नहीं सुधरे तो आने वाली पीढ़ियां माफ नहीं करेंगी....हवा में घुलता जहर, जिम्मेदार कौन?
दिल्ली में हर साल इस मौसम में हवा जहरीली हो जाती है। सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इसे लेकर कई तरह के आदेश जारी करते हैं। ग्रैप-4 की पाबंदियां लागू की जाती हैं, स्कूल बंद कर दिए जाते हैं। क्या ये समस्या का समाधान है?
EXPLAINER: सोचकर देखिए तो क्या वक्त आ गया है, शुद्ध खाना नहीं, शुद्ध पानी नहीं, हवा भी जहरीली हो गई है। इंसान सांस भी ले तो फेफड़ों में प्रदूषित हवा जा रही है। ऐसे में आने वाली पीढ़ियों के लिए हम क्या संचित कर रख रहे हैं। क्या उन्हें साफ पानी, साफ हवा भी नसीब नहीं होगी? अगर यही हाल रहा तो आने वाले कुछ वर्षों में हमारे बच्चे शुद्ध हवा के लिए ऑक्सीजन का सिलेंडर पीठ पर लादकर चलेंगे। फेफड़ों की बीमारी हम आने वाली पीढ़ियों को उपहार में देंगे। हमने हाल के ही वर्षों में कोरोना जैसे वायरस का दंश झेला है लेकिन हम तब भी चेते नहीं हैं। हर साल इस मौसम में राष्ट्रीय राजधानी की हवा दमघोंटू हो जाती है, आदेश जारी होते हैं और बात फिर खत्म हो जाती है। इस साल भी अब ग्रैप -4 की पाबंदियां लागू की गई हैं, स्कूल बंद कर दिए गए हैं। बच्चे घर में कैद रहने को मजबूर हैं, स्कूल नहीं जा सकते, खेलने भी नहीं जा सकते। सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता व्यक्त की है और सरकारों को कड़ी फटकार लगाई है लेकिन क्या ये सब काफी है?
इसी मौसम में दिल्ली की हवा सबसे ज्यादा प्रदूषित क्यों होती है?
दिल्ली में प्रदूषण फैलाने का सबसे बड़ा योगदान मौसम का है। मानसून के बाद और ठंड से पहले पंजाब-हरियाणा की ओर से दिल्ली की तरफ चलने वाली हवा पाकिस्तान की तरफ से आती है जिसमें धूलकणों की मात्रा काफी ज्यादा होती है। सर्दियों में तापमान जब लगातार बदलता है तो ठंडी हवा के ऊपर गर्म हवा की परत बन जाती है जिससे वायु में फैले प्रदूषित तत्व सतह पर ही रुक जाते हैं। इस वजह से आपने ध्यान दिया होगा कि दिन में भी धुंध फैली रहती है और पेड़ों की पत्तियों पर धूलकण जमा हो जाते हैं और पत्तियां सफेद नजर आती हैं।
दिल्ली में हर साल पाबंदियां लागू की जाती हैं, नियम बनाए जाते हैं और बड़े-बड़े ऐलान भी होते हैं, कई तरह की तकनीक को लागू करने की बात कही जाती है लेकिन कुछ भी कारगर साबित नहीं होता है।बिगड़ती वायु गुणवत्ता को लेकर हर साल चिंता जताई जाती है। प्रबंधन को लेकर नियम भी बनाए जाते हैं और सुप्रीम कोर्ट भी निर्देश भी देता है, लेकिन स्थिति में सुधार नहीं होता।
तीन बड़े कारण जिससे प्रदूषित होती है दिल्ली की हवा
हवा के प्रदूषित होने को लेकर दिल्ली स्थित पर्यावरण थिंक टैंक 'सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट' (CSE) की एक नई स्टडी में कहा गया है कि दिल्ली के वायु प्रदूषण में पराली जलाने की भूमिका आठ प्रतिशत है।
दूसरा कारण गैस चैंबर बनाने में यहां वाहनों से निकलने वाले कार्बन उत्सर्जन की अनुमानित हिस्सेदारी करीब 13 प्रतिशत से 15 प्रतिशत तक है। दिल्ली में 10 साल से पुराने डीजल और 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध है, लेकिन वाहनों की नियमित जांच और कड़ी निगरानी का अभाव है।
तीसरा कारण बड़े पैमाने पर इस मौसम में होने वाले निर्माण कार्य हैं, जिससे धूल और धुएं का स्तर बढ़ता है।
क्लाउड सीडिंग या कृत्रिम बारिश से होगा फायदा?
दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश की सिफ़ारिश भी की गई है। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री को पत्र लिखकर कृत्रिम बारिश की कराने की मांग की है। बता दें कि आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने पिछले साल कृत्रिम बारिश का सफल प्रयोग किया था। साल 2019 में भी कृत्रिम बारिश की तैयारी भी की गई थी, लेकिन बादलों की कमी और ISRO की अनुमति न मिलने की वजह से यह मामला टल गया था।
क्या है कृत्रिम बारिश?
कृत्रिम बारिश को क्लाउड सीडिंग भी कहते हैं, इसमें बादलों में सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड, सूखी बर्फ़, तरल प्रोपेन, या नमक जैसे पदार्थों को इंजेक्ट किया जाता है। इससे बादल के अंदर की प्रक्रियाएं बदल दी जाती हैं और बारिश होती है। कृत्रिम बारिश के लिए अनुकूल मौसमी परिस्थिति का इंतज़ार करना होता है। एक बार कृत्रिम बारिश कराने में करीब 10 से 15 लाख रुपये का खर्च आता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सिर्फ़ बारिश से प्रदूषण खत्म नहीं होता।
वायु प्रदूषण कितना है खतरनाक
प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर हमारे फेफड़ों पर पड़ता है। भारत की स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर (SoGA) 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण भारत में हर दिन पांच साल से कम उम्र के 464 बच्चों की मौत हो रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चों की मौत का आंकड़ा तंबाकू और शुगर से होने वाली मौतों की संख्या से भी अधिक है। भारत की स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर के मुताबिक, साल 2021 में एयर पॉल्यूशन के कारण भारत में 169,400 बच्चों की मौत हुई थी, जिनकी पांच साल से कम उम्र थी।
जहरीली हवा में सांस लेने की वजह से स्ट्रोक, दिल का दौरा, डाइबिटीज़,फेफड़ों का कैंसर या फेफड़ों की बीमारी की आशंका बढ़ जाती है।
इसमें अस्थमा, फेफड़ों की समस्या, हृदय रोग, आंखों की रोशनी, आंखों में इंफेक्शन, फेफड़ों का कैंसर, मधुमेह और स्ट्रोक सहित कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
वायु प्रदूषण से बचने के लिए क्या करें?
वायु प्रदूषण से बचने के लिए बाहर निकलने से बचें। बाहर जा भी रहे हैं तो मास्क का उपयोग करें।
वायु गुणवत्ता की अनदेखी नहीं करें।
अपने खानपान पर खास ध्यान रखें।
अधिक से अधिक पानी पिएं, जिससे शरीर हाइड्रेट रहेगा और इम्यूनिटी भी स्ट्रांग रहेगी।
कम गाड़ी चलायें।
अपनी कार का अच्छे से रखरखाव करें।
जब आप इसका उपयोग नहीं कर रहे हों तो अपना इंजन बंद कर दें।
जहां तहां कूड़ा-कचरा ना जलाएं।
पेड़-पौधे लगाएं और उनकी देखभाल करें।