Explainer: दक्षिण एशिया पर ही सबसे ज्यादा क्यों बरसता है प्रदूषण का कहर? कैसे मिलेगी इस समस्या से निजात? जानें
सर्दियां आते ही दक्षिण एशियाई देशों के कई बड़े इलाके धुंध की चादर में लिपट जाते हैं और वायु प्रदूषण के चलते लोगों का जीना मुहाल हो जाता है।
सर्दियों का मौसम आते ही दिल्ली-NCR समेत देश के कई शहर वायु प्रदूषण की चपेट में आ जाते हैं। धुंध की चादर में अपनी जगह बनाए हुए जहरीले प्रदूषक तत्व लोगों का जीना मुहाल कर देते हैं। दिल्ली और आसपास के इलाकों में तो हालात इस कदर खराब हो गए हैं कि पटाखों पर बैन लगा हुआ है, स्कूलों को बंद करना पड़ा है और लोगों को खुले में टहलने से भी रोका गया है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर सर्दियों में प्रदूषण का यह स्तर इतना क्यों बढ़ जाता है और इसकी चोट दक्षिण एशिया को ही क्यों लगती है।
दक्षिण एशिया में दूसरी जगहों के मुकाबले ज्यादा क्यों है प्रदूषण?
लोगों के मन में अक्सर यह सवाल आता है कि आखिर ठंड का मौसम आते ही दक्षिण एशिया ही प्रदूषण की चपेट में क्यों आता है? एक्सपर्ट्स की मानें तो पिछले 2 दशकों में इस इलाके में तेजी से औद्योगीकरण हुआ है, आर्थिक विकास ने रफ्तार पकड़ी है और जनसंख्या भी तेजी से बढ़ी है। इन सारी चीजों के चलते डीजल-पेट्रोल और अन्य उर्जा स्रोतों की खपत में भी बढ़ोत्तरी हुई है, और प्रदूषण का स्तर भी बढ़ा है। इन सबके अलावा दक्षिण एशिया में जानलेवा प्रदूषण के पीछे और भी कई बड़े कारण हैं।
पराली की वजह से हर साल घुटने लगता है दिल्ली-NCR का दम
दिल्ली-NCR में सर्दियों में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा पराली का जलाया जाना है। इस इलाके में 38 फीसदी से ज्यादा प्रदूषण धान के खेतों की पराली जलाने से ही होता है। दिल्ली में पिछले कुछ सालों गाड़ियों की संख्या भी बेतहाशा बढ़ी है और प्रदूषण में इनसे निकले धुएं का योगदान भी कम नहीं है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली की सड़कों पर करीब 80 लाख गाड़ियां दौड़ रही हैं और प्रति हजार लोगों पर यहां 472 वाहन हैं। यानी कि दिल्ली में हर 2 व्यक्ति पर औसतन एक गाड़ी है।
प्रदूषण के खतरे से निपटने के लिए क्या कर रही हैं सरकारें?
सरकारें प्रदूषण पर काबू पाने के लिए तमाम तरह के तरीके अपना रही हैं, लेकिन ये सभी नाकाफी साबित हुए हैं। भारत की बात करें तो यहां ग्रीन फ्यूल्स पर जोर दिया जा रहा है, पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को बेहतर करने की कोशिश की जा रही है और इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। दूसरी बात यह कि ‘धूल के कण’ और ‘प्रदूषक तत्व’ सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करते हैं। उदाहरण के तौर पर पंजाब में जलाई गई पराली का असर दिल्ली में दिखता है, ऐसे में सही कोऑर्डिनेशन बेहद जरूरी हो जाता है।
आखिर कैसे मिलेगी प्रदूषण की इस गंभीर समस्या से निजात?
एक्सपर्ट्स की मानें तो दिल्ली-NCR समेत दक्षिण एशिया के प्रमुख शहरों में प्रदूषण की समस्या से निजात पाना कोई मुश्किल काम नहीं है, लेकिन इसके लिए नीति-नियंताओं को इच्छाशक्ति दिखानी होगी। सरकारों को स्थानीय जरूरतों को देखते हुए कानून बनाने होंगे और यह तय करना होगा कि कृषि एवं अन्य गतिविधियों से निकले कचरे का समुचित निपटारा करना होगा। उदाहरण के तौर पर पराली से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए कटाई की बेहतर मशीनों पर सब्सिडी दी जा सकती है।