Explainer: अखिलेश ने 48 घंटे के अंदर क्यों काट दिया तेज प्रताप का टिकट? चाची की हार का खामियाजा भुगत रहा भतीजा!
उत्तर प्रदेश की कन्नौज लोकसभा सीट से पहले तेज प्रताप को टिकट दिया गया था, लेकिन अखिलेश ने बाद में खुद चुनाव लड़ने का फैसला किया। कन्नौज में मतदान के चौथे चरण में 13 मई को वोट डाले जाएंगे। 2019 में यहां डिंपल यादव को हार झेलनी पड़ी थी।
लोकसभा चुनाव 2024 में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश की कन्नौज सीट से चुनाव लड़ेंगे। अखिलेश ने पहले चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया था, लेकिन बाद में उन्होंने अपना मन बदल दिया। समाजवादी पार्टी ने कन्नौज सीट पर तेज प्रताप यादव को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन 48 घंटे के अंदर उनका टिकट कट गया और अब अखिलेश यहां से चुनाव लड़ेंगे। अखिलेश के इस फैसले को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। आइए जानते हैं अखिलेश ने अपने भतीजे और लालू प्रसाद यादव के दामाद तेज प्रताप का टिकट क्यों काटा है...
समाजवादी पार्टी ने इस चुनाव में पहले भी कई सीटों पर उम्मीदवार बदले हैं और अब तो बात परिवार तक पहुंच गई। अखिलेश ने अपने भतीजे का ही टिकट काट दिया। उनके इस फैसले के कई मायने निकाले जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि कन्नौज में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं का दबाव था। तेज प्रताप उतना अच्छा चुनाव नहीं लड़ पाते। अखिलेश के आने से मुकाबला कड़ा होगा और बीजेपी के लिए यहां से दोबारा जीत हासिल करना आसान नहीं होगा। इसी वजह से 22 अप्रैल को तेज प्रताप को उम्मीदवार बनाया गया और 24 अप्रैल को अखिलेश ने खुद नामांकन करने का ऐलान कर दिया।
समाजवादी पार्टी ने आठ सीटों पर बदले उम्मीदवार
इस लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने आठ सीटों पर उम्मीदवार बदले हैं। बदायूं में तो तीन बार में प्रत्याशी तय हुआ। यहां पहले धर्मेंद्र यादव फिर शिवपाल यादव और अंत में आदित्य यादव को टिकट मिला। मुरादाबाद में एसटी हसन और रुचि वीरा का नाम चलता रहा। नामांकन वाले दिन रुचि का नाम तय हुआ। मेरठ में अतुल प्रधान ने नामांकन के बाद नाम वापस लिया और सुनीता वर्मा ने पर्चा भरा। गौतमबुद्ध नगर, बागपत, संभल, बिजनौर और मिश्रिख में भी समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार बदले हैं। ऐसे में कन्नौज में भी उम्मीदवार बदलना कुछ नया नहीं है। शायद अखिलेश उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर पहले जनता और कार्यकर्ताओं का मन भांप रहे हैं। इसके बाद ही अंतिम फैसला ले रहे हैं। इसी वजह से कई सीटों पर उन्होंने उम्मीदवार बदले हैं।
अचानक कैसे आया तेज प्रताप का नाम ?
कन्नौज लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी ने किसी भी नेता को टिकट नहीं दिया था। अखिलेश यादव यहां काफी ज्यादा सक्रिय थे और लगातार लोकसभा क्षेत्र में जा रहे थे। ऐसे में साफ था कि वह अपनी पारंपरिक सीट पर फिर से चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन नामांकन की तारीख करीब आने पर पार्टी ने तेज प्रताप के नाम का ऐलान कर दिया। अखिलेश यादव के परिवार का लगभग हर सदस्य चुनाव लड़ रहा है। कयास लगाए जा रहे हैं कि इसी वजह से अखिलेश ने भतीजे तेज प्रताप को भी टिकट दिया था। तेज प्रताप राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू यादव के दामाद हैं। ऐसे में विपक्षी दलों के गठबंधन में अखिलेश के साथी लालू यादव की तरफ से भी दबाव रहा होगा कि वह तेज प्रताप को टिकट दें।
डिंपल की हार बनी टिकट कटने की वजह ?
कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता तेज प्रताप को टिकट मिलने से नाराज हो गए थे। इसी वजह से उनका पत्ता काटा गया है। कन्नौज में 1999 से समाजावदी पार्टी का कब्जा रहा है, लेकिन 2019 में यहां बीजेपी उम्मीदवार को जीत मिली। इसी वजह से अखिलेश चिंतित हैं कोई कोताही नहीं रखना चाहते हैं। 1999 में यहां मुलायम सिंह जीते थे। 2000 उपचुनाव में अखिलेश ने इसी सीट से पहला चुनाव लड़ा और जीतकर संसद पहुंचे। 2004 और 2009 में भी वह यहीं से सांसद बने। 2012 में अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव ने उपचुनाव जीता और 2014 में भी सांसद बनीं, लेकिन जीत का अंतर कम था। 2019 में डिंपल को हार झेलनी पड़ी और सीट बीजेपी के खाते में चली गई। शायद डिंपल की हार के कारण ही अखिलेश ज्यादा सतर्क हैं और कार्यकर्ताओं में नाराजगी देखते ही कन्नौज से तेज प्रताप का टिकट काट खुद चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
तेज प्रताप ने संभाली थी मुलायम की विरासत
तेज प्रताप 2014 से 2019 तक मैनपुरी लोकसभा सीट से सांसद रह चुके हैं। इस सीट पर मुलायम सिंह ने चुनाव जीता था, लेकिन उन्होंने यह सीट छोड़ दी थी। इसके बाद हुए उपचुनाव में तेज प्रताप सांसद बने थे। तेज प्रताप का पूरा परिवार राजनीति से जुड़ा हुआ है। मुलायम सिंह के बड़े भाई रतन सिंह यादव तेज प्रताप के दादा थे। तेज प्रताप के पिता ने ही सैफई महोत्सव की शुरुआत की। तेज प्रताप की शादी में पीएम मोदी शामिल हुए थे। वह कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए सैफई आए थे। वहीं, दिल्ली में हुए रिशेप्सन में लाल कृष्ण आडवाणी सहित कई बड़े नेता शामिल हुए थे।
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