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Hindi News Explainers Explainer: विश्व मंच पर 131 साल बाद भारत के पास स्वामी विवेकानंद का इतिहास दोहराने का मौका, UN ने श्री श्री रविशंकर को ही क्यों चुना?

Explainer: विश्व मंच पर 131 साल बाद भारत के पास स्वामी विवेकानंद का इतिहास दोहराने का मौका, UN ने श्री श्री रविशंकर को ही क्यों चुना?

भारत की अध्यात्मिक ताकत का लोहा पूरी दुनिया युगों-युगों से मानती रही है। देश के सुविख्यात ऋषियों, मुनियों और संतों ने अपने पुरुषार्थ से मां भारती के कण-कण को अभिसिंचित करके दुनिया में भारत की अमिट छाप छोड़ी है। यही वजह है कि भारत की अध्यात्मिक का गाथा और उसके हिंदुत्व की ज्वाला दुनिया को आज भी रौशन करती है।

अध्यात्म गुरु श्री श्री रविशंकर और स्वामी विवेकानंद। (फाइल फोटो)- India TV Hindi Image Source : INDIA TV अध्यात्म गुरु श्री श्री रविशंकर और स्वामी विवेकानंद। (फाइल फोटो)

Explainer: आज से 131 साल पहले स्वामी विवेकानंद ने शिकागो की धर्म संसद में दुनिया को भारत की ऐसी जादुई अध्यात्मिक ताकत से रूबरू कराया था, जिससे विश्व के ज्यादातर देश अनभिज्ञ और अंजान थे। भारत के इस महान भगवानधारी संत ने विश्व मंच पर अपने ओजस्वी भाषण से दुनिया के मानस पटल पर ऐसी अमिट छाप छोड़ी, जिसने हर किसी को कायल बना दिया। स्वामी विवेकानंद के कहे एक-एक शब्द हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए। यहां यह जानना जरूरी है कि इस विश्व मंच पर स्वामी विवेकानंद को बोलने के लिए मात्र 2 मिनट मिले थे। मगर इसी अल्प समय में उन्होंने भारत को वैश्विक मंच पर विश्वगुरु के तौर पर स्थापित कर दिया। आज 131 साल बाद भारत के पास फिर उस इतिहास को दोहराने का मौका आया है।

संयुक्त राष्ट्र (UN) ने "विश्व ध्यान दिवस" पर भारत के मशहूर अध्यात्मिक संत श्री श्री रविशंकर को मुख्य व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया है। श्री श्री रविशंकर 21 दिसंबर दिन शनिवार को इस सबसे बड़े वैश्विक मंच पर दुनिया को भारत की अध्यात्मिक ताकत से अवगत कराएंगे। पूरी दुनिया के लिए वैश्विक ध्यान के लिहाज से श्री श्री रविशंकर का यह भाषण बेहद ऐतिहासिक होने जा रहा है। उनके इस व्याख्यान पर पूरी दुनिया की नजरें टिक गई हैं। 

यूएन ने श्री श्री रविवशंकर को क्यों चुना

दुनिया के सबसे बड़े इस मंच पर संयुक्त राष्ट्र ने विश्व ध्यान दिवस पर व्याख्यान देने के लिए आखिरकार श्री श्री रविशंकर को ही क्यों चुना? इसके पीछे भी खास वजह है। संयुक्त राष्ट्र ने यह स्वीकार किया है कि विश्व कल्याण का नेतृत्व करने वाला भारत दुनिया का इकलौता देश है। क्योंकि पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत विश्व कल्याण का नेतृत्व कर रहा है। भारत की छवि विश्व बंधु के रूप में उभरी है। किसी भी देश पर संकट, आपदा या आपातकाल की स्थिति में मदद करने वालों की लिस्ट में भारत प्रथम उत्तरदाता रहा है। इसलिए भारत के संत श्री श्री रवि शंकर को संयुक्त राष्ट्र ने विश्व ध्यान दिवस के मौके पर प्रमुख व्याख्यान के  लिए चुना है। न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में प्रथम विश्व ध्यान दिवस के उद्घाटन सत्र के दौरान आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर मुख्य भाषण देंगे। अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।

भारत के लिए होगा ऐतिहासिक क्षण

संयुक्त राष्ट्र के मंच पर श्री श्री रविशंकर का 21 दिसंबर को होने वाला यह भाषण भारत के लिए ऐतिहासिक क्षण होगा। इससे पहले 11 सितंबर 1893 को भारत के महान संत स्वामी विवेकानंद ने शिकागो की धर्म संसद में अपना जादुई भाषण दिया था। अब संयुक्त राष्ट्र के इस बड़े मंच पर पूरी दुनिया श्री श्री रविशंकर को सुनने के लिए बेताब है। यूएन के अधिकारियों ने कहा कि भारत ने 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस के रूप में घोषित करने की पहल का नेतृत्व करके वैश्विक कल्याण में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है और इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सर्वसम्मति से अपनाया गया।

पीएम मोदी का कायल हुआ संयुक्त राष्ट्र

विश्व ध्यान दिवस का आगाज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर हुआ है। बता दें कि पीएम नरेन्द्र मोदी की सरकार के नेतृत्व में किया गया यह ऐतिहासिक प्रयास, विश्व के साथ अपने प्राचीन ज्ञान को साझा करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने कहा कि यह तिथि भारतीय परंपरा के अनुसार उत्तरायण शुरू होने पर पड़ती है, जो वर्ष का एक शुभ समय है और 21 जून को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का पूरक है। ऐसे में श्री श्री रविशंकर द्वारा दिया जाने वाला यह व्याख्यान बेहद ऐतिहासिक होगा।  

11 सितंबर 1893 का दिन कभी नहीं भूल सकेगी दुनिया

शिकागो में 11 सितंबर 1893 को दिया गया स्वामी विवेकानंद का वह भाषण आज भी लोगों के जेहन में गुजरे वक्त की हर यादों को ताजा कर रोम-रोम को गर्व से भर देता है। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत "मेरे अमेरिका भाइयों और बहनों" कहकर की थी। उनके मुखारबिंदु से यह शब्द निकलते ही दुनिया उनकी कायल हो चुकी थी और पूरी धर्म संसद तालियों को जोरदार गड़गड़ाहट से गुंजायमान हो चुकी थी। मगर असली करिश्मा तो अभी आगे होना बाकी था। भारत के इस युवा संत ने अपने अमृतमयी वाणी से मां सरस्वती की प्रबल धार को प्रवाहित करते हुए आगे कहा, " मैं सभी धर्मों की जननी और दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा की ओर से आपको धन्यवाद देता हूं। मैं भारत की सभी जातियों, धर्मों और करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार जताता हूं। साथ ही मैं यह बताने वालों का भी शुक्रिया अदा करता हूं कि पूरब ने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का अलौकिक पाठ पढ़ाया है।"

मैं उस देश का वासी हूं, जिसने पूरी दुनिया को शरण दी

स्वामी ने आगे कहा, "मुझे इस बात का गर्व है कि मैं ऐसे देश से आया हूं, जिसने सभी धर्मों को शरण दी है। मैं ऐसे हिंदू धर्म से हूं, जिसने पूरी दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का ज्ञान दिया है। हम विश्व के सभी धर्मों को बराबर मान-सम्मान देने वाले देश से हैं। हमारे दिल में इजरायल की वो पवित्र यादें आज तक संजो कर रखी गई हैं, जब रोमन हमलावरों ने उनके धार्मिक स्थानों का विध्वंस कर दिया और तब दक्षिण भारत ने उन्हें अपने गोद में शरण दी। इस तरह हम सभी सताए हुए लोगों को शरण देते हैं। हमारा हृदय विशाल है और दया करुणा से भरा हुआ है। उन्होंने सबसे बड़ा संदेश दुनिया को यह दिया कि जिस तरह नदियां अलग-अलग जगहों से निकलते हुए और अपना रास्ता खुद चुनती हैं और आखिर में जाकर समुद्र में मिलती हैं। ठीक उसी तरह इंसान भी अलग-अलग भले हो, लेकिन अंत में जाकर ईश्वर के अंश में मिलकर पंचतत्व में विलीन हो जाता है।" स्वामी विवेका नंद इस प्रकार अपने तेज और पुण्य पुरुषार्थों के दम पर पूरी दुनिया को मुट्ठी में कर लिया था।