'इमरजेंसी' की घोषणा कर दी, घबराने की नहीं कोई बात...49 साल पहले इंदिरा के इन शब्दों से सन्न रह गया था देश
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मुंह से 'इमरजेंसी' का शब्द सुनते ही देश के लोग सन्न रह गए थे। उन्हें कुछ नहीं पता था कि अब क्या होने वाला है? इमरजेंसी के बाद विपक्षी नेताओं को चुन-चुन कर गिरफ्तार किया गया और उन्हें जेल में डाल दिया गया था।
25 जून, 1975 ये वही तारीख है, जिस दिन देश में आपातकाल (Emergency) की घोषणा की गई। इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल लगाए जाने पर अपनी मुहर लगाई थी। ये इमरजेंसी 21 मार्च, 1977 तक देशभर में लागू रही। स्वतंत्र भारत के इतिहास में ये 21 महीने काफी विवादास्पद रहे। इन 21 महीनों में जो कुछ भी हुआ। सत्ता दल अभी भी कांग्रेस को समय-समय पर कोसते रहते हैं।
रेडियो पर की इमरजेंसी की घोषणा
आज से 49 साल पहले देश में इमरजेंसी लगाए जाने की घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडियो के माध्यम से की थी। इमरजेंसी के लगाए जाने के अगले दिन इंदिरा गांधी ने रेडियो के माध्यम से देशवासियों को इसकी जानकारी दी थी। 26 जून, 1975 की सुबह इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर कहा, 'राष्ट्रपति ने देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी है। इसमें घबराने की कोई बात नहीं है...'
अब क्या होने वाला है? कुछ नहीं था पता
प्रधानमंत्री के मुंह से इमरजेंसी (आपातकाल) शब्द सुनकर ही देश के लोग सन्न रह गए। आमजन को कुछ नहीं पता था कि अगले कुछ घंटों, दिनों, महीनों और सालों में क्या होने वाला है? इमरजेंसी लगाए जाने के बाद जो देश में हुआ, वह काला धब्बा कांग्रेस सरकार में हमेशा के लिए बना रहा। हालांकि, गांधी परिवार के दिग्गज नेता राहुल गांधी ने इस इमरजेंसी को गलत बताया और खुले तौर पर माफी भी मांगी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा को संसदीय कार्यवाही से दूर रहने को कहा
बता दें कि आपातकाल की घोषणा किए जाने के कुछ ही समय बाद सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले पर सशर्त रोक लगा दी, जिसमें लोकसभा के लिए उनके चुनाव को अमान्य घोषित किया गया था। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को संसदीय कार्यवाही से दूर रहने को भी कहा था।
जब आयरन लेडी के कामों पर खड़े हुए सवाल
इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने 1971 के लोकसभा चुनावों में शानदार जीत हासिल की थी। तत्कालीन 521 सदस्यीय संसद में कांग्रेस ने 352 सीटें जीती थीं। दिसंबर 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान के युद्ध से आजाद कराकर इंदिरा गांधी आयरन लेडी के नाम से जानी जा रही थीं। इसके कुछ सालों बाद ही देश में इमरजेंसी की घोषणा ने आयरन लेडी के कामों पर ही सवाल खड़े कर दिए थे।
इंदिरा को इसलिए लगानी पड़ी इमरजेंसी
उन दिनों इंदिरा गांधी की सरकार पर भारत अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था। गुजरात में सरकार के खिलाफ छात्रों का नवनिर्माण आंदोलन चल रहा था। बिहार में जयप्रकाश नारायण (JP) का आंदोलन चल रहा था। 1974 में जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में रेलवे हड़ताल चल रही थी। 12 जून, 1975 का इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें रायबरेली से इंदिरा गांधी के लोकसभा के लिए चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया गया था। गुजरात चुनावों में पांच दलों के गठबंधन से कांग्रेस की हार और 26 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में विपक्ष की रैली ने इंदिरा गांधी की सरकार को मुश्किल में डाल दिया। इन्हीं सब को देखते हुए इंदिरा गांधी को देश में इमरजेंसी लगानी पड़ी।
21 महीने रही देश में इमरजेंसी
इमरजेंसी लागू होने के तुरंत बाद विपक्षी नेताओं को जेल में डालने का सिलसिला शुरु हो गया। इनमें जयप्रकाश नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी और मोरारजी देसाई समेत कई बड़े नेताओं का नाम था, जो कई महीनों और सालों तक जेल में पड़े रहे थे। इंदिरा गांधी सरकार 21 महीने की इमरजेंसी आज भी चर्चा में रहती है। सियासी गलियारों में विपक्ष इमरजेंसी को काला धब्बा बताने के साथ कांग्रेस पर हमलावर हो जाता है।