Explainer: भारत की इस डील से क्यों उड़ जाएगी दुश्मनों की नींद, चीन-पाकिस्तान को जवाब देगा 'चाबहार'
चाबहार बंदरगाह भारत और ईरान के बीच महत्वपूर्ण कड़ी है। भारत और ईरान के बीच इस बंदरगाह को लेकर अहम समझौता होने जा रहा है। भारत और ईरान के बीच इस डील से नया ट्रेड रूट भी खुल जाएगा।
India Iran Chabahar Port Agreement: भारत और ईरान के बीच एक अहम डील होने जा रही है। इस डील से भारत के पड़ोसी मुल्कों चीन और पाकिस्तान की परेशानी बढ़ने वाली है। भारत अगले 10 वर्षों के लिए चाबहार पोर्ट के प्रबंधन को लेकर ईरान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने जा रहा है। डील होने के बाद चाबहार पोर्ट का प्रबंधन दस वर्षों के लिए भारत को हासिल हो जाएगा। यह पहली बार है जब भारत विदेश में किसी बंदरगाह का प्रबंधन अपने हाथ में लेगा। अब ऐसे में सवाल यह है कि आखिर चाबहार भारत के लिए इतना अहम क्यों है? भारत को इससे किस तरह का लाभ होगा। तो चलिए आपके इन्ही सवालों के जवाब इस रिपोर्ट में देते हैं और साथ ही यह भी बताते हैं कि आखिर यह डील चीन-पाकिस्तान के होश फाख्ता करने वाली क्यों है।
चीन-पाक को झटका
भारत में आम चुनाव चल रहे हैं और ऐसे वक्त में ईरान के साथ चाबहार पोर्ट पर डील को बेहद अहम जाना जा रहा है। दोनों देशों के बीच इस डील से बड़े क्षेत्रीय प्रभाव होंगे। इससे साउथ एशिया से सेंट्रल एशिया के बीच ईरान के रास्ते एक नया ट्रेड रूट खुल जाएगा। चाबहार बंदरगाह को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और बड़े यूरेशियन क्षेत्र के लिए भारत की प्रमुख संपर्क कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। इससे भारत को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के साथ-साथ चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को भी काउंटर करने में मदद मिलेगी। चाबहार को अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) से जोड़ने की योजना है जो भारत को ईरान के माध्यम से रूस से जोड़ता है। यह बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान और अंततः मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान को बायपास करने में सक्षम बनाएगा। चाबहार की वजह से पाकिस्तान के ग्वादर और कराची पोर्ट की अहमियत कम हो जाएगी। ग्वादर पोर्ट में चीन का निवेश है ऐसे में पाकिस्तान के साथ-साथ चीन को भी इससे गहरा झटका लगेगा।
ग्वादर में बैठा 'ड्रैगन'
चाबहार के साथ यहां पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह की बात करना बेहद अहम है। ग्वादर बंदरगाह पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में है। यहां प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है। इसी वजह से चीन ने ग्वादर में भारी निवेश किया है। बलूचिस्तान के लोग लगातार चीन का विरोध भी करते रहे हैं। ग्वादर और चाबहार के बीच करीब 172 किलोमीटर की दूरी है। दोनों ही बंदरगाह काफी बड़े हैं लेकिन उनकी भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वो दक्षिण एशिया में रणनीतिक संतुलन बना या बिगाड़ सकते हैं। पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह होर्मुज जलमार्ग के बहुत करीब है। इससे चीन आसानी से हिंद महासागर तक पहुंच सकता है। यहां से चीन भारतीय नौसेना के अलावा अरब सागर में मौजूद अमेरिकी नौसेना पर भी नजर रख सकता है। इसके अलावा फारस की खाड़ी में क्या गतिविधियां चल रही हैं, इस पर भी चीन आंख रख सकता है।
भारत का जवाब है चाबहार
ग्वादर बंदरगाह कई मायनों में भारत के लिए एक चुनौती रहा है। भारत के सुरक्षा विशेषज्ञ भी इस बात की आशंका जता चुके हैं कि यहां से चीन की जासूसी गतिविधियां बढ़ेंगी। चीन इस क्षेत्र में भारत और अमेरिका की नौसेना की जासूसी करने में सफल होगा। ग्वादर भारत के लिए सीधा खतरा था और इसका केवल एक जवाब था चाबहार। इतना ही नहीं भारत ने चाबहार में 213 किलोमीटर लंबी जरांज-दिलाराम सड़क का काम भी पूरा कर लिया है। यह सड़क अफगानिस्तान के निमरोज प्रांत से निकलती है। इस सड़क ने ईरान को चाबहार-मिलाक रेल मार्ग को अपग्रेड करने में मदद की है। चाबहार पर भारत की मौजूदगी से साफ है कि वो चीन के सामने इस हिस्से में कमजोर नहीं है। चाबहार बंदरगाह ईरान के सिस्तान प्रांत में पड़ता है। ये जगह बलूचिस्तान के दक्षिण में स्थित है। चाबहार ऐसा अकेला बंदरगाह है, जो भारत को ईरान तक जाने का सीधा रास्ता मुहैया कराता है। यह कई देशों के लिए व्यापार के प्रमुख केंद्र है साथ ही ओमान और फारस की खाड़ी के भी करीब है।
योजना से लेकर डील तक
साल 2016 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान यात्रा के दौरान चाबहार बंदरगाह को विकसित किए जाने को लेकर समझौता हुआ था। 2018 में जब तत्कालीन ईरानी राष्ट्रपति हसन रुहानी नई दिल्ली आए थो तो बंदरगाह पर भारत की भूमिका के विस्तार का मुद्दा प्रमुखता से उठा था। इसके बाद जनवरी 2024 में विदेश मंत्री एस जयशंकर की तेहरान यात्रा के दौरान भी इसे प्रमुखता से रखा गया। अब नतीजा यह हुआ है कि भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह को लेकर एतिहासिक डील होने जा रही है। यह डील दोनों देशों के भविष्य में बेहद अहम साबित होगी।
यह भी जानें
भारत और ईरान के बीच बंदरगाह को लेकर नया समझौता मूल अनुबंध की जगह लेगा। नया समझौता 10 साल के लिए वैध होगा और इसे स्वचालित रूप से आगे बढ़ाया जाएगा। चाबहार को लेकर हुए मूल समझौते में केवल बंदरगाह के शाहिद बेहिश्ती टर्मिनल पर परिचालन का अधिकार भारत को मिला है और इसे हर साल नवीनीकृत किया जाता है। खास बात है कि इस बंदरगाह में अफगानिस्तान भी एक हिस्सेदार है। भारत ने 2016 में शाहिद बेहिश्ती टर्मिनल को विकसित करने के लिए ईरान, अफगानिस्तान के साथ एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
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