराहो लोकसभा सीट सपा को देगी। आइए 10 प्वाइंट में समझते हैं इस गठबंधन से सपा और कांग्रेस में से कौन सबसे ज्यादा फायदे में है और किसे नुकसान उठाना पड़ सकता है।
1-कांग्रेस हैसियत से ज्यादा सीटें पा गई
यूपी में कांग्रेस अमेठी और रायबरेली के अलावा कहीं भी बीजेपी के मुकाबले नजर नहीं आती। वर्तमान समय में रायबरेली की सीट ही कांग्रेस के पास है। प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार लगातार गिर रहा है। यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें ही मिली थी। वो भी रायबरेली और अमेठी बिल्कुल भी खाता नहीं खुला। इस हिसाब से आकलन करें तो कांग्रेस की राजनीतिक हैसियत लोकसभा सीटों से ज्यादा नहीं थी। ऐसे में सपा कांग्रेस को 17 सीटें देकर खुद का ही नुकसान कर बैठी। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सपा पहले भी अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीटों पर मदद करती रही है। गांधी परिवार के खिलाफ सपा वैसे भी उम्मीदवार खड़ा नहीं करती। ऐसे में 15 सीटें अतिरिक्त मिलने से कांग्रेस फायदे में है। कुछ लोगों का यहां तक कहना है कि कांग्रेस को 17 सीटें देकर सपा कम से कम 15 सीटें पहले ही हार गई।
2-सपा जिन पर मजबूत थी वह सीट कांग्रेस के खाते में गई
यूपी में कांग्रेस रायबरेली, अमेठी, कानपुर नगर, फतेहपुर सिकरी, बांसगांव, सहारनपुर, प्रयागराज, महराजगंज, वाराणसी, अमरोहा, झांसी, बुलंशहर, गाज़ियाबाद, मथुरा, सीतापुर , बाराबंकी, देवरिया लोकसभा सीट पर लड़ेगी। अमेठी और रायबरेली के अलावा कांग्रेस की अपेक्षा सपा अन्य सीटों पर ज्यादा मजबूत है। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में रायबरेली में सपा चार सीटें जीती थी तो अमेठी में तीन सीटों पर सफलता मिली थी। प्रयागराज, सहारपुर, बांसगांव, अमरोहा, वाराणसी, बाराबंकी और महराजगंज में अगर सपा अपने उम्मीदवार उतारती तो कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी उम्मीदवारों का मजबूती से टक्कर देती। इन सीटों में से कुछ पर सपा जीत भी सकती थी। ऐसे में कांग्रेस वो सीट भी सपा से हथिया ली जहां पर वह अपेक्षाकृत कमजोर है। मिली जानकारी के अनुसार, यूपी में कांग्रेस कम से कम 21 सीटें चाहती थी लेकिन सपा 10 से ज्यादा देने को तैयार नहीं थी। 17 सीटें मिलने का मतलब यह हुआ कि कांग्रेस ने जो चाहा वो हासिल कर लिया।
3-कांग्रेस का संगठन बेहद कमजोर
यूपी में ज्यादातर विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस का संगठन भी बेहद कमजोर है। ऐसे में सपा को बाकी की 63 सीटें पर कांग्रेस के संगठन का लाभ मिलेगा इसकी उम्मीद न के बराबर लगती है। क्योंकि जब संगठन ही मजबूत नहीं होगा तो सपा को कांग्रेस कितना मदद कर पाएगी यह सोचने वाली बात है। पहले भी कांग्रेस से गठबंधन का लाभ सपा को नहीं मिला है। सपा भी यह जानती है कि उसे कांग्रेस से ज्यादा उम्मीद नहीं है।
4-कांग्रेस का वोटबैंक सपा को ट्रांसफर होगा इसमें दुविधा है
कांग्रेस का पुराना वोटबैंक ब्राह्मण-मुस्लिम और सामान्य वर्ग के मतदाताओं को माना जाता है। मुस्लिम मतदाता पहले से ही सपा के वोटबैंक रहें हैं। कांग्रेस के वोटर माने जाने वाले ब्राह्मण और अन्य जातियों के लोग सपा उम्मीदवारों को वोट देंगे इसकी उम्मीद बहुत कम है। जहां पर सपा का उम्मीदवार होगा वहां पर ब्राह्मण और सामान्य वर्ग के मतदाता बीजेपी को वोट कर सकते हैं। वहीं, सपा के वोटर माने जाने वाले यादव और अन्य पिछड़ी जातियां कांग्रेस को वोट करेंगी इसमें भी दुविधा है। क्योंकि बीजेपी के कई नेता यादव हैं और यूपी में बीजेपी सपा के वोटबैंक में सेंध लगाने की हर मुमकिन कोशिश में है। ऐसे में सपा-कांग्रेस का गठबंधन कितना कामयाब होगा यह तो समय ही बताएगा।
5-गठबंधन से कांग्रेस को ज्यादा फायदा
यूपी में मुस्लिम मतदाता पहले से ही सपा और बसपा को वोट देते रहे हैं। बसपा के कमजोर होने के बाद मुस्लिम वोटरों का रूझान सपा की तरफ ज्यादा बढ़ा है। अगर कांग्रेस के बिना सपा मैदान में उतरती तो भी मुस्लिमों का वोट उसे मिलता। यानी कांग्रेस अब सपा के वोटरों के साथ मुस्लिमों का भी वोट हासिल करने की कोशिश करेगी। अगर सपा के वोटर जैसे यादव और अन्य जातियां कांग्रेस को वोट देंगी तो वह कई सीटों पर बीजेपी को फाइट देने की स्थिति में अच्छी तरह होगी। सपा से गठबंधन करके कांग्रेस को ठीक वैसे ही फायदा मिल सकता है जैसे कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा को मिला था। लेकिन सपा को बसपा के वोट नहीं मिले।
6-सपा की सीटें हो सकती हैं कम
अखिलेश यादव के साथ भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर समेत अन्य छोटी-छोटी पार्टियों के नेता हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि छोटियां पार्टियों को भी कुछ सीटें सपा दे सकती है। अभी हाल में ही राजा भैया की पार्टी से भी सपा की नजदीकी बढ़ी है। सपा को राजा भैया के लिए प्रतापगढ़ समेत कुछ सीटें छोड़नी पड़ सकती है। वहीं, अपना दल कमेरावादी भी सपा से कुछ सीटें लेना चाहेगी। हालांकि पल्लवी पटेल सपा से नाराज चल रही हैं।
7- पार्टी के नेताओं को संभालना बड़ी चुनौती
समाजावादी पार्टी ने जिन 17 सीटें कांग्रेस को दी है उनमें से कुछ सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान भी कर दिया है। जबकि कुछ सीटों पर सपा के संभावित उम्मीदवार भी क्षेत्र में लगातार एक्टिव थे। ऐसे में कुछ नेता नाराज होकर किसी दूसरी पार्टी में भी जा सकते हैं। अखिलेश के लिए पार्टी टूटने से बचाने की बड़ी चुनौती होगी।
8- महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में सपा की उम्मीदों पर पानी फिरा
सपा प्रमुख अखिलेश यादव सीट शेयरिंग में कांग्रेस से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से भी कुछ सीटें चाहते थे। खजुराहो के अलावा कांग्रेस ने सपा को और कहीं से भी सीटें नहीं दी। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में सपा की राजनीतिक पावर ठीक वैसे ही है जैसे की यूपी में कांग्रेस की है।
9- चुनाव बाद सपा को अन्य दलों से मिल चुका है धोखा
कांग्रेस और सपा का गठबंधन लोकसभा चुनाव के बाद भी बरकरार रहेगा यह तो समय बताएगा लेकिन अभी तक सपा ने जिससे भी गठबंधन किया वोट ज्यादा समय तक टिक नहीं पाया। चाहे ओम प्रकाश राजभर की पार्टी हो या फिर बसपा और जयंत चौधरी की पार्टी। चुनावी लाभ लेने के बाद सभी ने सपा का साथ छोड़ दिया।
10- बीजेपी को मिलेगा सपा को टारगेट करने का मौका
चुनावी रैलियों में कांग्रेस नेताओं के साथ अखिलेश यादव के प्रचार करने से कितना लाभ मिलेगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन बीजेपी अपने पुराने अंदाज में सपा-कांग्रेस को टारगेट करने से नहीं चूकेगी। बीजेपी हमेशा से कांग्रेस के भ्रष्टाचार के मुद्दे को जनता के बीच उठाती रही है।