Explainer: यूक्रेन युद्ध पर अब होने वाली है भारत की बड़ी अग्नि परीक्षा, पीएम मोदी की जादुई कूटनीति निकालेगी संकट का समाधान
नई दिल्ली में सितंबर में जी-20 शिखर सम्मेलन होने जा रहा है। ऐसे में यूक्रेन संकट के समाधान को लेकर भारत को जी-20 का अध्यक्ष होने के नाते संयुक्त घोषणापत्र जारी करना है। इसमें जी-20 के अन्य सभी देशों की सहमति लेना होगा। अपने मित्र देश रूस का भी भारत को खयाल रखना होगा। पीएम मोदी की जादुई कूटनीति इस संकट का समाधान करेगी।
रूस-यूक्रेन युद्ध को 16 माह गुजर जाने के बाद भारत अपनी स्थिति को लेकर अब ऐसे चक्रव्यूह में है, जहां से उसे बाहर निकलने की कड़ी चुनौती है। अब तक रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत ने अपनी बेबाकी से रूस-यूक्रेन ही नहीं, साउथ ईस्ट एशिया से लेकर यूरोप और पश्चिमी देशों तक को साधे रखा है। भारत की ऐसी बेबाक और तटस्थ विदेश नीति को देखकर चीन और अमेरिका तक हैरान हैं। मगर अब भारत की विदेश नीति और कूटनीति की अग्नि परीक्षा की असली घड़ी आ गई है। बावजूद तमाम देशों को लगता है कि करिश्माई प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत इसका सटीक हल जरूर खोज निकालेगा। जो दुनिया के अन्य देशों के लिए भी मिसाल बनेगा। दुनिया जानती है कि पीएम मोदी के पास उन बड़ी से बड़ी वैश्विक समस्याओं का भी समाधान है, जिसके बारे में कोई और देश सोच तक नहीं पाते।
मगर यहां यह जानना जरूरी है कि आखिर भारत अचानक यूक्रेन युद्ध पर ऐसे भंवरजाल की चपेट में कैसे आ गया। अब इस चुनौती से वह कैसे निपटेगा, क्या भारत अब रूस के साथ अपनी पारंपरिक दोस्ती को खो बैठेगा या फिर यूरोप और पश्चिमी देशों के साथ बनाए अब तक के मजबूत संबंधों को गवां बैठेगा, क्या पीएम मोदी की जादुई कूटनीति फिर से पूरी दुनिया को चौंकाने वाली है, क्या पीएम मोदी का कद ऐसे भयानक संकट का समाधान देने के बाद और अधिक बढ़ने वाला है,.. अब भारत का आगे क्या होने वाला है। आइए आपको पूरा मामला समझाते हैं...
G-20 की अध्यक्षता ने भारत पर बनाया नैतिक रूप से दबाव
दरअसल इस दौरान भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है। इस दौरान रूस-यूक्रेन युद्ध समेत, दक्षिण चीन सागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियां और अन्य वैश्विक मुद्दों पर बतौर अध्यक्ष भारत को ही संयुक्त बयान जारी करना नैतिकउत्तरदायित्व है। संयुक्त बयान पर जी-20 के अधिकांश सदस्यों की सहमति होना अनिवार्य होता है। कई बार संकट तब आता है, जब कोई देश आपका मित्र है और जी-20 के देश उसके खिलाफ ही कोई संयुक्त बयान यानि संयुक्त घोषणा पत्र जारी करवाना चाहते हैं, जिसमें अध्यक्ष देश की भूमिका फाइनल होती है। ऐसे बयान को काटना और जारी करवाना दोनों मुश्किल हो जाता है। वहीं कई बार ऐसी भी स्थिति आती है, जब किसी ऐसे देश के खिलाफ संयुक्त बयान जारी हो रहा है, जिस पर अध्यक्ष देश को आपत्ति नहीं है, लेकिन जिस देश के खिलाफ बयान जारी हो रहा है, उसका कोई मित्र देश या शुभचिंतक आपत्ति दायर कर रहा है, जो कि अध्यक्ष देश का भी द्विपक्षीय सहयोगी है तो भी मुश्किल हो सकती है।
ऐसे समझें इस मामले की पेचीदगी
उदाहरण के लिए इस बात को ऐसे समझें...जी-20 के दौरान दक्षिण चीन सागर या हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की अराजकता पर निश्चित रूप से संयुक्त बयान जारी किया जाएगा। जी-20 देशों के बयानों को समाहित करते हुए भारत पूरी मजबूती और आक्रामकता से इस बयान को अपने फाइनल वक्तव्य को जोड़ते हुए जारी करेगा। अमेरिका भी इसमें भारत का साथ देगा। मगर हो सकता है कि रूस इस मसले पर भारत के साथ नहीं हो। मगर यह भी लगभग तय है कि वह इस मसले पर विरोध भी नहीं करेगा... तो यहां भारत के लिए कोई मुश्किल नहीं होगी। यहां तक कि अगर अमेरिकी समेत रूस तक भी चीन के खिलाफ संयुक्त बयान का विरोध कर दें (जिसकी संभावना बिलकुल नहीं है) तो भी भारत को बतौर जी-20 अध्यक्ष यहां चीन के खिलाफ कड़ा सा कड़ा और निंदनीय संयुक्त बयान जारी करने में दिक्कत नहीं आएगी, क्योंकि चीन भारत का दुश्मन है। दूसरे देश भी हिंद-प्रशांत और दक्षिण चीन सागर में चीन की अराजकता से परेशान हैं। यहां अन्य सभी देशों का भारत को साथ मिलेगा। मगर यूक्रेन संकट मामले पर रूस के साथ ऐसा होने पर वह (भारत) बड़े धर्म संकट में फंस जाएगा।
भारत के सामने आ रही ये मुश्किल
यूक्रेन युद्ध मामले में भारत के सामने अब मुश्किल ये आ रही है कि राजधानी दिल्ली में सितंबर में आगामी जी-20 शिखर सम्मेलन होने जा रहा है। इस दौरान भारत को बतौर अध्यक्ष अन्य देशों के वक्तव्यों और सहमति के साथ यूक्रेन संकट पर संयुक्त घोषणा पत्र जारी करना होगा। बता दें कि यूक्रेन युद्ध पर रूस के खिलाफ जी-20 सम्मेलन से कोई भी संयुक्त बयान जारी होता है तो उसकी पूर्ण जवाबदेही जी-20 अध्यक्ष की मानी जाएगी। इसलिए यह सुनिश्चित करना जरूरी हो जाता है कि अध्यक्ष देश सभी पक्षों को संतुष्ट करके व संतुलन बनवाकर ही कोई ऐसा बयान जारी करवाए। मगर इस दौरान जी-20 के सभी देश यूक्रेन संकट पर रूस के खिलाफ संयुक्त बयान जारी करवाने पर अड़े हैं। जबकि रूस भारत का मित्र देश है। इसलिए भारत रूस के खिलाफ ऐसा कोई संयुक्त बयान नहीं जारी कर सकता।
यहां संकट ये है कि कोई न कोई संयुक्त बयान भारत को जारी करना जरूरी होगा। यदि भारत ऐसा कोई संयुक्त बयान जारी करता है, जिससे रूस तो संतुष्ट है, लेकिन अमेरिका समेत दूसरे यूरोपी और पश्चिमी देश सहमत नहीं हैं तो यह कूटनीति के लिहाज से देश के लिए अच्छा नहीं होगा। दूसरी तरफ यदि सभी देश सहमत हैं, मगर रूस सहमत नहीं है तो भी भारत के लिए अग्नि परीक्षा की स्थिति होगी। यह अग्नि परीक्षा भारत के बिलकुल नजदीक आ रही है।
इंडोनेशिया के बाली में भी जारी हुआ था यूक्रेन युद्ध पर संयुक्त बयान
पिछले वर्ष 2022 में इंडोनेशिया के बाली में जब जी-20 सम्मेलन हुआ था तो भी यूक्रेन युद्ध पर एक संयुक्त बयान जारी हुआ था। हालांकि इस संयुक्त बयान को जारी करने से पहले रूस और चीन ने भी अपनी सहमति दे दी थी। इसलिए इंडोनेशिया को कोई ज्यादा दिक्कत नहीं हुई थी। मगर बाली में बतौर अध्यक्ष इंडोनेशिया द्वारा संयुक्त बयान जारी करने के बाद में रूस और चीन ने अब एक वर्ष बाद उस पर आपत्ति जता दी है। ऐसे में भारत को अधिक अलर्ट रहने की जरूरत है। यहां भारत को यूरोपीय देशों को भी संतुष्ट करना है और रूस को भी। क्योंकि यदि भारत कोई ऐसा संयुक्त बयान जारी करता है, जिस पर जी-20 के सदस्य देश सहमत नहीं हैं तो भी भारी संकट होगा। वहीं दूसरी तरफ यदि यूरोपी देशों को संतुष्ट करने के लिए भारत उनके वक्तव्यों पर सहमति देता है तो रूस नाराज हो सकता है। इसलिए भारत अब यहां अपनी दुर्लभ कूटनीति का प्रदर्शन करेगा। ताकि रूस और जी-20 के अन्य देश समेत यूक्रेन व यूरोप और पश्चिम तक संतुष्ट हों।
फ्रांस चाहता है सफल हो भारत की जी-20 अध्यक्षता
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के बीच पिछले सप्ताह पेरिस में भी यूक्रेन संकट समेत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की गतिविधियों पर व्यापक चर्चा हो चुकी है। मैक्रों पीएम मोदी के बयानों से सहमत हैं। वह पीएम मोदी के घनिष्ठ मित्रों में से हैं। सूत्र कहते हैं कि मैक्रों ने भारत की जी-20 अध्यक्षता को सफल बनाने का वादा भी किया है। क्योंकि यदि कोई संयुक्त बयान जारी नहीं हो पाता तो भी भारत की जी-20 अध्यक्षता विफल मानी जाएगी। वहीं यदि ऐसे बयान जारी होता है, जिस पर रूस या दूसरा पक्ष संतुष्ट नहीं है तो भी यह भारत के लिए ठीक नहीं होगा। सितंबर में दिल्ली में जी-20 की बैठक होनी है। यहां संकट ये है कि बाली में जो संयुक्त बयान जारी हुआ था, उसके बावजूद यूक्रेन का संकट कम नहीं किया जा सका है। जबकि बाली वाले बयान पर रूस और चीन ने भी बाद में असहमति जता दी थी। ऐसे में अब यूरोपीय देश चाहते हैं कि बाली या उससे कुछ बेहतर संयुक्त बयान यूक्रेन संकट को दूर करने के लिए भारत जी-20 अध्यक्ष के तौर पर जारी करे।
पीएम मोदी में है विलक्षण कूटनीतिक क्षमता
नई दिल्ली में सितंबर में होने वाले जी-20 सम्मेलन से पहले भारत अभी से बतौर अध्यक्ष संयुक्त घोषणा-पत्र में यूक्रेन संकट को लेकर आम सहमति बनाने का प्रयास करने में जुट गया है। विश्व जानता है कि यूक्रेन संकट के मसले को लेकर पश्चिमी देशों और रूस-चीन के गठजोड़ के बीच गहरे मतभेद रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ दुनिया ने देखा है कि पश्चिमी देशों के तमाम प्रतिबंधों और विरोधों के बावजूद किस तरह से भारत ने खुलकर रूस का साथ दिया है। वहीं दूसरी तरफ वह मानवीय मुद्दों के मामले पर खुल्लम-खुल्ला यूक्रेन के साथ भी भारत खड़ा रहा है। पीएम मोदी रूसी राष्ट्रपति पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से फोन पर कई दोर की वार्ता कर चुके हैं। पीएम मोदी अब ऐसे ग्लोबल लीडर हो चुके हैं, जिनकी बात को कोई भी देश काटना नहीं चाहता।
ये देश देंगे पीएम मोदी का साथ
यूक्रेन युद्ध के मसले पर इतना बेहतरीन संतुलन सिर्फ पीएम मोदी की ही देन है। वह पल शायद कोई भूल नहीं पाएगा, जब रूस पर प्रतिबंधों के बाजवूद कच्चा तेल खरीदने पर पश्चिमी देशों ने भारत को नसीहत देने का प्रयास किया तो विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यह कह कर उनकी बोलती बंद करा दी कि यह तय करने का अधिकार सिर्फ भारत के पास है कि वह किससे तेल खरीदेगा और किससे नहीं। वहीं दूसरी तरफ तजाकिस्तान में सितंबर 2022 में हुए एससीओ सम्मेलन में पीएम मोदी ने पुतिन से यह युग युद्ध का नहीं है कहकर पश्चिमी देशों में भारत की कूटनीति का डंका बजवाया था। अब एक बार फिर दुनिया के कई देशों को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी विलक्षण प्रतिभा और वाकपटुता से ऐतिहासिक कूटनीतिक संयुक्त घोषणा पत्र जारी करवाने में सफल हो जाएंगे। इसकी वजह ये है कि फ्रांस, आस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका, सऊदी अरब, इंडोनेशिया, जापान, मेक्सिको, दक्षिण कोरिया और अमेरिका जैसे देश भी इस मामले पर भारत का साथ देने वाले हैं।
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