Explainer: इंसान और कुत्तों का हजारों साल का साथ, फिर क्यों बच्चों को नोंच रहे आवारा कुत्ते, राहगीरों पर कर रहे हमला?
देशभर से लगभग हर दिन आवारा और पालतू कुत्तों के हमले में लोगों की जान चली जाती है और तमाम लोग घायल भी होते हैं। सवाल ये है कि आखिर कुत्तों के इस हिंसक स्वभाव के पीछे वजह क्या है?
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नई दिल्ली: 12 साल की उम्र और नटखट मन को अपने दिल में समेटे तनीषा, खेत पर अपने मां-बाप को खाना देने जाती है। मां-बाप भी बिटिया के इस जिम्मेदारी वाले स्वभाव पर फूले नहीं समाते हैं। लेकिन ये खुशी बहुत ज्यादा देर तक नहीं टिकती क्योंकि खाना देकर खेत से वापस लौटते समय बच्ची पर कुत्तों का झुंड हमला कर देता है और उसे नोंच डालता है। खून से लथपथ बच्ची को परिजन हॉस्पिटल लेकर जाते हैं लेकिन डॉक्टर उसे मृत घोषित कर देते हैं। ये मामला मंगलवार (12 मार्च) को मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले की भानपुरा तहसील के लोटखेड़ी गांव से सामने आया था।
हालही में राजस्थान के बानसूर में भी आवारा कुत्तों के हमले में एक 9 साल की बच्ची की मौत हो गई थी। कुत्तों ने बच्ची को 40 जगहों पर काटा था, जिससे बच्ची के शरीर का कई जगहों से मांस तक गायब हो गया था। कुत्तों ने बच्ची का पेट पूरी तरह नोच लिया था।
इसी तरह हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में कुत्ते द्वारा हमले की खबर सामने आई थी। एक अधिकारी ने मंगलवार को बताया था कि घुमारवीं इलाके में एक आवारा कुत्ते के हमले में 20 लोग घायल हो गए। नगर परिषद घुमारवीं की अध्यक्ष रीता सहगल ने कहा कि कुत्ता अचानक वहां से गुजरने वाले लोगों पर झपट पड़ता है और उन्हें काट लेता है।
ऐसे ना जानें कितने मामले पूरे देश से हर दिन सामने आते हैं, जिसमें आवारा और पालतू कुत्तों के हमले में लोगों की जान चली जाती है और कई लोग घायल भी होते हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि कुत्तों के इस हिंसक स्वभाव के पीछे वजह क्या है? इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या कोई ऐसा तरीका नहीं, जिससे इस तरह की घटनाओं पर लगाम लग सके?
कितना पुराना है इंसान और कुत्ते के बीच का संबंध?
तमाम रिपोर्ट्स में बताया जाता है कि मनुष्य और कुत्ते के बीच संबंध की शुरुआत 12-14 हजार साल पहले यूरेशिया में कहीं हुई थी, जहां उनके बीच का प्रेम पहली बार उभरा था। कुत्ते को पालतू बनाकर रखना प्राचीन काल से चला आ रहा है। मध्य प्रदेश के भीमबेटका में, प्रागैतिहासिक चित्रों (7000 ईसा पूर्व) में कुत्तों की कई आकृतियां दिखाई देती हैं। हड़प्पा की टेराकोटा मूर्तियों में भी कुत्ते दिखाई पड़ते हैं।
अगर वेदों की बात करें तो कुत्तों का सबसे पहले जिक्र ऋग्वेद में मिलता है, जहां इंद्र के दिव्य कुत्ते सरमा ने पनी द्वारा चुराई गई गायों का पीछा किया और उन्हें बरामद किया था। सारामा और पनी के बीच की बातचीत से कुछ दिलचस्प तथ्य सामने आते हैं: कि कुत्ता एक चरवाहा था, जिसे देहाती जनजातियों द्वारा पाला जाता था।
हिंसक क्यों हो रहे कुत्ते?
विशेषज्ञों का मानना है कि कुत्तों के हिंसक स्वभाव के पीछे सबसे बड़ी वजह उनकी बढ़ती संख्या है। एक स्वस्थ कुतिया एक साल में करीब 20 बच्चों को जन्म देने की क्षमता रखती है। ऐसे में कुत्तों की संख्या तो तेजी से बढ़ रही है लेकिन उन्हें पर्याप्त खाना नहीं मिल पाता। ऐसे में वह हिंसक हो जाते हैं और छोटे बच्चों पर हमला करके उनके मांस से अपनी भूख मिटाते हैं। जबकि एक कुत्ते को सामान्य तौर पर अगर 5 से 6 रोटी दिन की मिल जाएं तो वह हिंसक नहीं होगा।
कुत्तों के हिंसक होने की एक वजह उनके बच्चों का किसी वाहन के नीचे कुचलकर मरना भी है। दरअसल कुत्ते अपने बच्चों को लेकर बेहद संवेदनशील होते हैं। अगर किसी रोड एक्सीडेंट में या अन्य वजह से कुत्ते के बच्चे की मौत हो जाती है तो वह हिंसक हो जाते हैं और वाहनों को ही अपना दुश्मन समझ बैठते हैं। ऐसे में अक्सर ये देखा गया है कि कुत्ते वाहनों के पीछे भागते हैं, जिससे वाहन चालक का संतुलन बिगड़ता है और वह हादसे का भी शिकार हो जाते हैं।
ये पाया गया है कि सभी आवारा या पालतू कुत्ते हिंसक नहीं होते हैं। लेकिन अगर कोई एक कुत्ता आक्रामक है तो वह झुंड के बाकी कुत्तों को भी आक्रामक बना सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर आप अपने आसपास कुत्तों को हिंसक होते हुए देख रहे हैं तो इसकी फौरन सूचना नगर निगम या संबंधित संस्था को देनी चाहिए। क्योंकि कुत्तों का हिंसक व्यवहार तेजी से उनके झुंड में फैलता है।
कई बार अगर आप कुत्तों को फीड कराते हैं और कुत्तों को ऐसा लगता है कि फीड कराने वाले शख्स पर कोई हमला कर रहा है तो कुत्ते हिंसक स्वभाव अपनाते हैं। वे उन लोगों की रक्षा करते हैं, जो उन्हें खाना खिलाते हैं। ऐसे में अगर कोई अनजान व्यक्ति फीडर के घर के आसपास दिखता है तो ये कुत्ते उस पर हमला कर सकते हैं।
कुत्तों के हमले के लिए कौन जिम्मेदार?
2001 में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आया था, जिसके मुताबिक आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण की जिम्मेदारी नागरिक संस्थाओं की बताई गई थी। यानी नागरिक संस्थाएं, नगर निगम या नगर पालिका के साथ मिलकर कुत्तों के लिए अभियान चला सकती हैं लेकिन संसाधनों का इतना अभाव है कि ये काम बड़े स्तर पर नहीं हो पाता। ऐसे में न केवल कुत्तों की संख्या बढ़ रही है, बल्कि उनके द्वारा किए जाने वाले हमलों की संख्या भी बढ़ रही है।
वाहन के हॉर्न और शोर भी कुत्तों के हमले के लिए जिम्मेदार हैं। मानव की जितनी आबादी बढ़ रही है, उतने ही वाहन भी बढ़ रहे हैं। इन वाहनों के विविध तरीके के हॉर्न की आवाज कुत्तों में चिड़चिड़ापन पैदा करती है। इसकी आवाज से उन्हें खतरा महसूस होता है और वह हिंसक रुख अख्तियार करते हैं और हमला कर देते हैं।
कुत्तों के हमलावर रवैये के पीछे असामाजिक तत्वों का उन्हें बेवजह परेशान करना है। कुछ लोग कुत्तों और उनके बच्चों को पीटते हैं तो कुछ उनकी पूछ में पटाखे बांधकर परेशान करते हैं। ऐसे तमाम मामले सामने आ चुके हैं, जिससे कुत्तें चिड़चिड़े हुए और फिर हमला करने लगे।
इस मामले में एक बड़ी जिम्मेदारी सरकार और प्रशासन की भी है। वह इस मामले में उतना जागरुकता नहीं दिखा रहे, जितने की जरूरत है। अगर कुत्तों की नसबंदी का काम तेज किया जाए तो उनकी बढ़ती हुई संख्या को भी नियंत्रित किया जा सकेगा। अगर उनकी संख्या नियंत्रित हो गई तो उन्हें फीड कराने की दिशा में भी सुधार लाया जा सकता है। ऐसे में वह हिंसक होने से बचेंगे।
भारत में कितनी है आवारा और पालतू कुत्तों की संख्या?
साल 2021 में प्रकाशित The State of Pet Homelessness Report के मुताबिक, भारत में 6.2 करोड़ आवारा कुत्ते होने का अनुमान है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 3.1 करोड़ पालतू कुत्ते होने का अनुमान है। हालांकि अब ये संख्या बढ़ भी सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार, हर साल वैश्विक स्तर पर कुत्तों के हमलों से 55,000 से ज्यादा लोग मारे जाते हैं, जिसमें रेबीज के कारण होने वाली वैश्विक मौतों में से 36% मौतें भारत में होती हैं और दक्षिण-एशिया क्षेत्र में 65% मौतें होती हैं।
भारत में मानव रेबीज के लगभग 97% मामले कुत्तों की वजह से होते हैं। इसके बाद बिल्लियां (2%), गीदड़, नेवले एवं अन्य (1%) आते हैं।
सरकार क्या कदम उठा रही? नियम क्या हैं?
सरकार ने साल 2030 तक भारत में कुत्तों से होने वाले रेबीज के मामलों से निपटने के लिए राष्ट्रीय कार्ययोजना शुरू की है। इसके तहत आवारा कुत्तों की जनसंख्या पर लगाम लगाना और उनका प्रबंधन करना स्थानीय निकायों का काम है।
वहीं अगर नियम की बात करें तो कुत्ते को उसकी जगह से तब तक हटाया नहीं जा सकता, जबतक वह मानव जीवन के लिए खतरा ना बन जाए। पीड़ित व्यक्ति एमसीडी या नगर निगम अधिकारियों समेत किसी एनजीओ से संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा इन्हीं लोगों के जरिए कुत्तों की नसबंदी भी करवाई जा सकती है। लेकिन कुत्ते को वहीं पर वापस छोड़ा जाएगा, जहां से उसे उठाया गया है।