Israel-Hamas War: मिडिल ईस्ट में ताजा जंग के बीच क्या है भारत का रुख, इजराइल से कैसी रही है दोस्ती?
इजराइल पर हमला होते ही भारत ने इजराइल से दोस्ती दिखाते हुए हमास के हमले को लेकर अपनी प्रतिक्रया दी। इजराइल कब से भारत का दोस्त बना? 1990 के दशक में इजराइल और फिलिस्तीन के बीच तनाव पर भारत की किससे थी करीबी? क्या रही वर्ल्ड डिप्लोमेसी। जानिए सबकुछ?
Israel-Hamas War: इजराइल और फिलिस्तीन के बीच जोरदार जंग जारी है। आतंकी संगठन हमास ने इजराइल पर अचानक रॉकेट की बौछार कर दी। यही नहीं, बॉर्डर क्रॉस करके हमास के कमांडो इजराइल में घुस गए और कोहराम मचाया। इन सबके बीच इजराइल ने भी जोरदार पलटवार कर अपने इरादे जाहिर कर दिए। इजराइली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने साफ कहा कि जंग शुरू हो गई है और हम जीतेंगे। इस जंग को अपने अंजाम पर पहुंचाएंगे। इसी बीच इजराइल ने जोरदार हमले भी गाजा पट्टी पर कर दिए हैं। जहां यह जंग जारी है, वहीं दूसरी ओर डिप्लोमेसी भी तेजी से काम कर रही है। इजराइल पर हमला होते ही भारत ने इजराइल से दोस्ती दिखाते हुए हमास के हमले को लेकर अपनी प्रतिक्रया दी। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इस संकट की घड़ी में भारत इजराइल के साथ खड़ा है। इजराइल और भारत के बीच पारंपरिक दोस्ती है। रक्षा मामले हों या डिप्लोमेसी दोनों देश एकदूसरे के साथी रहे हैं। जानिए इस ताजा जंग पर भारत का क्या रुख है और इजराइल से दोस्ती का इतिहास कैसा रहा है?
पीएम मोदी ने नेतन्याहू से निभाई दोस्ती
इजराइल और आतंकी संगठन हमास में जंग के बीच पीएम मोदी ने भारत की ओर से प्रतिक्रिया दी। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि वह इजरायल में आतंकवादी हमलों की खबर से स्तब्ध हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया वेबसाइट X पर कहा, 'इजरायल में आतंकवादी हमलों की खबर से पूरी तरह स्तब्ध हूं। हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं निर्दोष पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ हैं। हम इस कठिन समय में इजरायल के साथ एकजुटता से खड़े हैं।' दरअसल, कई वैश्विक मंचों पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बीच मधुर रिश्तों की केमिस्ट्री देखने को मिली है। पीमएम मोदी और नेतन्याहू दोनों ही कई बार एक दूसरे को अपना सच्चा दोस्त बता चुके हैं। ऐसे में जब दोस्त नेतन्याहू का देश संकट में है, तब पीएम मोदी ने इजराइल के साथ एकजुटता से खड़े होने की बात कहकर ये दर्शा दिया कि वह इजराइल का सच्चा दोस्त है।
हालांकि जानकार कहते हैं कि ऐसे में जब भारत मिडिल ईस्ट इकनॉमिक कॉरिडोर पर आगे बढ़ाना चाहता है और मिडिल ईस्ट में एक्टिव रोल देखना चाहता है, यह घटना भारत के लिए धक्के से कम नहीं है। क्योंकि इस कॉरिडोर में सउदी अरब की अहम भूमिका होगी। लेकिन सउदी प्रिंस सलमान ने इस जंग में आतंकी संगठन हमास का साथ देने का ऐलान कर दिया है।
इजराइल पर हमास के अटैक पर भारत ने क्यों किया इजराइल का सपोर्ट, ये है कारण
इजराइल और भारत की दोस्ती कैसी है, इसका क्या इतिहास रहा है, यह जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि भारत की इजराइल से दोस्ती की पृष्ठभूमि क्या है। यही नहीं, भारत ने क्यों इजराइल पर इस अटैक की निंदा की है। दरअसल, इजराइल पर हमास ने पिछले 50 साल का सबसे बड़ा अटैक किया है। इजराइल ने इस अटैक की 9/11 से तुलना की है। दरअसल, जिस तरह से इजराइल दशकों से आतंकी संगठन हमास के गुरिल्ला वॉर से परेशान रहा है। भारत भी उसी तरह आतंकवाद से ग्रस्त रहा है। सीमा पार आतंकवाद से दशकों से भारत भी मुकाबला कर रहा है। दोनों की स्थिति करीब करीब एक जैसी है। यही कारण है कि भारत इजराइल ही नहीं, दुनिया के किसी भी सभ्य देश पर आतंकी हमले की निंदा करता है।
कैसी रही है भारत और इजराइल की दोस्ती?
भारत और इजराइल की दोस्ती एनडीए यानी अटलजी के कार्यकाल में बढ़ना शुरू हुई। इसके बाद पीएम मोदी के कार्यकाल में यह परवान चढ़ी। लेकिन इससे पहले कांग्रेस के शासनकाल में जब इंदिरा गांधी, राजीव गांधी का दौर था। उस समय भारत के ताल्लुकात इजराइल की अपेक्षा फिलिस्तीन से काफी करीबी थे। 90 के दशक और उससे पहले कांग्रेस के दौर में यासेर अराफात से भारत के अच्छे संबंध थे। यासेर अराफात ने ही 1988 में फिलिस्तीन मुक्ति संगठन की स्थापना की थी। नेहरू-गांधी परिवार के साथ इनकी बहुत करीबियां थीं। इंदिरा गांधी को तो वे अपनी बड़ी बहन मानते थे। तब तक भारत के इजराइल के साथ डिप्लोमेटिक रिलेशन नहीं थे।
भारत की विदेश नीति में पहले इजराइल को लेकर थी दुविधा
संयुक्त राष्ट्र में कई मौकों पर भारत फिलीस्तीन के साथ खड़ा रहा है। साल 2011 में जब फलस्तीन को यूनेस्कों का सदस्य बनाने की मांग उठी तो भारत ने सपोर्ट किया। साल 2015 में फलस्तीन का नैशनल फ्लैग UN में लगा तब भी भारत ने साथ दिया। जानकार कहते हैं, लंबे अरसे तक भारत की विदेश नीति में अगर इस्राइल को लेकर दुविधा थी तो इसकी वजह थी क्योंकि भारत अरब देशों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहता था। लेकिन 90 के दशक में इस नीति में बदलाव आया।
इजराइल से करीबी अटलजी के जमाने से हुई शुरू, पीएम मोदी के समय बनी नई बॉन्डिंग
स्वाभाविक सी बात है कि फिलीस्तीन के आतंकी संगठन हमास ने जिस तरह इजराइल पर अटैक किया। वह पूरे विश्व को स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। विदेश मामलों के जानकार बताते हैं कि ऐसे आतंकी हमले का पक्षधर भारत कभी नहीं रहा है। इसलिए भारत इजराइल के साथ खड़ा है। क्योंकि भारत खुद आंतकवद का दंश झेल रहा है। जहां तक इजराइल से दोस्ती के सुदृढ़ होने का सवाली है, पीएम मोदी के समय दोनों देशों में करीबी आई। इसका उदाहरण 2018 में पीएम मोदी के फिलस्तीन दौरे से लग गया था। उस दौरान मोदी ने अपने संबोधन में स्वतंत्र और संप्रभु फिलस्तीन का जिक्र किया था, लेकिन एकीकृत शब्द बयान में नहीं था। इससे संकेत मिल गए थे कि विदेश नीति में बदलाव हो रहा है।
खास बात यह कि मई 2017 में फलस्तीनी पीएम महमूद अब्बास के भारत दौरे में एकीकृत फिलिस्तीन शब्द इस्तेमाल हुआ था। वहीं, दो साल पहले जब इजराइल और फिलीस्तीन के बीच 11 दिनों तक तनाव था, तब भारत ने कहा था कि विवाद का समाधान बातचीत और आम सहमति से निकाला जाना चाहिए। इस दौरान भारत ने दो राष्ट्र सिद्धांत की बात की थी। जाहिर है भारत दोनों ही देशों के साथ अच्छे संबंध कायम करने की नीति पर चल रहा है।
हमास के इस बड़े हमले की क्या रही होगी वजह? जानें क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
विदेश मामलों के जानकारी डॉ. रहीस सिंह ने इंडिया टीवी डिजिटल को बताया कि 'जब पोलिटिक्स सत्ता में बने रहने के लिए येन केन प्रकारेण साधनों को इकट्ठा करके बने रहना होता है, तो ऐसी स्थिति बनती है, जैसी बेंजामिन नेतन्याहू ने बनाई है। यही कारण है कि इजराइल की आम जनता उनके विरोध में है। मुझे लगता है कि बेंजामिन देश की जूडिशरी और आम नागरिकों के मत के खिलाफ जा रहे हैं। इसी मौके को देखकर हमास ने अटैक किया।'
मिडिल ईस्ट हो रहा विभाजित
यमन कतर, ईरान जैसे देश फिलिस्तीन के पक्ष में हैं। वहीं कल तक सउदी अरब हमास के पक्ष में नहीं था। लेकिन अब सउदी प्रिंस का भी बयान आ गया और वो उन्होंने अपना स्टैंड बदल लिया। अब कह रहे हैं कि वे हमास संगठन के साथ हैं। वहीं इजिप्ट शुरू से ही बिचौलिए की भमिका निभाता रहा है। वह भी फिलिस्तीन के पक्ष में है। रहीस सिंह बताते हैं कि 'तुर्की का जहां तक सवाल है वह अभी इजराइल के पक्ष में है, लेकिन आगे जैसे जैसे परिस्थितियां बदलेंगी। इजराइल लगातार हमास पर अटैक करेगा, तो तुर्की भी फिलिस्तीन के पक्ष में झुकता नजर आ सकता है। यहां एक बात जान लेना बहुत जरूरी है कि ये मुस्लिम देश फिलिस्तीन के पक्ष में हैं, हमास आतंकी संगठन के पक्ष में नहीं। दोनें अलग अलग बात है।'
इजराइल हमास की जंग में दुनिया को क्या नुकसान?
हालांकि इजराइल अब नहीं रुकने वाला है। वह लगातार हमले करेगा। इससे तेल की कीमतें बढ़ेंगी। विकासशील देश, खासकर मिडिल ईस्ट और वो अफ्रीकी देश जो पहले ही रूस और यूक्रेन युद्ध की वजह से खाद्यान्न की कमी से प्रभावित थे, उन्हें इस नई जंग से तेल महंगा होने से दिक्कतें बढ़ेंगी।
हमास को आखिर कौन कर रहा है मदद, यह है बड़ा सवाल
हमास ने ताबड़तोड़ हमला इजराइल पर किया है। उसे लेबनान के हिजबुल्ला संगठन का भी साथ मिला। सवाल यह है कि अत्याधुनिक रॉकट लॉन्चर गाजा पट्टी में हमास के पास कैसे आए। यूक्रेन को कई पश्चिमी देश सपोर्ट कर रहे हैं और रूस को प्रोवोक कर रहे हैं। इसी तरह हमास को भी अत्याधुनिक रॉकेट लॉन्चर, जो इजराइल के रडार की पकड़ में भी नहीं आ पाए। आखिर कौन दे रहा है। जाहिर है आतंकवादी संगठन हमास खुद तो रॉकेट लॉन्चर नहीं बना सकता है। ईरान को जाने वाला लॉन्चर हमास के पास जा रहा है। इसे चीन और रूस भी जान रहे हैं। विदेश मामलों के जानकार डॉक्टर रहीस सिंह बताते हैं कि हमास हो या लेबनान का हिजबुल्ला हो। इनके पीछे ईरान खड़ा है। ईरान के पीछे चीन, रूस खड़े हैं। ये मामला इतना सपाट नहीं है, जितना दिखाई दे रहा है।