Explainer: रूसी तेल अब नहीं रहा सस्ता, जानिए किस वजह से अब भारत को महंगा पड़ रहा है यूराल ग्रेड क्रूड ऑयल
रूस से कच्चा तेल 60 डॉलर प्रति बैरल से कम के भाव पर मिल रहा है, लेकिन परिवहन लागत के कारण कुल मिलाकर यह राशि 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल बैठ रही है।
जब से रूस और यूक्रेन (Russia Ukraine War) के बीच युद्ध शुरू हुआ है, तब से दुनिया भर में कच्चे तेल (Crude Oil) के बाजार में उथल पुथल मची हुई है। आश्चर्यजनक रूप से भारत इस पूरे विवाद का केंद्र बना हुआ है। इसका प्रमुख कारण है कि भारत इस युद्ध के बाद से रूस से जमकर कच्चा तेल खरीद रहा है। 2022 की जनवरी फरवरी तक जहां भारत के तेल आयात (Oil Import) में रूसी कच्चे तेल की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत से भी कम थी, वहीं अब इसकी हिस्सेदारी 44 प्रतिशत से भी अधिक हो रही है। इसका प्रमुख कारण यह था कि अरब देशों के मुकाबले रूस से 20 डॉलर से भी कम लागत पर तेल प्राप्त होना। लेकिन युद्ध को 500 दिन पूरे होने के बाद अब भारत को पहले जैसा फायदा नहीं मिल रहा है। ब्रेट क्रूड के मुकाबले अब रूसी तेल सिर्फ 4 डॉलर ही सस्ता रह गया है।
भारत को दोगुनी पड़ रही है परिवहन लागत
रूस ने भले जी तेल की कीमतों में कोई बढ़ोत्तरी न की हो लेकिन इसके बाद भी भारत को यूराल ग्रेड का क्रूड आयल महंगा पड़ रहा है। इसका प्रमुख कारण है परिवहन की लागत का बढ़ना। रूस द्वारा इस तेल के परिवहन के लिए जिन इकाइयों की ‘व्यवस्था’ की गई है, वे भारत से सामान्य से काफी ऊंची दर वसूल रही हैं। भारतीय रिफाइनरी कंपनियों से रूस पश्चिम द्वारा लगाए गए 60 डॉलर प्रति बैरल की मूल्य सीमा से कम की कीमत वसूल रहा है। लेकिन वह कच्चे तेल के परिवहन के लिए 11 से 19 डॉलर प्रति बैरल की कीमत वसूल रहा है। यह बाल्टिक और काला सागर से पश्चिमी तट तक डिलिवरी के लिए सामान्य शुल्क का दोगुना है।
30 डॉलर का डिस्काउंट 4 डॉलर हुआ
पिछले साल फरवरी में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद रूसी तेल पर यूरोपीय खरीदारों और जापान जैसे एशिया के कुछ देशों ने प्रतिबंध लगा दिया था। इसके चलते रूसी यूराल्स कच्चे तेल का कारोबार ब्रेंट कच्चे तेल यानी वैश्विक बेंचमार्क कीमत से काफी कम दाम पर होने लगा। हालांकि, रूसी कच्चे तेल पर जो छूट पिछले साल के मध्य में 30 डॉलर प्रति बैरल थी, वह अब घटकर चार डॉलर प्रति बैरल पर आ गई है। भारतीय रिफाइनरी कंपनियां कच्चे तेल को पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधन में बदलती हैं। अभी ये कंपनियां रूसी तेल की सबसे बड़ी खरीदार हैं।
तेल आयात में चीन को भी पीछे छोड़ा
तेल आयात के मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। अर्थव्यवस्था में सुस्ती और वाहनों के बड़े पैमाने पर विद्युतीकरण के चलते चीन का रूस से कच्चे तेल का आयात काफी घट गया है। रूस के सस्ते कच्चे तेल पर अपनी ‘पैठ’ जमाने के लिए भारतीय रिफाइनरी कंपनियों ने काफी तेजी से अपनी खरीद बढ़ाई है। यूक्रेन युद्ध से पहले रूस की भारत की कुल कच्चे तेल की खरीद में सिर्फ दो प्रतिशत हिस्सेदारी थी जो आज बढ़कर 44 प्रतिशत पर पहुंच गई है।
भारतीय कंपनियां अब कर रही हैं अलग अलग डील
अब रूसी कच्चे तेल पर छूट या रियायत काफी घट गई है। इसकी वजह यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र की इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी), हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल), मेंगलूर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड और एचपीसीएल-मित्तल एनर्जी लिमिटेड के साथ निजी रिफाइनरी कंपनियां मसलन रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और नायरा एनर्जी लिमिटेड रूस के साथ कच्चे तेल के सौदों के लिए अलग-अलग बातचीत कर रही हैं। सूत्रों ने कहा कि यह छूट ऊंची रह सकती थी, यदि सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां इस बारे में सबसे साथ मिलकर बातचीत करतीं। फिलहाल रूस से प्रतिदिन 20 लाख बैरल कच्चा तेल आ रहा है। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों का हिस्सा करीब 60 प्रतिशत है।
भारत के लिए 70 से 75 डॉलर बैठ रहा है रूसी तेल
यूक्रेन पर रूस के हमले से पहले फरवरी, 2022 तक समाप्त 12 माह की अवधि में भारत रूस से प्रतिदिन 44,500 बैरल कच्चा तेल खरीदता था। पिछले कुछ माह के दौरान समुद्र के रास्ते भारत की रूसी कच्चे तेल की खरीद चीन को पार कर गई है। सूत्रों ने बताया कि भारतीय रिफाइनरी कंपनियां रूस से कच्चे तेल की खरीद उसकी आपूर्ति किए जाने के आधार पर खरीदती हैं। इसके चलते रूस को तेल के परिवहन और बीमा की व्यवस्था करनी पड़ती है। हालांकि, रूस से कच्चा तेल 60 डॉलर प्रति बैरल से कम के भाव पर मिल रहा है, लेकिन कुल मिलाकर यह राशि 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल बैठ रही है।