Explainer: आखिर क्यों भाजपा की महत्वाकांक्षाओं की परीक्षा है 'तमिलनाडु'? यहां समझें समीकरण
लोकसभा चुनाव 2024 का इंतजार समाप्त हो चुका है। शुक्रवार 19 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के पहले चरण के लिए वोटिंग होगी। तमिलनाडु में सभी 39 सीटों पर पहले चरण में ही मतदान आयोजित होंगे। भाजपा की इस बार तमिलनाडु पर खास नजर है।
देशभर में लोकसभा चुनाव को लेकर तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। 19 अप्रैल को पहले चरण का मतदान होगा जिनमें देशभर के 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की कुल 102 सीटों पर जनता वोट करेगी। खास बात ये है कि पहले चरण में ही दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु की सभी 39 सीटों पर भी वोटिंग होगी। नरेंद्र मोदी के पीएम पद संभालने के बाद से ही तमिलनाडु भाजपा की रणनीति के केंद्र में है। लेकिन इस बार का लोकसभा चुनाव तमिलनाडु में भाजपा की महत्वाकांक्षाओं की परीक्षा है। आइए समझते हैं इस पूरे समीकरण को हमारे इस एक्सप्लेनर के माध्यम से।
पीएम मोदी के लिए अहम है तमिलनाडु
लोकसभा सीटों के लिहाज से तमिलनाडु दक्षिण भारत का सबसे बड़ा राज्य है। यहां से कुल 39 सांसद चुनकर दिल्ली जाते हैं जो किसी भी दल को सत्ता दिलाने के लिए जरूरी हैं। तमिलनाडु की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पीएम मोदी ने पिछले आठ हफ्तों में राज्य में 10 दौरे किए हैं। काशी तमिल संगमम हो या फिर संसद में पवित्र सेंगोल की स्थापना या फिर समय-समय पर तमिल भाषा के प्रति समर्थन। पीएम मोदी ने हर अवसर पर तमिलनाडु को साधा है।
हिंदुत्व बनाम द्रविड़ राजनीति
भारतीय जनता पार्टी को हिंदुत्व की विचारधारा को बढ़ावा देने वाला दल माना जाता है। वहीं, तमिलनाडु देशभर में द्रविड़ राजनीति का केंद्र रहा है। जनगणना के अनुसार, राज्य में हिंदू आबादी 87.58 फीसदी है लेकिन अब तक इस राज्य में हिंदुत्व के मुद्दे पर राजनीति उदासीन रही है। बीते कुछ समय से भाजपा तमिलनाडु में लगातार मंदिरों समेत तमाम हिंदू हितों को लेकर मुखर रही है। वहीं, डीएमके जैसे दलों के विभिन्न नेताओं द्वारा सनातन विरोधी टिप्पणियों ने भी इस मुद्दो को काफी बढ़ावा दिया है।
AIADMK की जगह लेगी भाजपा?
तमिलनाडु की राजनीति अब तक द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) और अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) के आस-पास ही घूमती रही है। हालांकि, जयललिता के निधन के बाद AIADMK में टूट हुई है और राज्य में जमीन बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। ऐसे समय में भाजपा पूरी कोशिश में है कि अब वह डीएमके के खिलाफ आमने-सामने की लड़ाई लड़े और उसकी मुख्य प्रतिद्वंदी बने। भाजपा डीएमके को सीधी चुनौती देकर उस राज्य की पारंपरिक राजनीति को पलटना चाहती है जो अभी तक हिंदुत्व की राजनीति से उदासीन रहा है।
कितनी कामयाब होगी भाजपा की रणनीति?
तमाम सर्वे इस ओर इशारा कर रहे हैं कि तमिलनाडु में भाजपा इस बार अच्छा वोट प्रतिशत हासिल करेगी। वहीं, पार्टी कई लोकसभा सीटों पर जीत भी हासिल कर सकती है। पार्टी ने राज्य में कई छोटे दलों के साथ गठबंधन भी किया है। राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने राज्य में भाजपा के मत प्रतिशत में बड़ी वृद्धि का अनुमान जताया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलई ने दावा किया कि राज्य में उसकी सीटें दोहरे अंकों में आएगी। माना जा रहा है कि जिस प्रकार भाजपा ने पश्चिम बंगाल में अपनी जमीन मजबूत की ठीक उसी तरह वह तमिलनाडु में भी करिश्मा दिखा सकती है।
बीते चुनावों में क्या रहा था भाजपा का हाल?
अगर 2019 लोकसभा चुनावों की बात करें तो डीएमके गठबंधन ने राज्य की 39 सीटों में से 38 पर जीत हासिल की थी। इसके बाद विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने जीत हासिल की। वहीं, AIADMK के साथ गठबंधन में भाजपा ने 5 सीटों पर उम्मीदवार उतारे लेकिन राज्य में एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत सकी। पार्टी के 3.6 फीसदी वोट मिले। वहीं, विधानसभा चुनाव में पार्टी के 4 विधायक जीते। अब भाजपा ने राज्य की 39 में से 23 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं। वहीं, बाकी की सीटें गठबंधन के दलों को दी गई हैं।
क्या अन्नामलई होंगे प्रभावी फैक्टर?
तमिलनाडु ऐसा राज्य है जहां भाजपा ने अन्नामलाई के प्रतिनिधित्व में अपने क्षेत्रीय नेतृत्व पर काफी भरोसा किया है। राजनीति में आने के लिए भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से इस्तीफा देने वाले अन्नामलाई कोयंबटूर से चुनाव लड़ रहे हैं। वह भाजपा को जमीन पर मजबूत करने के लिए बीते लंबे समय से पदयात्रा से लेकर सभाएं कर रहे हैं। हालांकि, अब चुनाव के बाद आगामी 4 जून को आने वाले नतीजों के बाद ही पता चलेगा कि वह कितने कामयाब हो सके। लेकिन ये कहना बिलकुल सही होगा कि तमिलनाडु भाजपा की महत्वाकांक्षाओं और अपील की एक परीक्षा है।
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