लद्दाख में भीषण ठंड, हाथ में तख्ती लिए सड़कों पर उतरे हजारों लोग, आखिर क्या है उनकी मांग?
लद्दाख में सैंकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए। लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और संवैधानिक सुरक्षा की मांग लेकर हजारों लोगों ने कड़ाके की ठंड के बीच लेह की सड़कों पर शनिवार को मार्च निकाला।
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पारा शून्य से नीचे लुढका हुआ है। दोनों केंद्र शासित प्रदेश में हाड़ कंपा देने वाली ठंड के साथ बर्फबारी भी पड़ रही है। इसे लेकर लोगों को घरों में ही रहने की सलाह दी गई है। इसके बावजूद लद्दाख में सैंकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए। ये लोग लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं। लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और संवैधानिक सुरक्षा की मांग लेकर हजारों लोगों ने कड़ाके की ठंड के बीच लेह की सड़कों पर शनिवार को मार्च निकाला। लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (KDA) द्वारा संयुक्त रूप से मार्च का आयोजन किया गया। हजारों पुरुषों और महिलाओं ने जमा देने वाले तापमान में लेह के मुख्य शहर में मार्च किया और नारे लगाते हुए लद्दाख को राज्य का दर्जा, संविधान की छठी अनुसूची को लागू करने और लेह एवं कारगिल जिलों के लिए अलग संसद सीटों की मांग की।
सरकार से क्या हैं मांगें?
केंद्र सरकार ने इन मांगों पर ध्यान दिया है। लद्दाख की अनूठी संस्कृति और भाषा की सुरक्षा के लिए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है। हालांकि, प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया है कि लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से उनका प्रतिनिधित्व और शक्तियां काफी कम हो गई हैं। पहले जब लद्दाख, जम्मू और कश्मीर का हिस्सा था, तो इस क्षेत्र में विधानसभा में चार और विधान परिषद में दो सदस्य थे, जिससे पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता था।
पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग
लद्दाख के लोगों ने कहा कि वे केंद्र शासित प्रदेश में एक अंतहीन नौकरशाही शासन के तहत नहीं रह सकते हैं। केवल पूर्ण राज्य का दर्जा ही उनकी मांग को पूरा कर सकते हैं, जहां वे क्षेत्र पर शासन करने के लिए अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं। केंद्र ने पिछले साल दिसंबर में लद्दाख में अपनी पहली बैठक की थी और लेह एवं कारगिल के दोनों निकायों से अपनी मांगें प्रस्तुत करने को कहा था। आर्टिकल 370 को हटाए जाने के बाद लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश के रूप में बनाया गया था और अगस्त 2019 में तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य को विभाजित कर दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया था।
"क्षेत्र का विधानसभा में कोई प्रतिनिधित्व नहीं"
लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के कानूनी सलाहकार हाजी गुलाम मुस्तफा ने कहा, "सभी शक्तियां जो जन-केंद्रित थीं, कमजोर हो गई हैं और क्षेत्र का विधानसभा में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। प्रदर्शनकारी मांग कर रहे हैं कि इस मुद्दे के समाधान के लिए लद्दाख का अपना लोक सेवा आयोग हो। जब से लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना है, लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस ने चार सूत्री एजेंडा आगे बढ़ाया है। हमारी सभी शक्तियां जो जन-केंद्रित थीं, कमजोर हो गई हैं। जब हम जम्मू-कश्मीर का हिस्सा थे, तो हमारे पास चार सूत्री एजेंडा थे। विधानसभा में दो सदस्य और विधान परिषद में दो सदस्य थे। अब विधानसभा में हमारा कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। हमारी हमेशा से मांग रही है कि विधानसभा में लद्दाख के लोगों का प्रतिनिधित्व हो और हमें राज्य का दर्जा मिले। इसका कारण यह है कि लद्दाख रणनीतिक रूप से एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है।"
6वीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू करने की मांग
उन्होंने आगे कहा, "यह एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है और इसमें वे सभी खासियत हैं जो पूर्वोत्तर के राज्यों में हैं। इसके अलावा हम पूर्वोत्तर राज्यों की तर्ज पर अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए लद्दाख में संविधान की 6वीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू करने की मांग करते हैं। जब से लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना है, इस क्षेत्र में कोई राजपत्रित नौकरी के अवसर नहीं हैं, जबकि जम्मू-कश्मीर में दो बैच पहले ही चालू हो चुके हैं और तीसरा बैच जल्द ही चालू हो जाएगा। लद्दाख को तत्काल अपने खुद के एक लोक सेवा आयोग की आवश्यकता है।" लोगों के विरोध प्रदर्शन को लेकर उन्होंने कहा कि यह दिल्ली में सत्ता के गलियारों को एक संदेश भेजने के लिए है कि लद्दाख के लोग क्षेत्र के सशक्तिकरण की मांग करते हैं।
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