Explainer: तीसरी बार PM बनने के बाद पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा पर रूस ही क्यों गए मोदी? जानें क्या है अहमियत
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस की यात्रा पर है। रूस और यूक्रेन के बीच जंग शुरू होने के बाद पीएम मोदी की यह पहली रूस यात्रा है। तीसरी बार सरकार बनने के बाद मोदी ने पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा के लिए रूस को ही क्यों चुना? चलिए समझते हैं।
PM Narendra Modi Russia Visit: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस की यात्रा पर हैं। पीएम मोदी का रूस में भव्य एवं शानदार स्वागत हुआ है। मॉस्को में पीएम मोदी ने भारतीय समुदाय के लोगों को संबंधित भी किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि "आपका ये प्रेम, आपका ये स्नेह, आपने यहां आने के लिए समय निकाला मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं। मैं अकेला नहीं आया। मैं मेरे साथ बहुत कुछ लेकर आया हूं। मैं अपने साथ हिंदुस्तान की मिट्टी की महक लेकर आया हूं। मैं अपने साथ 140 करोड़ देशवासियों का प्यार लेकर आया हूं..." ये तो वो बात हुई जो पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कही लेकिन इससे इतर खास और ध्यान देने वाली बात यह है कि तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा के लिए रूस को ही क्यों चुना। इस यात्रा का मकसद क्या है, तो चलिए इस रिपोर्ट में आपको इस बारे में बताते हैं।
भारत की वैश्विक कूटनीति
भारत के प्रधानमंत्री के रूप में लगातार तीसरी बार शपथ लेने के बाद पीएम मोदी की यह पहली द्विपक्षीय यात्रा है। परंपरागत रूप से पीएम मोदी ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत के पड़ोसी देशों को चुना है, जिससे इस बात का साफ संदेश गया कि भारत ने पड़ोसी देशों को महत्व दिया गया है। अब ऐसे में इस बार पीएम मोदी की पहली द्विपक्षीय यात्रा के लिए रूस का चयन कुछ अलग नजर आ रहा है। भले ही यह अलग दिख रहा है लेकिन अगर बारीकी से देखा जाए तो इस यात्रा से 'भारत की वैश्विक कूटनीति' को समझने में मदद मिल सकती है।
एक साथ दो धुरी पर भरत
भारतीय विदेश नीति को देखा जाए तो संदेश साफ दिए गए हैं कि भारत इस वक्त रूस के साथ भी उतना ही मजबूत संबंध रखे हुए है, जितना अमेरिका के साथ। पीएम मोदी ने खुद कह है कि रूस भारत के सुख-दुख का साथी है...मतलब साफ है कि दोनों देशों के बीत संबंध अटूट हैं। ऐसे में इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है भारत और अमेरिका के रिश्ते भी बेहद मजबूत हैं। इसे इस तरह से भी देखा जा सकता है कि भारत एक साथ दो धुरी पर बिना किसी परेशानी के चल रहा है। उदाहरण के तौर पर रूस-यूक्रेन जंग के बीच पश्चिम की आपत्तियों के बावजूद भारत को रियायती कीमतों पर रूसी तेल मिल रहा है।
चीन को संदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब रूस पहुंचे तो उनका वहां पर शानदार स्वागत हुआ। पीएम मोदी का स्वागत करने एयरपोर्ट पर रूस के प्रथम उप प्रधानमंत्री डेनिस मांटुरोव पहुंचे थे। वह पीएम मोदी को कार में अपने साथ लेकर होटल तक छोड़ने गए। थोड़ा पीछे चलें तो हाल ही में अस्ताना में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक संपन्न हुई थी। अमेरिका समेत पश्चिमी देश SCO को अपने खिलाफ देखते हैं। वहीं, चीन ने इसे पूरी तरह से अपनी गिरफ्त में लिया हुआ है और अपने इशारों पर इस समूह को चला रहा है। ऐसे में पीएम मोदी की रूस यात्रा से भारत ने परोक्ष रूप से संदेश दिया है कि वह SCO में चीन की मनमानी को चलने नहीं देगा।
भारत की दुविधा
बदलती हुई दुनिया के परिदृश्य संबंधों को मजबूत बनाने के लिए वार्षिक शिखर सम्मेलन महत्वपूर्ण साधन रहे हैं। भारत के सामने सबसे दुविधा यह है कि वह प्रौद्योगिकी और निवेश के लिए पश्चिम पर अधिक निर्भर है। ऐसे में भारत रूस से नजदीकी दिखाकर पश्चिम को नाराज नहीं करना चाहता है। यह जगजाहिर है कि 2014 में क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद पश्चिम के साथ रूस का तनाव बढ़ा है। अब रूस और यूक्रेन के बीच जंग जारी है और रूस चीन की तरफ बढ़ा है। रूस का चीन की तरफ झुकना भारत के लिए चिंताजनक है लिहाजा भारत को रूस के साथ अपने संबंधों को विस्तार देते रहना होगा।
अटूट है भारत-रूस की दोस्ती
भले ही वैश्विक कूटनीति कैसी भी हो लेकिन रूस भारत का टेस्टेड और ट्रस्टेड पार्टनर रहा है। भारत और रूस की दोस्ती जमीन , आसमान और समंदर तक है। दोनों देशों की दोस्ती सात दशक से ज्यादा पुरानी हो चुकी है। रूस भारत के लिए बड़ा ऊर्जा और हथियारों का सप्लायर रहा है। व्यापारिक, आर्थिक, सामरिक और सुरक्षा के क्षेत्र में दोनों देश महत्वपूर्ण साझेदार हैं। रूस पिछले 24 साल से भारत का रणनीतिक साझेदार भी है। पीएम मोदी ने खुद भी रूस को भारत का सबसे भरोसेमंद दोस्त बताया है।
भारत को है जरूरत
भारत ने रूस के पर लगे प्रतिबंधों और एक देश पर बढ़ती निर्भरता को देखते हुए रक्षा खरीद में विविधता लाना शुरू कर दिया है, लेकिन उसे रूस से अब भी लंबे समय तक कई हथियारों के पार्ट्स की जरूरत है। इसके अलावा भारत को रूस से S-400 वायु रक्षा प्रणालियों के दो स्क्वाड्रन भी मिलने हैं। भारत की चिंता यह भी है कि रूस, चीन के साथ संवेदनशील तकनीक साझा कर सकता है। इसके अलावा यह भी डर है कि रूस, चीन या पाकिस्तान के साथ टकराव की स्थिति में स्पेयर की आपूर्ति में धीमी कर सकता है। इसलिए, रूस और पश्चिम के बीच संबंधों को संतुलित करना नई दिल्ली के लिए महत्वपूर्ण रहा है।
मजबूत होकर उभरी दोस्ती
अब ऐसे में आप यह समझ सकते हैं कि वो कौन से कारक हैं जिन्हें पीएम मोदी मजबूत भरत के लिए साधना चाहते हैं और इसी वजह से उन्होंने रूस यात्रा को चुना। रूस में पीएम मोदी ने जो कहा उससे भी संकते साफ मिलते हैं। पीएम मोदी ने मॉस्को में कहा ‘रूस में सर्दी के मौसम में तापमान कितना भी माइनस में नीचे क्यों ना चला जाए लेकिन भारत और रूस की दोस्ती हमेशा प्लस में रही है, गर्मजोशी भरी रही है।’’ उन्होंने कहा कि यह रिश्ता पारस्परिक विश्वास और सम्मान की मजबूत नींव पर बना है। हमारे रिश्तों की दृढ़ता अनेक बार परखी गई है और हर बार हमारी दोस्ती बहुत मजबूत होकर उभरी है।
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