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Hindi News Explainers Explainer: ये कैसी दोस्ती, ये कैसी यारी, महायुति और एमवीए में सियासत का अनोखा खेल है जारी?

Explainer: ये कैसी दोस्ती, ये कैसी यारी, महायुति और एमवीए में सियासत का अनोखा खेल है जारी?

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कुछ अलग ही खेल देखने को मिल रहा है। गठबंधन में शामिल दल ही एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतार रहे हैं और इसे दोस्ताना मुकाबले का नाम दे रहे हैं।

Maharashtra Assembly Elections- India TV Hindi Image Source : FILE महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव

मुंबई: हर गठबंधन के कुछ उसूल होते हैं और उनका एक धर्म होता है। बात जब सियासत की हो तो उसका महत्व और बढ़ जाता है। सियासत में जब कई दल विचारों के तालमेल के आधार पर आपस में गठबंधन करते हैं तो फिर गठबंधन के धर्म का पालन करना हर सियासी दल का कर्तव्य होता है। लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कुछ अलग ही खेल देखने को मिल रहा है। गठबंधन में शामिल दल ही एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतार रहे हैं और इसे दोस्ताना मुकाबले का नाम दे रहे हैं। 

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दो गठबंधनों के बीच सीधा मुकाबला है। एक तरफ बीजेपी और शिंदे की शिवसेना की अगुवाई वाली महायुति है तो दूसरी ओर कांग्रेस और उद्धव की शिवसेना वाली महाविकास अघाड़ी है। महायुति में बीजेपी, शिवसेना (एकनाथ शिंद), एनसीपी (अजित पवार) जैसी प्रमुख पार्टियां हैं तो महाविकास अघाड़ी में कांग्रेस, शिवसेना (यूपीटी) और शरद पवार की एनसीपी जैसे सियासी दल शामिल हैं। इस विधानसभा चुनाव में महायुति के अंदर शामिल दल भी कुछ सीटों पर दोस्ताना संघर्ष के नाम पर चुनावी मैदान में एक दूसरे के आमने-सामने हैं। वहीं महाविकास अघाड़ी में भी यही दृश्य देखने को मिल रहा है। महाविकास अघाड़ी में शामिल सियासी दल 6 सीटों पर दोस्ताना मुकाबला कर रहे हैं। महायुति में पांच सीटों पर दोस्ताना मुकाबला है।

गठबंधन एक, उम्मीदवार अनेक

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की तारीख खत्म हो चुकी है। लेकिन महायुति और महाविकास अघाड़ी, दोनों ही दलों में बगावती सुर साफ नजर आ रहे हैं। इसलिए दोनों ही गठबंधन के लिए आनेवाले दिन चुनौतियों से भरे हो सकते हैं। दोनों ही गठबंधन के नेताओं को बागियों को मनाने के लिए मशक्कत करनी पड़ सकती है। लेकिन सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि गठबंधन के अंदर ही दोस्ताना मुकाबला हो रहा है। मानखुर्द- शिवाजीनगर,मोर्शी , सिंदखेड राजा, आष्टी, देवलाली विधानसभा सीट पर महायुति गठबंधन के उम्मीदवार ही आमने-सामने हैं।

Image Source : INDIA TVमहाराष्ट्र विधानसभा चुनाव

महायुति और MVA की कैसे बढ़ी टेंशन?

कहीं दोस्ताना संघर्ष तो कहीं बागी उम्मीदवारों के चुनाव मैदान में उतरने से दोनों ही गठबंधन की चुनौती बढ़ गई है। महायुति की बात करें तो शिवाजी मानखुर्द विधानसभा सीट से सुरेश पाटील शिवसेना उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में हैं तो वहीं नवाब मलिक को अजित पवार की एनसीपी ने टिकट दिया है। मोर्शी विधानसभा सीट प उमेश यवलकर को बीजेपी ने टिकट दिया है तो अजित पवार की एनसीपी ने देवेंद्र भुयार ने चुनाव मैदान में उतारा है। बोरीवली से बीजेपी ने संजय उपाध्याय को टिकट दिया है तो बीजेपी के बागी उम्मीदवार गोपाल शेट्टी बागी उम्मीदवार के तौर पर ताल ठोक रहे हैं। नायगांव में सुहास कांडे शिवसेना के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं तो एनसीपी के समीर भुजबल निर्दलीय के तौर पर ताल ठोक रहे हैं।

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एमवीए में भी महायुति जैसे हालात

महाविकास अघाड़ी की बात करे तो शिवाजी-माखुर्द सीट पर समाजवादी पार्टी के अबु आजमी चुनाव मैदान में उतरे हैं वहीं शिवसेना-यूबीटी से राजेंद्र वाघमारे भी ताल ठोक रहे हैं। रामटेक सीट पर विशाल बरवटे शिवसेना यूबीटी के उम्मीदवार हैं तो उनके खिलाफ कांग्रेस के बागी राजेंद्र मुलक चुनाव मैदान में उतरे हैं। दिग्रस विधानसभा सीट पर पवन जायसवाल शिवसेना यूबीटी से उम्मीदवार हैं। वहीं कांग्रेस के माणिक राव ठाकरे उन्हें चुनौती दे रहे हैं। परांड सीट पर रंजीत पाटील को शिवसेना उद्धव गुट ने टिकट दिया है तो उन्हें शरद पवार की एनसीपी के राहुल मोटे चुनौती दे रहे हैं।

15 विधानसभा सीटों पर तस्वीर साफ नहीं

बता दें कि नामांकन दाखिल करने की समय सीमा खत्म होने के बाद भी महाराष्ट्र में करीब 15 सीटों पर तस्वीर साफ नहीं है। महायुति की ओर से चार सीटों पर उम्मीदवारों के नामों की घोषणा नहीं की गई है। वहीं महाविकास अघाड़ी ने अभी तक 11 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान नहीं किया ही।  भाजपा ने 152 उम्मीदवार, एनसीपी के अजीत पवार के गुट ने 52 और एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने 80 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। एमवीए में, कांग्रेस ने 103 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट और शरद पवार के गुट के पास 87 उम्मीदवार हैं।

अंदरुनी कलह से निपटने की कवायद!

महाराष्ट्र की राजनीति के गठबंधन के दोनों ध्रुवों के अंदर दोस्ताना मुकाबले कुछ अलग संकेत दे रहे हैं। ये हालात कहीं न कहीं इस बात के संकेत हैं कि अपने अंदरुनी कलह से निपटने के लिए गठबंधन के अंदर इस तरह से दोस्ताना मुकाबले की भूमिका तैयार की गई है। वहीं दोनों ही गठबंधन को बागियों के संकट का भी सामना करना पड़ रहा है। इससे साफ है कि आनेवाले दिनों में दोनों ही गठबंधन की राह काफी चुनौतीपूर्ण हो सकती है।