Explainer: 'वोट के बदले नोट' पर सुप्रीम कोर्ट ने पलटा 26 साल पुराना फैसला, क्या कहता है नया कानून?
वोट के बदले नोट मामले में 26 साल पुराने फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है। इसके तहत अब अगर भ्रष्टाचार करते हुए कोई विधायक या सांसद पाया जाता है तो उसके खिलाफ मुकदमा किया जा सकेगा।
विधानसभा हो लोकसभा दोनों ही जगहों पर राजनीति खूब खेली जाती है। कभी चुनाव से पहले तो कभी चुनाव के बाद विधायकों की खरीद-फरोख्त की खबर आती है तो कभी ये कहा जाता है कि किसी विधायक या सांसद ने पैसे लेकर सदन में भाषण दिया। बीते दिनों सदन में पैसे और उपहार लेकर टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने सवाल पूछा था। इस मामले में संसद की कमेटी ने महुआ मोइत्रा को दोषी पाया, जिसके बाद महुआ मोइत्रा को संसद से निष्कासित कर दिया गया। लेकिन सोचने वाली बात है कि भारत में हम जिस लोकतंत्र का दंभ भरते हैं, वहां एक सांसद या विधायक के ऊपर पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में केस नहीं चल सकता। क्योंकि वह सांसद है और विधायक है इसलिए? लेकिन मुद्दा तो ये भी है कि वह एक जनप्रतिनिधि है और उसने भ्रष्टाचार किया तथा संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाया। लेकिन अब ऐसा नहीं चलने वाला है। क्योंकि वोट के बदले नोट के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है।
वोट के बदले नोट पर सुप्रीम फैसला
अपनी सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 26 साल पुराने उस फैसले को पलट दिया है, जिसमें वोट के बदले नोट के तहत सांसदों को किसी भी कानूनी कार्रवाई से राहत मिली हुई थी। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने इस मामले पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाया है। अब अगर सांसद पैसे लेकर सदन में भाषण या वोट देते हैं तो उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से मामले की सुनवाई के दौरान संविधान के अनुच्छेद 105 का हवाला दिया गया। कोर्ट ने कहा कि किसी को घूसखोरी की कोई छूट नहीं है। रिश्वत लेकर वोट देने पर अभियोजन को छूट नहीं दी जाएगी।
क्या है इसके पीछे की कहानी
इस मामले की सुनवाई कर रहे सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम पीवी नरसिम्हा राव मामले में आए फैसले से असहमत हैं। कोर्ट ने पीवी नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई मामले में आए फैसले को खारिज कर दिया है। बता दें कि 26 साल पहले यानी साल 1998 में सदन में वोट के बदले नोट मामले में सांसदों को मुकदमें से छूट दी गई थी। बता दें कि इस मामले पर सुनवाई करते हुए पांच जजों की पीठ ने तब पाया कि सांसदों को अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) के तहत सदन के अंदर दिए गए किसी भी भाषण और वोट के बदले आपराधिक मुकदमे से छूट है। संसद और विधानसभा में सांसदों और विधायकों को कुछ विशेषाधिकार दिए गए हैं।
कोर्ट ने वोट के बदले नोट मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि विधायकों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देती है। बता दें कि साल 1998 में 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने 3:2 के बहुमत से तय किया था कि वोट के बदले नोट जैसे मामले में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। लेकिन अब यह फैसला पलट चुका है। साधारण भाषा में अगर समझाएं तो अब से यदि कोई भी सांसद या विधायक घूसखोरी या पैसे और गिफ्ट लेकर सदन में कुछ भी सवाल पूछता नजर आया तो उसके खिलाफ कानूनी प्रक्रिया की जा सकती है।
सांसदों और विधायकों पर चल सकेगा मुकदमा
इसी के तहत चीफ जस्टिस ने कहा कि हमने इस बारे में सभी पहलुओं पर निर्णय लिया और विचार किया है कि क्या सांसदों को इससे छूट मिलनी चाहिए? हम इस बात से असहमत हैं। इसलिए बहुमत से इसे खारिज करते हैं। उन्होंने कहा कि हमने पी नरसिम्हा राव मामले में फैसले को खारिज कर दिया है। ऐसे में कोर्ट के फैसले के आने के बाद यदि कोई सांसद संसद में पैसे लेते या भ्रष्टाचारी साबित होता है तो उसके खिलाफ मुकदमा किया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो सांसदों और विधायकों की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी।