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Hindi News Explainers Explainer: क्या है बांग्लादेश में तख्तापलट के पीछे का सच? किसने खेला असली खेल? जानें अंदर की कहानी

Explainer: क्या है बांग्लादेश में तख्तापलट के पीछे का सच? किसने खेला असली खेल? जानें अंदर की कहानी

बांग्लादेश में छात्र आंदोलन के नाम पर जो हुआ है वह लोकतांत्रिक देशों के लिए एक बड़ा सबक है और भारत के लोगों को भी आने वाले दिनों में पूरी तरह सतर्क और सावधान रहना होगा।

Bangladesh Coup, Bangladesh News, Bangladesh Explainer- India TV Hindi Image Source : PTI बांग्लादेश में बात छात्र आंदोलन से कहीं आगे बढ़ चुकी है।

नई दिल्ली: बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ शुरू हुआ छात्र आंदोलन इतना बढ़ा कि शेख हसीना को अपनी सत्ता छोड़कर देश से भागना पड़ा। वह भारत पहुंचीं और कई देशों से अपने लिए शरण की गुहार लगाती दिखीं। लेकिन ऐसा नहीं लगता कि बांग्लादेश में जो कुछ हुआ है, वह बांग्लादेश तक ही सीमित रहने वाला है। जब अमेरिकी डीप स्टेट, चीन और पाकिस्तान के साथ अन्य कई आतंकी ताकतें किसी देश में हस्तक्षेप करती हैं तो ऐसा ही होता है। इसके पहले अफगानिस्तान और श्रीलंका में भी ऐसा हो चुका है।

छात्र आंदोलन की आड़ में शामिल हुईं आतंकी ताकतें

लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई शेख हसीना की सरकार ने ये सोचा भी नहीं होगा कि पाकिस्तान की राह पर चलकर वहां भी सेना के इशारे पर तख्तापलट की साजिश होगी और वह भी छात्र आंदोलन की आड़ में, जिसमें देश की आतंकी ताकतें भी शामिल होंगी। यह जो आंदोलन बांग्लादेश में देखने को मिला, यह केवल बांग्लादेश तक ही सीमित है, ऐसा सोचना खतरनाक हो सकता है। शेख हसीना लोकतांत्रिक तरीके से चुनावी प्रक्रिया के जरिए चौथी बार चुनकर वहां की सत्ता पर काबिज हुई थी। लेकिन, वहां बेगम खालिदा जिया की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और बांग्लादेश के प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन, जमात-ए-इस्लामी यह पचा नहीं पा रहे थे।

कई ताकतों को परेशान कर रही थी बांग्लादेश की तरक्की

अमेरिकी डीप स्टेट, चीन और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI का जिस तरह से शेख हसीना के विरोधियों को सपोर्ट मिला, उसी की तस्वीरें आपको बांग्लादेश में नजर आ रही हैं। मतलब साफ था कि वहां जो सत्ता में नहीं आ सके, उन्होंने अलगाववाद, हिंसा, अराजकता के साथ सेना का सहारा लेकर वहां तख्तापलट दिया और इसमें उन्हें दूसरे देशों से भी खूब सहारा मिला। शेख हसीना अमेरिका और चीन की परवाह किए बिना बांग्लादेश को 'राष्ट्र प्रथम' के सिद्धांत के तहत विकास के रास्ते पर आगे ले जा रही थी लेकिन यह तरक्की अमेरिका और चीन सहित पाकिस्तान की कई ताकतों को एकदम पसंद नहीं आ रही थी।

अमेरिका चाहता था कि शेख हसीना चुनाव हार जाएं

अमेरिका ने बांग्लादेश में एयरबेस के लिए जमीन मांगी थी लेकिन शेख हसीना ने इससे इनकार कर दिया था। अमेरिका इससे नाराज था और वह चाहता था कि हसीना बांग्लादेश का चुनाव हार जाएं। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं और जब अमेरिका को लग गया कि उनके हाथ से चीजें खिसक गई है तो उसने कहना शुरू किया कि हसीना ने अलोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराए। कमाल की बात है कि यही अमेरिका पाकिस्तान में इमरान खान की चुनी हुई सरकार को गिराने और आर्मी की मदद से शाहबाज शरीफ की सरकार बनवाने के लिए आगे आया था। उसी अमेरिका को पाकिस्तान में लोकतंत्र दिखाई देता है और बांग्लादेश में सबकुछ अलोकतांत्रिक दिखाई देता है।

Image Source : PTIशेख हसीना ने चीन और अमेरिका दोनों को नाराज कर दिया था।

चीन को भी नाराज कर बैठी थीं शेख हसीना

शेख हसीना ने अपने दो दशक के कार्यकाल में भारत और चीन दोनों के साथ अपने संबंध बेहतर बनाए। भारत के साथ वह 'फ्री ट्रेड' की राह पर भी बढ़ रही थीं, लेकिन चीन को बांग्लादेश में BRE के लिए जमीन चाहिए थी। हसीना इसके लिए राजी नहीं थीं, ऐसे में वह चीन को भी नाराज कर बैठीं। ऐसे में हसीना घेरलू मोर्चे पर, इस्लामिक रेडिकलिज्म के मोर्चे पर घिरने के साथ ही विदेशी सुपर पावर की आंखों में भी खटकने लगी थीं। बांग्लादेश में जो हुआ उसको लेकर अमेरिका की तरफ से यहां तक कहा गया कि लोगों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने की इजाजत दी जाए। लेकिन ढाका में सड़कों पर उतरकर लोगों को बंधक बनाया जा रहा था, हिंसा का नंगा नाच हो रहा था। कट्टर इस्लामी ताकतें अपनी क्षमता का प्रदर्शन करती नजर आ रही थीं।

बांग्लादेश में हो रहा इस्लामिक ताकतों का शक्ति प्रदर्शन

कई राजनीतिक नेताओं की हत्याएं और साथ ही खास लोगों के घरों को जलाना ये कहीं से शांतिपूर्ण प्रदर्शन तो नहीं लग रहा है। यह किसी भी तरह से छात्र आंदोलन तो नहीं नजर आ रहा बल्कि कट्टर इस्लामी ताकतों का खतरनाक शक्ति प्रदर्शन है। क्या इन ताकतों को सड़कों पर देखकर लगता है कि ये वहां की संस्थाओं का सम्मान करती हैं? सेना में भी बड़े पैमाने पर फेरबदल हुए हैं और शेख हसीना के कई करीबी अफसरों की अदला-बदली कर दी गई है। ऐसे में लगता है कि साजिश की कई परतें हैं और वक्त के साथ-साथ ये परतें धीरे-धीरे खुलती जाएंगी।

भारत के लोगों को भी सावधान और सतर्क रहने की जरूरत

भारत में भी हालात ऐसे ही हो सकते हैं, ऐसे में हमें सावधान और सतर्क रहकर सोचने की जरूरत है। क्योंकि जिस दिन ये पश्चिमी देश हमारे यहां लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर घुसे, उस दिन के लिए हमें बांग्लादेश से सबक लेने की जरूरत है कि उनके साथ क्या हुआ। हमारे राजनेता देश के बाहर जाकर यह कहते हैं कि भारत में लोकतंत्र की रक्षा के लिए अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों को हस्तक्षेप करना चाहिए। हमें यह भी देखना होगा कि क्या हम राज्यों में विभेद देखकर, जातियों में बंटकर उन राजनीतिक ताकतों के हाथों की कठपुतली तो नहीं बन रहे हैं जो चुनाव जीतकर सत्ता में नहीं आ पाए और उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया से हुए चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।

भारत में भी बांग्लादेश जैसी स्थिति पैदा करने की कोशिश

जिस तरह से 2024 के लोकसभा चुनाव में कुछ पार्टियों ने 'आरक्षण खत्म होगा' और 'संविधान बदला जाएगा' का डर दिखाकर चुनाव की पूरी व्यवस्था को अलग रंग दे दिया, कहीं वह ताकतें देश में बांग्लादेश वाली स्थिति तो नहीं पैदा करना चाहती हैं। जिस तरह देश के कुछ राजनीतिक दल धर्म के नाम पर अल्पसंख्यकों को डरा रहे हैं और बहुसंख्यक जातियों में फूट पैदा कर उन्हें एक आंदोलन के लिए आरक्षण, जाति जनगणना और हिस्सेदारी के नाम पर भड़का रहे हैं, कहीं वह यहां भी बांग्लादेश की तरह तख्तापलट कर सत्ता में काबिज होने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं? 

Image Source : PTIभारत में भी सीएए के नाम पर पूरे देश में प्रदर्शन हुए थे।

भारत में भी हालात खराब करने की कोशिशें हुई थीं

देश में जिस तरह से पिछले दस सालों में आंदोलन खड़े किए गए। जिस तरह से CAA के नाम पर सड़कों को घेरा गया, दिल्ली में 50 से ज्यादा लोगों की दंगे में जान गई। किसान आंदोलन के नाम पर जिस तरह से शांतिपूर्ण प्रोटेस्ट को समर्थन देकर उग्र बनाया गया। लाल किले की प्राचीर पर प्रदर्शनकारियों द्वारा जिस तरह से भड़काऊ गतिविधियों को अंजाम दिया गया। तिरंगे के साथ जिस तरह से लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराया गया। जिस तरह से देश की संस्थाओं को बदनाम करने और उसके खिलाफ लोगों के मन में एक तरह का भय पैदा करने की कोशिश की जा रही है, कहीं यह बांग्लादेश की स्थिति को यहां दोहराने की कोशिश तो नहीं है?

बांग्लादेश की घटना ने खड़े किए हैं कई सवाल

बांग्लादेश में देखकर यह सीखना होगा कि जो राजनीतिक ताकतें देश के लोकतंत्र के लिए पश्चिमी ताकतों को देश में हस्तक्षेप के बारे में कह रही हैं, क्या वह सही है? दूसरा, इस तरह के प्रदर्शन की जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, क्या ये संस्थाओें का समर्थन करते हैं? तीसरा, ये केवल देश को दूसरी ताकतों के हाथों बेचने के लिए ऐसा कर रहे हैं? और अंतिम, ऐसे प्रदर्शनकारियों का लोकतांत्रिक मूल्यों से और चुनाव से कुछ भी लेना-देना नहीं है, ये किसी भी हालत में केवल सत्ता को अपने हाथ में रखना चाहते हैं। (IANS)