Explainer: लंबे समय तक गलत तरीके से लोगों को कैद में रखने पर सुप्रीम कोर्ट क्यों चिंतित है?
हालही में तमिलनाडु के पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी को जब जमानत मिली तो सुप्रीम कोर्ट में इस बात पर चर्चा हुई कि लंबे समय तक जेल में रहने के बाद बेदाग बरी होने वाले आरोपियों को मुआवजा मिलना चाहिए या नहीं।
नई दिल्ली: भारत में जब कोई इंसान कोर्ट और कचहरी के मामले में फंसता है तो ये माना जाता है कि मामला लंबा चलेगा। कई बार न्याय मिलने में बहुत ज्यादा देरी हो जाती है। कई बार तो कैदी कई सालों तक जेल में कैद रहता है और बाद में बाइज्जत बरी हो जाता है। ऐसे में कैदी के जीवन के कई अहम साल जेल में ही बीत चुके होते हैं। सुप्रीम कोर्ट के लिए लंबे समय तक गलत तरीके से किसी इंसान को कैद रखना चिंता का विषय है।
अनुच्छेद 21 का उल्लंघन!
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 इंसान को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। अनुच्छेद 21 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। वहीं राज्य द्वारा किसी व्यक्ति को गलत तरीके से लंबे समय तक कैद में रखना निश्चित रूप से अनुच्छेद 21 के तहत उसे दिए गए कई मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) में अपने ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने अमेरिकी संविधान की उचित प्रक्रिया की अवधारणा को पढ़ा था और इस बात पर जोर दिया था कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया निष्पक्ष और उचित होनी चाहिए।
हालही में तमिलनाडु के पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी को जमानत मिली तो सामने आई ये बात
हालही में जब नकदी घोटाले से जुड़े मनी-लॉन्ड्रिंग मामले में तमिलनाडु के पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी को जमानत मिली तो सुप्रीम कोर्ट ने सालों के नुकसान के लिए लंबे समय तक जेल में रहने के बाद बेदाग बरी होने वाले आरोपियों को मुआवजा देने की जरूरत की बात की। ये मुआवजा उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए मिलना ही चाहिए।
न्यायमूर्ति एएस ओका की अगुवाई वाली पीठ ने कहा था कि किसी दिन, अदालतों और विशेष रूप से संवैधानिक न्यायालयों को, हमारी न्याय वितरण प्रणाली में उत्पन्न होने वाली एक अजीब स्थिति पर निर्णय लेना होगा। ऐसे मामले हैं, जहां विचाराधीन कैदी के रूप में बहुत लंबे समय तक कैद में रहने के बाद आपराधिक अदालतों द्वारा आरोपी को साफ बरी कर दिया जाता है। ऐसे में अभियुक्त के जीवन के कई अहम साल बर्बाद हो जाते हैं।
भारत में कोई कानून नहीं
कानून के जानकारों का कहना है कि भारत में गलत अभियोजन के पीड़ितों को मुआवजा देने का कोई कानून नहीं है। भारत ने 1968 में कुछ आपत्तियों के साथ ICCPR की पुष्टि की थी, लेकिन न्याय की इस गड़बड़ी के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए अभी तक कोई कानून नहीं है।
अगर कोई अभियुक्त निर्दोष बरी हो जाता है और वह अभियोजन एजेंसी या 'राज्य' से मुआवजा चाहता है तो भारतीय विधायी क्षेत्र में उसे खालीपन मिलता है। हालांकि वह झूठे मामले में फंसाए जाने के लिए शिकायतकर्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकता है लेकिन राज्य के खिलाफ नहीं कर सकता। वह मुआवजे का दावा करने के लिए अनुच्छेद 21 का इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन मुआवजे का कोई अधिकार ही नहीं है।
विदेश में क्या है कानूनी स्थिति?
यूके, यूएस और जर्मनी जैसे कई देशों में ये कानून है कि अगर कोई शख्स मामले में बरी हो जाता है तो उसे मुआवजा दिया जाए। इन देशों ने इसकी वैधानिक जिम्मेदारी ली है।