न्यूयॉर्क: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के दौरे पर हैं। ऐसे में ये चर्चा भी हो रही है कि अगर भारत को यूएन की सुरक्षा परिषद का सदस्य बना दिया जाता है तो उसके पास कितनी शक्तियां आ जाएंगी और वो कौन सा देश है, जो भारत की इस सदस्यता के मिलने की राह में रोड़ा बन रहा है। फिलहाल यूएन की सुरक्षा परिषद में केवल 5 स्थायी देश हैं, जिनमें अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, चीन, फ्रांस और रूस हैं।
क्या है सुरक्षा परिषद के गठन की वजह?
सुरक्षा परिषद का काम पूरी दुनिया में शांति बनाए रखने और सामूहिक सुरक्षा के सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित करने का है। इसका गठन साल 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के समय में हुआ था। इसमें स्थायी और अस्थायी सदस्य होते हैं। अस्थायी सदस्यों को 2 साल के लिए चुना जाता है।
अस्थायी सदस्य को चुनने की मुख्य वजह ये है कि सुरक्षा परिषद में क्षेत्रीय संतुलन कायम हो। भारत कई बार इस परिषद का अस्थाई सदस्य रहा है। लेकिन भारत इसमें स्थायी सदस्यता चाहता है।
कौन है भारत की राह का रोड़ा?
सुरक्षा परिषद में 5 स्थायी सदस्य देश हैं, जिसमें से 4 (अमेरिकी, यूके, फ्रांस और रूस) भारत की स्थायी सदस्यता के समर्थन में हैं, लेकिन चीन इस बात का विरोधी रहा है और वह नहीं चाहता कि इतने बड़े प्लेटफॉर्म पर भारत भी स्थायी सदस्य के रूप में शामिल हो।
भारत की बढ़ती ताकत से चीन परेशान है और उसे लगता है कि अगर भारत स्थायी सदस्य बना तो वह इंटरनेशनल लेवल पर चीन के समानांतर स्टैंड करेगा। ये बात चीन बिल्कुल भी हजम नहीं कर पा रहा है।
स्थायी सदस्यता मिलने से भारत को क्या फायदा?
अगर यूएन की सुरक्षा परिषद में भारत स्थायी सदस्य बनता है तो पूरी दुनिया में भारत की साख और शक्ति दोनों बढ़ेंगी। इंटरनेशनल लोगों के मंच पर भारत पहले से ज्यादा मजबूत दिखेगा। वैश्विक मंच पर भारत के पास भी स्थायी सदस्य के रूप में वीटो का अधिकार होगा, जिसे वह किसी भी बड़े फैसले में देशहित के लिए इस्तेमाल कर सकता है।
वहीं एक फायदा ये भी होगा कि चीन के समकक्ष खड़े होकर भारत उसे ये एहसास दिला देगा कि किसी भी मामले में भारत उससे कम नहीं है। एक फायदा ये भी है कि भारत सुरक्षा मामलों से जुड़ी बातों को विश्व पटल पर रख सकेगा और पाकिस्तान के लिए भी एक कड़ा संदेश दे सकता है।