ISKCON: इस्कॉन मंदिर का इतिहास क्या है? कैसे हुई थी इसकी शुरुआत, जानिए 'हरे कृष्ण' आंदोलन के बारे में
Hare Krishna (ISKCON) Movement: इस इस्कॉन से दुनिया भर के लोग जुड़े हुए हैं। ऐसे में आज हम इस्कॉन के इतिहास के बारे में बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि आखिर कैसे 'हरे कृष्ण' मूवमेंट की शुरुआत हुई थी।
ISKCON History: 'हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे...' दुनिया भर में इस मंत्र को जपते हुए कृष्ण भक्ति में लीन भक्तगण मथुरा, वृंदावन समेत भारत के अन्य हिस्से में मंदिर से लेकर सड़कों तक पर नजर आ जाएंगे। भारत के अलावा लंदन, बर्लिन और न्यूयॉर्क में भी विदेशी लोग इस महामंत्र का जाप करते हुए जगह-जगह पर मिल जाएंगे। कृष्ण के इस मंत्र में एक अलग ही जादू सा हो जो हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। हरे कृष्ण मंत्र के जाप में लोग इतन मगन रहते हैं कि कुछ देर के लिए उन्हें दीन-दुनिया की कोई खबर भी नहीं रहती।
आज हम बात करेंगे इस मंत्र से जुड़े आंदोलन के बारे में। जी हां आपने सही सुना इस मंत्र को 'हरे कृष्ण मूवमेंट' के नाम से जाना जाता है। आज यह मंत्र इस्कॉन यानी इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस की एक पहचान बन चुकी है। चलिए जानते हैं हरे कृष्ण मूवमेंट और इस्कॉन के इतिहास के बारे में।
इस्कॉन की स्थापना कैसे हुई?
इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (International Society for Krishna Consciousness, ISKCON) को हरे कृष्ण मूवमेंट के नाम से भी जाना जाता है। इस सोसाइटी की स्थापना भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने सन् 1966 में की थी। उनका जन्म कोलकाता में हुआ था। वे भगवान कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे और हमेशा कृष्ण भक्ति में ही लीन रहते थे। कृष्ण भक्ति की वजह से ही उन्होंने गौड़ीय संप्रदाय के अभिलेख लिखने का कार्य भी प्रारंभ किया। इस कार्य का स्वामी प्रभुपाद पर इतना बड़ा प्रभाव पड़ा की उन्होंने हरे कृष्णा मूवमेंट शुरू करने का मन बना लिया। इसके बाद उन्होंने न्यूयॉर्क सिटी में इस्कॉन की स्थापना की थी। भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने सन्यांस लेने के बाद पूरी दुनिया में 'हरे कृष्ण, हरे राम' का प्रचार-प्रसार किया।
ऐसे हुई 'हरे कृष्ण मूवमेंट' की शुरुआत
सन् 1965 में भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद अकेले ही अमेरिका की यात्रा पर निकल गए। न्यूयॉर्क शहर पहुंचने के बाद प्रभुपाद ने अपने हरे कृष्ण मूवमेंट को स्थापित करने के लिए एक साल अकेले ही संघर्ष किया। उन्हें जहां भी अवसर मिलता था व्याख्यान देते थे और अपने शिक्षण से लोगों में रुचि आने लगी। इसे बाद 1966 में न्यूयॉर्क शहर के लोअर ईस्ट साइड पर एक अस्पष्ट स्टोरफ्रंट से काम करते हुए, प्रभुपाद ने फिर भी दुनिया भर में भागीदारी के लिए एक आध्यात्मिक समाज की स्थापना की। उन्होंने इसे इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (ISKCON) नाम दिया। इस तरह अमेरिका में हरे कृष्ण मूवमेंट की शुरुआत हुई। आज दुनिया भर में इस्कॉन में 400 से अधिक मंदिर, 40 ग्रामीण समुदाय और 100 से अधिक शाकाहारी भोजनालाय शामिल हैं।
इस्कॉन का उद्देश्य क्या है?
इस्कॉन का उद्देश्य है कि इसके जरीए देश-दुनिया के लोग ईश्वर से जुड़ सके और वो आध्यात्मिक समझ, एकता और शांति का लाभ प्राप्त कर सकें। इस्कॉन वेदों और वैदिक ग्रंथों की शिक्षाओं का पालन करता है। इसमें श्रीमद्भागवत गीता शामिल है जो श्री राधा कृष्ण के सर्वोच्च व्यक्तिगत पहलू में वैष्णववाद या भगवान (कृष्ण) के प्रति भक्ति सिखाते हैं। इन शिक्षाओं को ब्रह्म-माधव-गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के नाम से जानी जाने वाली उपदेशात्मक परंपरा के माध्यम से प्राप्त की जाती हैं। इस्कॉन के अनुयायी दुनिया भर में गीता और हिंदू धर्म-संस्कृति का प्रचार प्रसार करते हैं।
इस्कॉन के अनुयायी को इन नियमों का रखना होता है ध्यान
इस्कॉन के अनुयायी को इन नियमों का भी पालन करना होता है। उन्हें तामसिक चीजों (मांस-मदिरा, लहसुन और प्याज) से दूर रहना होता है। इसके साथ ही इस्कॉन के अनुयायी को हरे कृष्णा नाम की माला का कम से कम 16 बार जाप करना होता है। इसके अलावा गीता और भारतीय धर्म-इतिहास से जुड़े शास्त्रों का भी अध्ययन करना होता है। इस्कॉन के अनुयायी को गलत आचरण से दूर रहना पड़ता है।
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