Explainer: अंबेडकरनगर सीट पर क्यों कमजोर हुई BSP की पकड़? क्या हैं यहां के सियासी समीकरण? जानें सबकुछ
2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी को अंबेडकरनगर सीट पर सपा के साथ गठबंधन का फायदा मिला था और इसी की बदौलत पार्टी के उम्मीदवार रितेश पांडेय को तकरीबन 95 हजार वोटों से जीत मिली थी।
अंबेडकरनगर: कभी बहुजन समाज पार्टी के लिए अभेद्य किला रहा उत्तर प्रदेश का अंबेडकरनगर जिला अब उसकी पकड़ से दूर हो गया है। यहां पर छठे चरण में 25 मई को मतदान होना है। बीएसपी छोड़कर आए सांसद रितेश पांडेय को बीजेपी ने अंबेडकरनगर लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी घोषित किया है। समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस संग I.N.D.I.A. गठबंधन की ओर से कटेहरी विधायक लालजी वर्मा पर दांव लगाया है। बहुजन समाज पार्टी ने कलाम शाह को अपना प्रत्याशी बनाया है।
2019 में BSP को मिला था सपा से गठबंधन का फायदा
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी को यहां सपा के साथ गठबंधन का फायदा मिला था। इसी की बदौलत बीएसपी के उम्मीदवार रितेश पांडेय को तकरीबन 95 हजार वोटों से जीत मिली थी। उन्होंने बीजेपी के प्रत्याशी मुकुट बिहारी को पराजित किया था। उस चुनाव में बीएसपी कैडर के साथ ही सपा के वोट भी शामिल थे, लेकिन इस बार सपा-कांग्रेस सहित अन्य दलों का गठबंधन है। वहीं, बीएसपी अलग-थलग चुनाव मैदान में उतरी है। कटेहरी के रामलाल कहते हैं कि इस जिले को बनाने में मायावती का बहुत बड़ा हाथ है।
‘इस सरकार ने बिजली पर भरपूर ध्यान दिया है’
रामलाल ने कहा कि मायावती ने न सिर्फ इस जिले से चुनाव लड़ा बल्कि कई नेता भी दिए। उन्होंने कहा, ‘मायावती ने विकास के क्षेत्र में बहुत काम किया है। लेकिन, कभी उनकी पार्टी में बड़े पदों पर रहे लोग आज दूसरी पार्टी में हैं। यही बसपा की कमजोरी है। लेकिन, उसका अपना एक वोट बैंक है।’ वहीं, अंबेडकर नगर के रहने वाले दिनेश की मानें तो सिर्फ राशन नहीं सरकार को रोजगार के लिए भी सोचना चाहिए, जिससे यहां के नौजवान टिके रहें। उन्होंने कहा, ‘इस सरकार में एक अच्छी बात है कि इसने बिजली पर भरपूर ध्यान दिया है।’
‘अंबेडकरनगर में बीएसपी का शुरू से जनाधार रहा है’
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि अंबेडकरनगर लोकसभा में बीएसपी का अपना शुरू से जनाधार रहा है। इसी कारण बसपा प्रमुख ने इस जिले को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि भी बनाई। उन्होंने वर्ष 1998 के आम चुनाव में यहां से लड़ने की घोषणा कर हलचल मचा दी थी। 1999 में फिर हुए चुनाव में भी मायावती ने इसी सीट को चुना। इस बार उन्होंने पिछले चुनाव से शानदार प्रदर्शन किया। बसपा प्रमुख ने वर्ष 2004 के चुनाव में भी अंबेडकरनगर का रुख किया। उन्होंने जीत की हैट्रिक लगाई और जीत का अंतर भी बढ़ाने में सफलता हासिल की।
‘नेताओं के पार्टी छोड़ने से BSP को सबसे ज्यादा नुकसान’
वीरेंद्र सिंह रावत ने जिक्र किया कि बसपा की भले सरकार न रही हो, लेकिन उसका जनाधार रहा है। उन्होंने कहा कि नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद उसे सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान 3 विधानसभा सीटों पर बसपा का कब्जा था। कटेहरी से लालजी वर्मा, अकबरपुर से रामअचल राजभर व जलालपुर से रितेश विधायक थे। लोकसभा चुनाव में इसी का फायदा बसपा को मिला था। लेकिन, इस बार उनके उम्मीदवार बीजेपी के पाले से लड़ रहे हैं। बसपा के इस जिले में एक भी विधायक नहीं है। अब उनकी डगर बहुत कठिन नजर आ रही है।
2019 में जातीय समीकरण ने की थी BSP की मदद
एक अन्य विश्लेषक अमोदकांत मिश्रा कहते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में अंबेडकरनगर सीट बसपा ने जातीय समीकरण के हिसाब से जीती थी। यह सीट दलित, मुस्लिम और पिछड़े के प्रभाव वाली है। राजनीतिक दलों के अनुमान के हिसाब से दलित 28 फीसद, मुस्लिम 15 फीसदी, यादव 11 फीसदी और कुर्मी 12 फीसदी हैं। इसे जोड़ दिया जाए तो यह 66 फीसदी के आसपास बैठता है। सपा-बसपा गठबंधन के लिए यही काफी था। उसमें ब्राह्मण उम्मीदवार होने से इस बिरादरी का करीब 14 फीसदी वोट भी साथ गया, जिससे जीत की राह आसान हुई।
अंबेडकरनगर में हो सकता है कांटे का मुकाबला
अमोदकांत मिश्रा के मुताबिक, इस बार मामला अलग है। बसपा के जीते सांसद भाजपा के टिकट से मैदान में हैं। सपा से लालजी वर्मा मैदान में हैं। यहां मुकाबला रोचक है। रितेश जनता के सामने मोदी की गारंटी लेकर जा रहे हैं तो लाली वर्मा को पीडीए पर पूरा भरोसा है। बसपा के उम्मीदवार मायावती की पुरानी साख का हवाला देकर मैदान में डटे हैं। (IANS)