क्या बिग बॉस OTT ने दूसरे रियलटी शोज के लिए खोले हैं डिजिटल प्लेटफॉर्म के रास्ते
बिग बॉस ओटीटी ने दूसरे रियलटी शोज के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म की राह आसान कर दी है। जानिए कैसे।
कोरोना काल बहुत कुछ बदला है। इस काल में यूं तो बहुत कुछ बुरा हुआ है लेकिन भारत में ओटीटी प्लेटफॉर्म के रूप में ऑडिएंस को पर्सनल चॉइस की मंजूरी मिली भी है। अपना वक्त, अपनी जगह और अपनी मर्जी। पहले ओटीटी पर वेबसीरीज आए और फिर फिल्मों ने इस प्लेटफॉर्म पर दस्तक दी। लेकिन बिग बॉस ओटीटी ने यहां तहलका मचा दिया। करण जौहर द्वारा होस्ट किए गए बिग बॉस ओटीटी ने आने वाले समय में रियलटी शोज के लिए भी ओटीटी की राह खोल दी है।
टीवी की दुनिया में बिग बॉस ओटीटी के रूप में इसे भारत में पहला प्रयोग कहा जाएगा जो सफल रहा। हालांकि विदेशों में रियलटी टीवी शोज ओटीटी पर पहले से चलते आ रहे हैं जैसे दि सर्कल शार्क टैंक, क्वीर आई इत्यादि। लेकिन भारत में ओटीटी पर रियलटी शो की पहल बिग बॉस ने की है जिसे निश्चित तौर पर बड़ा कदम कहा जा सकता है।
किसी रियलटी शो को डिजिटली लॉन्च करना, वो भी छह महीने तक रियल शूट करके। यह प्रयोग सफल हुआ और अब दूसरे रियलटी शोज की बारी है कि वो डिजिटली अपनी प्रेजेंस महसूस कराएं।
यूं भी सिनेमा हॉल जाकर फिल्म देखने वाले ऑडिएंस का एक बड़ा हिस्सा ओटीटी की ओर ट्रांसफर हो चुका है। कोरोना काल में नई फिल्में नहीं आई और इसका फायदा ओटीटी ने उठाया, उसने युद्ध स्तर पर ऑडिएंस को नए शोज और बेवसीरीज मुहैया कराई जिससे उसका बाजार तेजी से फैला। हालांकि मल्टीप्लेक्स को ओटीटी साम्राज्य के फैलने का नुकसान हुआ है लेकिन टीवी और ओटीटी का कंपटीशन अब तक नहीं था।
बिग बॉस के निर्माताओं ने बिग बॉस ओटीटी के लिए बड़ा दाव खेला और इससे स्पष्ट तौर पर टीवी और ओटीटी की जंग शुरू हो गई है। बिग बॉस ओटीटी पहला रियलटी शो है जिसे कई तरह के रिएक्शन मिले। अब चाहें तो डांस शो, सिंगिंग शो और डेयर चेलेंज वाले शो यहां दिख सकते हैं।
कल आप अगर एमटीवी के रोडीज या खतरों के खिलाड़ी सरीखे रियलटी शोज को ओटीटी पर देखें तो आपको अचंभा नही होना चाहिए। डांस प्लस 6 भी ओटीटी पर अपनी प्रेजेंस दिखाने वाला है।
देखा जाए तो टीवी रियली शोज को लेकर कई तरह के नियम है। एक निर्धारित समय, भाषा की मर्यादा, अश्लीलता, फूहड़ता, लड़ाई झगड़े झगड़े संबंधी कई नियम है। ऐसे शो बेझिझक इस प्लेटफॉर्म पर स्विच हो सकते हैं क्योंकि अभी तक ओटीटी के लिए स्पष्ट नियम नहीं बने हैं।
टीवी औऱ ओटीटी के बीच के कई अंतर इस मामले में ओटीटी को बेहतर प्लेटफॉर्म साबित कर रहे हैं। टीवी पर शो दिखाने पर समय का भी ध्यान रखना पड़ता है, लेकिन ओटीटी पर समय ही समय है। आप चाहें तो दस पार्ट रखिए या बीस। ओटीटी पर नैतिक तौर पर फिलहाल कोई दबाव नहीं दिखता है। लेकिन टीवी पर इसका ध्यान रखना पड़ता है। जिस शो को दर्शक टीवी पर 10 बजे के बाद नहीं देख सकता, उसे वो ओटीटी पर कभी भी देख सकता है।
एक बड़ा फैक्टर हैं जहां ओटीटी टीवी के आगे कमजोर पड़ता है और वो है कनेक्टिविटी। यानी इंटरनेट और उसकी स्पीड। इंटरनेट ओटीटी का बेस है और अगर इंटरनेट नहीं है तो ओटीटी नहीं है। यहां हर प्लेटफॉर्म को खरीदने के लिए यूजर को अलग अलग पेमेंट करनी होती है। जबकि टीवी के मामले में ऐसा नहीं है।
ओटीटी जिस तरह से अपना प्रसार कर रहा है, उसे देखकर लगता है कि आने वाला वक्त उसी का है। अब फिल्में भी ओटीटी पर आ रही है। भाषा की बाध्यता लगभग खत्म हो चुकी है। रीजनल ओटीटी भी तेजी से बढ़ रहा है और ये इशारा है कि जल्द ही देश की हर भाषा और हर प्रांत के दर्शक को ओटीटी पर अपना कंटेंट मिलेगा। भारत जैसे बहुभाषी देश में ये अच्छा संकेत है कि भारत में 90 फीसदी लोग रीजनल लेंग्वेज का कंटेंट देख रहे हैं।