सिंह इज ब्लिंग

Singh Is Bling movie review

IndiaTV News Desk 14 Oct 2015, 3:30:00 IST
मूवी रिव्यू:: Singh Is Bling
Critics Rating: 2 / 5
पर्दे पर: 2 OCT, 2015
कलाकार: अक्षय कुमार
डायरेक्टर: प्रभु देवा
शैली: कॉमेडी
संगीत: प्रीतम चक्रवर्ती

खिलाड़ी कुमार एक बार फिर कॉमेडी के मूड में हैं वो भी अपने  फिल्म 'राउडी राठौड़' के निर्देशक प्रभु देवा के साथ। इस साल गंभीर फिल्में देने के बाद ये शायद जरूरी था अक्की के लिए कि साल के आखिरी तिमाही में वो लोगों को हंसाते हुए विदा लें। पिछले वर्ष भी 'हॉलीडे' जैसी संजीदा फिल्म के बाद उनकी 'इंटरटेनमेंट' ने दर्शकों को हंसाने का काम किया था। तो कह सकते हैं कि अक्षय अपनी बदलती हुई छवि में अपनी पसंदीदा शैली पर भी पकड़ ढीली नहीं छोड़ना चहते। और ये सही भी है।

फिल्म सिंह इज ब्लिंग को देखकर ये लगता है भी वो इसे करने के लिए काफी उत्सुक भी थे भले ही अंजाम कुछ भी हो। फिल्म की कहानी है पंजाह के बस्सी पठाना गांव मे रह रहे रफ्तार सिंह की जो अपने माता-पिता की आंखों का तारा है लेकिन किसी काम का नहीं है। ऐसे में उसके पिता (येगराज सिंह) उसे दो विकल्प देते हैं। या वो स्वीटी पहलवान से शादी कर ले या फिर गोवा चला जाए और कुछ काम करें। जाहिर सी बात है कि रफ्तार स्वीटी से शादी तो कतई नहीं करेगा और इसलिए वो गोवा की उड़ान भरता है।

वहीं दुनिया के दूसरे भाग या यू कहें रोमानिया में मार्क (के के मेनन) एक अंडरवर्ल्ड गैंग का डॉन बन चुका है और उसकी नजरें एक दूसरे डॉन की बेटी सारा (एमी जैक्सन) पर टिकी हैं। लेकिन उसे जल्द ही कोई कदम उठाना पड़ेगा क्योंकि उसकी राह पर खड़ा है रफ्तार सिंह! क्यों? कैसे? कहां?  जानने के लिए देखिए सिंह इज ब्लिंग।

कहने के लिए ये फिल्म एक एक्शन-कॉमेडी है लेकिन इसमें सस्पेंस भी है लेकिन वो नाम मात्र है। प्रभु देवा और खिलाड़ी कुमार के कॉम्बो से तो आप उम्मीद कर सकते है कि फिल्म में एक्शन भरपूर होगा। और इस बार सिर्फ फिल्म के मुख्य अभिनेता ही नहीं बल्कि अभिनेत्री मतलब एमी की स्टंट्स करते हुए दिख रही हैं जो कि चकित करने वाला है। कॉमेडी के नाम पर फिल्म में कुछ सिली जोक्स है लेकिन वो काम करते है। अक्षय का टिपिकल कॉमेडी अंदाज आपको हंसाता है वहीं लारा (इमली) मेहमान की भूमिका में अक्षय और एमी के लिए ट्रॉसलेटर के तौर पर कुछ ठहाके जरूर लगाने का मौका देती है।

लेकिन सबसे कमजोर कड़ी है फिल्म की कहानी जो है ही नहीं। आखिर क्यों प्रभु देवा फिर से फिल्म को लॉजिक्स से दूर रखते है, ये हमारी समझ से बाहर है। एमी का भारत में अपनी मां की तलाश में आना और उसी मूल मकसद को भूल जाना, इसका जवाब ढूंढने से भी नहीं मिलेगा।

खैर जब कहानी है ही नहीं तो इस पर अपना दिमाग खपाना भी बेकार है। ये भी सोचना बेकार है कि फिरंगी सारा जिसको हिंदी का एक अक्षर नहीं आता वो रफ्तार के प्यार में पढ़कर कैसे हिंदी में गा रही है और सरसों के खेत में पंजाबी ठुमके लगा रही हैं।

वहीं इमली का देर रात लड़कों की टांगों के बीच में वार करना कहां का लॉजिक है? हद तो तब हो जाती है जब प्रभु देवा न जाने कहा से टपक पड़ते हैं वो भी एक भद्दे से दृश्य के लिए।

खैर ये एक मसाला फिल्म है तो आप उसे वैसे ही ट्रीट करें तो बेहतर होगा हालांकि मनोरंजन की गुंजाइश थोड़ी कम है। फिल्म में अभिनय की बात करें तो एमी जैक्सन हमें अचंबित करती हैं। बॉलीवुड में उनके लिए दरवाजे तेजी से खुलते हुए नजर आ रहे है। के के मेनन का फिल्म में निर्देशक भरपूर फायदा नहीं उठा पाते हैं और वो फिल्म में एक हास्य के पात्र ही बनकर रह जाते हैं।

लारा दत्ता थोड़े समय के लिए हमें हंसाने में कामयाब होती हैं लेकिन बुरी लिखावट की वजह से अभिनय में ज्यादा ऊपर नहीं उठ पाती। जो सबसे ऊपर है वो अक्षय ही हैं जो समय-समय पर हमारा मनोरंजन करते हैं हालांकि वो कुछ नया नहीं प्रस्तुत करते और उनके डायलॉग्स भी आप पहले से पकड़ लेते हैं।

बावजूद इसके फिल्म उन्हीं के लिए देखी जा सकती है।