मुंबई: लेखक-निर्देशक की जोड़ी देवांशु कुमार और सत्यांशु सिंह को अपनी पहली डिजिटल फिल्म 'चिंटू का बर्थडे' के लिए दर्शकों व समीक्षकों से खूब सराहना मिल रही है। उनका कहना है कि चिंटू के किरदार के लिए सही कलाकार का चुनाव करना एक काफी मुश्किल भरा काम रहा और इस किरदार के लिए वेदांत छिब्बर को फाइनल करने से पहले उन्होंने शायद कम से कम 1,800 बच्चों को रिजेक्ट किया होगा।
देवांशु ने कहा, "मैं इस पर एक किताब लिख सकता हूं, शायद कभी लिखूंगा! स्क्रिप्ट लिखने के बाद, कलाकारों का चुनाव करना हम दोनों के लिए सबसे भयावह प्रक्रियाओं में से एक रही। बेशक चिंटू को ढूंढ़ निकालना एक काम था, जिसे हमें हर हाल में सही से करना था। इस बात को लेकर हमारी धारणा स्पष्ट थी कि हमें ऐसे चिंटू की तलाश करनी है, जो अभिनय न करता हो। हम परफॉर्मेंस में यकीन रखते हैं, एक्टिंग में नहीं। चूंकि कहानी एक छह साल के बच्चे और उसके जन्मदिन के इर्द-गिर्द घूमती है, तो हम चाहते थे कि बच्चा उस पल में जिएं।"
सत्यांशु आगे कहते हैं, "लेकिन बच्चे इस बात को समझ नहीं पा रहे थे। वेदांत में चिंटू को पाने से पहले हमने शायद कम से कम 1,800 बच्चों को रिजेक्ट किया होगा। चूंकि इस फिल्म को फिल्माना कठिन था, तो हम एक बुद्धिमान और सुलझे हुए किसी बच्चे को चाहते थे, जिसमें मासूमियत और बचकानी हरकत भी हो। वेदांत में ये सारी चीजें थीं।"
वेदांत के दादा और परदादा अपने दिनों में स्ट्रीट थिएटर्स किया करते थे। उनके पिता भी दिल्ली में एक थिएटर कलाकार हैं। निर्माताओं के मुताबिक, "उसमें स्वाभाविक रूप से ही कुछ खास बातें थीं क्योंकि उसके परिवार में लोग अभिनय से जुड़े हुए रहे हैं और वह एक ऐसे ही परिवार की चौथी पीढ़ी है, जिसका अभिनय से ताल्लुक है।"
फिल्म की कहानी साल 2004 में बगदाद की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जब इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को पद से हटा दिया जाता था। फिल्म में एक प्रवासी भारतीय परिवार के जिंदगी की एक दिन की कहानी बयां की गई है, जो अपने सबसे छोटे सदस्य चिंटू का जन्मदिन मनाने की सोचता है, एक ऐसे समय में, जब चारों ओर माहौल अशांत है।
फिल्म में विनय पाठक, तिलोत्तमा सोम, सीमा पाहवा, बिशा चतुवेर्दी, खालिद मासौ, रेगिनाल्ड एल बार्न्स और नाथन स्कोल्ज जैसे कलाकार भी हैं।
(आईएएनएस इनपुट के साथ)