Explainer: जी-20 समिट में इकोनॉमिक कॉरिडोर पर बनी सहमति, कितना लंबा रूट, भारत को क्या होगा फायदा? जानें सबकुछ
चीन के BRI को भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर से करारा जवाब मिलने जा रहा है। इस पर जी20 समिट में घोषणा के बाद से काम शुरू होने को लेकर बैठक भी हो गई है। भारत किन कारणों से इस इकोनॉमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट में जुड़ा है। यह चीन के 'बीआरआई' का कैसे बेहतर विकल्प होगा? कितना बड़ा होगा रूट। यहां मिलेगा इन सवालों का जवाब।
G-20 Summit and IMEC : जी20 समिट का सफलतापूर्वक समापन हुआ। भारत की अध्यक्षता में राजधानी नई दिल्ली में संपन्न हुई इस जी20 समिट में कई उपलब्धियां रहीं। इनमें सबसे खास है 'इंडिया मिडिल ईस्ट यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर' यानी 'आईएमईसी'। इस प्रोजेक्ट में भारत सहित कई मिडिल ईस्ट के देश और यूरोपीयन यूनियन के देशों को फायदा मिलेगा। भारत की इस पहल को सऊदी अरब और यूरोपीय देशों ने काफी सराहा है। इस कॉरिडोर से भारत को क्या फायदा होगा? कितना लंबा कॉरिडोर होगा, समुद्री मार्ग कितना लंबा होगा? यहां जानिए इस अहम कॉरिडोर के बारे में सबकुछ।
जी20 समिट 9 और 10 सितंबर को नई दिल्ली में आयोजित किया गया। इस समिट की सबसे खास बात रही कि इसमें सऊदी अरब, भारत, अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच एक मेगा कॉरिडोर बनाने का निर्णय लिया गया है। इस ऐतिहासिक प्रोजेक्ट के तहत यूरोप और भारत को मिडिल-ईस्ट के जरिए कनेक्ट किया जाएगा। इससे पहले कि हम इस कॉरिडोर के रूट, लंबाई, भारत को मिलने वाले फायदे और चीन व पाकिस्तान की इससे होने वाली परेशानी जैसे पॉइंट्स को बताएं, पहले यह बता दें कि इस पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के बीच में बैठक हुई। इसें पीएम मोदी और प्रिंस ने इस कॉरिडोर को लेकर अपनी अपनी बात रखी।
जानिए इकोनॉमिक कॉरिडोर पर क्या बोले पीएम मोदी और सऊदी प्रिंस सलमान?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरब के सुल्तान के साथ सोमवार बैठक की। इसमें पीएम मोदी ने कहा कि 'कल हमने भारत, पश्चिमी एशिया और यूरोप के बीच कॉरिडोर स्थापित करने के लिए ऐतिहासिक शुरुआत की है। इससे न केवल दोनों देश आपस में जुड़ेंगे बल्कि एशिया, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच आर्थिक सहयोग, ऊर्जा के विकास और डिजिटल कनेक्टिविटी को बल मिलेगा। वहीं प्रिंस सलमान ने पीएम मोदी के लिए कहा कि 'मैं आपको जी20 शिखर सम्मेलन के प्रबंधन और मध्य पूर्व, भारत और यूरोप को जोड़ने वाले इकोनॉमिक कॉरिडोर सहित हासिल की गई पहलों के लिए बधाई देता हूं, जिसके लिए आवश्यक है कि हम इसे वास्तविकता में बनाने के लिए लगन से काम करें।'
यह कॉरिडोर बनेगा तो भारत को समय की कितनी होगी बचत?
इस कॉरिडोर के बनने के बाद भारत से मिडिल ईस्ट होते हुए यूरोप तक सामान के आयात निर्यात में काफी सुगमता देखने को मिलेगी। भारत से यूरोप तक यदि सामान भेजा जाएगा तो आने जाने में 40 फीसदी समय की बचत होगी। अभी भारत से किसी भी कार्गो को शिपिंग से जर्मनी यदि सामान पहुंचाना हो तो एक महीने से ज्यादा यानी करीब 36 दिन का समय लगता है। लेकिन इस इकोनॉमिक कॉरिडोर के बनने के बाद इस रूट से 14 दिन का समय कम हो जाएगा। यानी 22 दिन में ही सामान पहुंच जाएगा। इकोनॉमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट में भारत, यूएई, सउदी अरब, अमरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीयन यूनियन सहित कुल 8 देशों को होगा। इसका फायदा इन 8 देशों के अलावा इजरायल और जॉर्डन को भी मिलेगा।
कितना लंबा होगा यह कॉरिडोर?
यह कॉरिडोर मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 6 हजार किलोमीटर लंबा होगा। इसमें करीब 3 हजार 500 किलोमीटर का हिस्सा समुद्री मार्ग होगा। इस प्रस्तावित इकोनॉमिक कॉरिडोर की घोषणा के बाद प्रिंस सलमान और पीएम मोदी की बैठक के साथ ही इसे प्रोजेक्ट को नेक्स्ट लेवल पर ले जाने पर ठोस चर्चा हुई है। इस इकोनॉमिक कॉरिडोर के बनने के बाद से ही भारत, मिडिल ईस्ट और यूरोप के बीच एक नया कारोबार सिस्टम बनेगा। जिसका फायदा भारत को निश्चित रूप से होगा।
भारत के इस इकोनॉमिक प्रोजेक्ट से जुड़ने की क्या हैं बड़ी वजह?
- इस इकोनॉमिक कॉरिडोर में न सिर्फ भारत और मिडिल ईस्ट व यूरोप, बल्कि अमेरिका भी साझेदार है। यह पहली बार होगा जब अमेरिका और भारत मिडिल ईस्ट में भी साझेदार बने हैं। इससे पहले भारत और अमेरिका इंडोपैसिफिक क्षेत्र में साथ काम कर रहे थे।
- भारत की मध्य एशिया से जमीनी रूप से कनेक्टिविटी पाकिस्तान की वजह से नहीं हो पाती है। इस कनेक्टिविटी में पाकिस्तान सबसे बड़ी बाधा रहा है। इस इकोनॉमिक कॉरिडोर से पाकिस्तानी बाधा का बड़ा तोड़ मिल गया है। पाकिस्तान 1991 से ही इस कोशिश को रोकने में लगा हुआ था।
- निश्चित रूप से अरब देशों के साथ भारत की भागीदारी हाल के समय में बढ़ी है। ओपेक देशों खासकर सउदी अरब से द्विपक्षीय कारोबार और रणनीतिक पार्टनरशिप भी बढ़ी है। ऐसे में यूएई व अरब गवर्नमेंट भी भारत के साथ स्थाई कनेक्टिविटी बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
- भारत और ईरान के संबंध हाल के समय में सुधरे हैं। चीन और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट की काट में भारत ईरान के चाबहार पोर्ट को डेवलप करके मध्य एशिया तक कारोबार की कोशिश में रहा है। लेकिन अमेरिका के ईरान पर प्रतिबंधों का असर भारत के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर पड़ा। लिहाजा इस वजह से भारत ने चाबहार प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डालकर भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर पर फोकस किया।
- अमेरिका के भी इस कॉरिडोर से जुड़ने के बाद उसे उम्मीद है कि इस मेगा कनेक्टिविटी वाले प्रोजेक्ट से अरब प्रायद्वीप में पॉलिटिकल स्टेबिलिटी आएगी। साथ ही अमेरिका और मिडिल ईस्ट के देशों के बीच रणनीतिक भागीदारी और ताकतवर होगी। वहीं भारत को भी अमेरिका और अरब व यूएई की सक्रियता का रणनीतिक लाभ मिलेगा। क्योंकि वैसे भी जब बिजनेस रिलेशन अच्छे होते हैं तो छोटे मोटे विवाद भी नजरअंदाज कर दिए जाते हैं।
- भारत को इस कॉरिडोर से अन्य फायदों के साथ यह फायदा भी होगा कि यह कॉरिडोर मुंबई से शुरू होगा और चीन के बीआरआई का बेहतर विकल्प होगा। यूरोप तक सीधी पहुंच से भारत के लिए सामान का आयात निर्यात करना यानी कारोबार करना और आसान हो जाएगा।
जानिए चीन के सिल्क रोड का कैसे बेहतर विकल्प होगा IMEC कॉरिडोर?
चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के बहाने कारोबार करते करते छोटे देशों को कर्ज के जाल में फंसाने की कई वर्षों से जुगत में लगा हुआ है। ऐसे में नया कॉरिडोर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का बेहतर विकल्प बनकर उभरेगा। कई देशों को चीन के कर्ज के जाल से मुक्ति मिलेगी। जी20 में अफ्रीकी संगठन के 21वें सदस्य बनने के बाद बीआरआई के माध्यम से चीन की अफ्रीकी देशों पर कर्ज का दबाव बनाने की कोशिश को रोकने में मदद मिलेगी।
भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर पर चीन ने निकाली भड़ास
भले ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग जी20 समिट के लिए भारत नहीं आ सके। उन्होंने पीएम ली कियांग को भारत भेज दिया, लेकिन चीन की पूरी नजर इस समिट पर गड़ी रही। जब चीन को पता चला कि उसकी महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के विकल्प के रूप में भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाए जाने पर सहमति हुई है तो वह बौखला गया। चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने इस बारे में लिखा कि 'दिल्ली में आयोजित जी20 समिट में एकबार फिर अमेरिका ने अपनी पुरानी योजना को ही आगे बढ़ाया है। आगे लिखा कि 'अमेरिका ने पहले भी इस योजना के विस्तार का खाका पेश किया है। इस इकोनॉमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट का उद्देश्य चीन को दुनिया में आइसोलेट करना है।' चीन ने इस कॉरिडोर के बहाने अमेरिका पर अपनी भड़ास निकाली है।