Explainer: भारत यात्रा पर आ रहे श्रीलंका के राष्ट्रपति विक्रमसिंघे, जानिए विद्रोह के बाद कितने बदले इस पड़ोसी देश के हालात?
श्रीलंका और भारत एकदूसरे के परंपरागत मित्र हैं। चीन भले ही श्रीलंका पर कितने डोरे डाले, भारत से श्रीलंका की दोस्ती अटूट है। यही कारण है कि भारत ने श्रीलंका के बुरे वक्त में उसकी मदद की। हालांकि इसी बीच श्रीलंका में पिछले साल हुए विद्रोह के बाद परिस्थितियां काफी बदली हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट।
Sri Lanka: श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे 20 जुलाई को दो दिन की भारत की यात्रा पर आ रहे हैं। भारत और श्रीलंका के बीच राजनयिक संबंधों के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में यह यात्रा दोनों देशों के संबंधों को और करीब लाएगी। ऐसे समय में जबकि राष्ट्रपति विक्रमसिंघे भारत की यात्रा कर रहे हैं, आइए जानते हैं कि श्रीलंका में सालभर पहले जो अराजकता का माहौल बना था, श्रीलंका कंगाली की हालत पर पहुंच गया, उसके बाद अब सालभर में श्रीलंका के हालात कितने बदल गए हैं। क्या श्रीलंका फिर आर्थिक रूप से खुद को पैरों पर खड़ा करने में सफल हो रहा है? जानिए पूरी रिपोर्ट।
जुलाई, 2022 में दुनिया ने श्रीलंका के भीतर जारी अराजकता को देखा था। तब प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के घरों पर कब्जा कर लिया था। मजबूरी में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को अपना पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद फिर से चुनाव कराए गए और रानिल विक्रमसिंघे श्रीलंका के राष्ट्रपति बने। श्रीलंका को तब अंतरराष्ट्रीय बैंकों ने तो आर्थिक सहायता दी ही, इसके अलावा भारत ने भी पड़ोसी धर्म अदा करते हुए श्रीलंका को आर्थिक 'सहारा' दिया।
श्रीलंका में बदले हालात, 30 फीसदी बढ़ी टूरिज्म इंडस्ट्री
श्रीलंका में विदेशी मुद्रा का मुख्य स्रोत पर्यटन है और ये भी अब पटरी पर लौट रहा है। पिछले साल के मुकाबले पर्यटन उद्योग 30 प्रतिशत बढ़ा है। ये सच है कि अभी भी श्रीलंका पर 80 अरब डॉलर से अधिक का कर्ज है। इसमें विदेशी और घरेलू कर्ज दोनों शामिल हैं। पिछले साल आए सबसे बुरे आर्थिक संकट के दौरान श्रीलंका पहली बार अपना विदेशी कर्ज नहीं चुका पाया था और डिफॉल्ट हो गया था। लेकिन इसके बावजूद श्रीलंका की अंतरराष्ट्रीय 'गुडविल' को देखते हुए कई देशों ने मदद की, वहीं अंतरराष्ट्रीय बैंकों ने भी 'सहायता' दी। देश को चलाने के लिए पाकिस्तान को जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय बैंकों, आईएमएफ जैसे संस्थानों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है, वैसी नौबत तब भी श्रीलंका को नहीं आई।
राष्ट्रपति बनते ही विक्रमसिंघे को IMF से मिले 2.9 अरब डॉलर
बहरहाल, श्रीलंका में सालभर पहले बुरे हालातों में जनता के प्रदर्शन के बाद पद छोड़ने वाले गोटबाया राजपक्षे के बाद रनिल विक्रमासिंघे ने देश की कमान संभाली। राष्ट्रपति विक्रमासिंघे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 2.9 अरब डॉलर का कर्ज लेने में कामयाब रहे। ये फंड निवेश के दूसरे रास्तों को खोलने और आपूर्ति संकट से राहत देने के लिए बेहद अहम रहा।आईएमएफ की शर्तों के तहत अब श्रीलंका घरेलू और विदेशी कर्जदारों की लेनदारी को फिर से गठित कर रहा है।
विदेशी कर्ज को रीस्ट्रक्चर करने पर मिला 36 अरब डॉलर
सबसे ज्यादा ध्यान 36 अरब डॉलर के विदेशी कर्ज को रीस्ट्रक्चर करने पर दिया जा रहा है। इसमें श्रीलंका को चीन से मिला 7 अरब डॉलर का कर्ज भी शामिल हैं। हालांकि घरेलू कर्ज को रीस्ट्रक्चर यानी पुनर्गठित करने का सबसे ज़्यादा असर श्रीलंका के आम लोगों पर होगा। श्रीलंका के कुल कर्ज का 50 फीसदी घरेलू स्तर पर लिया गया है। श्रीलंका पटरी पर आने की कोशिश कर रहा है,लेकिन महंगाई से अभी भी पार नहीं पा सका है।
सब्सिडी खत्म होने पर बिजली के बिल 65 फीसदी बढ़ गए
जरूरत की चीजें जरूर देश में उपलब्ध हैं, लेकिन लोगों की पहुंच से बाहर है। आम लोगों की जरूरत का सामान पहले से अधिक महंगा है। श्रीलंका के लगभग सभी परिवार इस समय अपनी कुल आय का लगभग 70 फीसदी सिर्फ भोजन की व्यवस्था पर ही खर्च कर रहे हैं। खाने का सामान, कपड़ा और घरेलू जरूरतों के सामान की कीमतें बढ़ती ही जा रही हैं। आर्थिक बोझ को और बढ़ाते हुए यहां आयकर 36 प्रतिशत तक पहुंच गया है। खाद्य सामग्री से लेकर घरेलू बिलों पर मिलने वाली सब्सिडी को भी हटा दिया गया है। इसका सबसे अधिक असर बिजली बिलों पर हुआ है। सब्सिडी ख़त्म होने के बाद बिजली बिल 65 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं।
श्रीलंका संकट में आया तो सालभर में बड़े पैमाने पर हुआ पलायन
वर्ल्ड बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है, 'अगले कुछ सालों में गरीबी के 25 प्रतिशत से ऊपर रहने का अनुमान है। इसका कारण घरेलू रोज़गारों के सामने पेश कई खतरे हैं।' वर्ल्ड बैंक ने श्रीलंका के बजट में मदद के लिए 70 करोड़ डॉलर से अधिक की आर्थिक मदद की है। इसमें 20 करोड़ डॉलर गरीबों और कमजोर वर्ग के लोगों के लिए हैं।
3 लाख से ज्यादा लोगों ने पिछले साल श्रीलंका छोड़ दिया
साल 2022 में 3 लाख 11 हजार 269 लोग श्रीलंका छोड़कर चले गए। श्रीलंका में इस पैमाने पर पलायान कभी नहीं हुआ है। इनमें बहुत से लोग कुशल श्रेणी के कर्मचारी जैसे डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ़ और तकनीकी क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं। इस पैमाने पर हो रहा ‘प्रतिभा पलायन’ देश की आर्थिक रिकवरी के रास्ते में बड़ा अवरोधक बन सकता है। आर्थिक संकट से उबरने की कोशिश कर रहे उद्योग कुशल श्रमिकों और कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं।