Shershaah Movie Review: कैप्टन विक्रम बत्रा की शानदार बायोपिक होने पर गर्व कर सकती है सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी की 'शेरशाह'

फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी की केमेस्ट्री उम्दा नजर आई। सिद्धार्थ तो विक्रम बत्रा के किरदार में रचे बसे थे, कियारा हाव-भाव में बिल्कुल नैचुरल लगीं। ऐसा लग रहा था कि उन्होंने डिंपल चीमा को आत्मसात कर लिया हो।

Himanshu Tiwari 29 Aug 2021, 10:38:36 IST
मूवी रिव्यू:: Shershaah
Critics Rating: 3.5 / 5
पर्दे पर: Aug 12, 2021
कलाकार: सिद्धार्थ मल्होत्रा
डायरेक्टर: विष्णुवर्धन
शैली: वॉर-ड्रामा
संगीत: युवान शंकर राजा

कारगिल युद्ध के नायक कैप्टन विक्रम बत्रा आज से 22 साल पहले देश के लिए लड़ते हुए शहीद हुए थे। उनके अदम्य साहस और देशभक्ति की बदौलत भारतीय सेना को पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ जीत हासिल हुई थी। कारगिल युद्ध में विक्रम बत्रा के शौर्य ने उन्हें पूरे देश में मशहूर कर दिया था। महज 24 साल की उम्र में उन्होंने देश की शान में जान की बाजी लगा दी और उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनकी इसी विरासत को एक श्रद्धांजलि के रूप में फिल्म 'शेरशाह' अमेजन प्राइम पर रिलीज की गई है। इसमें बॉलीवुड हॉटशॉट सिद्धार्थ मल्होत्रा, कैप्टन​​ ​​विक्रम बत्रा के साथ-साथ उनके जुड़वां भाई विशाल बत्रा की भूमिका में हैं।

जैसा कि फिल्म के ट्रेलर और गानों से भी यह पता चलता है कि फिल्म का प्लॉट शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के शौर्य के साथ-साथ उनकी निजी जिंदगी के ऊपर खास फोकस होगा। विष्णुवर्धन ने इस खास जुगलबंदी - वॉर जोन और दो लोगों के बीच पनपी प्यार की भावनाओं को फिल्म के शुरू से अंत तक कायम रखा है। फिल्म की कहानी को विक्रम बत्रा के भाई विशाल बत्रा की जुबानी बयान करना और फ्लैशबैक-नरेशन के तौर पर की गई किस्सागोई, दर्शक को एक शहीद की कहानी जानने के लिए प्रेरित करती है।   

कहानी
विक्रम बत्रा (सिद्धार्थ मल्होत्रा) हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से शहर पालमपुर से हैं। बचपन से ही उनका सपना आर्मी ऑफिसर बनने का है। जब उनका सपना पूरा हो जाता है तो विक्रम अपने शौर्य और अदम्य साहस से देश की शान बढ़ाते हैं। उसकी वीरता से प्रभावित होकर विक्रम और उनकी टीम को 1999 में कारगिल युद्ध में तैनात किया जाता है। इस कहानी के सामानान्तर विक्रम बत्रा और डिंपल चीमा (कियारा आडवाणी) की लव स्टोरी भी साथ-साथ चलती है। विक्रम बत्रा कैसे कारगिल युद्ध में देश का झंडा प्वॉइंट 4875 पर लहराते हैं? और साथ ही डिंपल चीमा के साथ के उनकी लव स्टोरी किस कदर मोड़ लेती है? यही फिल्म की मूल कहानी है।

फिल्म के डायलॉग्स विशेष रूप से इस फिल्म की जान हैं। फिल्म के ट्रेलर में जिन डायलॉग्स का इस्तेमाल किया है, मूल कहानी में इन डायलॉग्स की टाइमिंग अपने आपमे बेहद अहम है। विशेषकर ये डायलॉग - "एक फौजी से बड़ा कोई रुतबा नहीं होता, वर्दी की शान से बड़ी कोई शान नहीं होती और देश से बड़ा कोई धर्म नहीं होता" अपने आप में विक्रम बत्रा की जिंदगी का सारांश बताने के लिए काफी है। विक्रम बत्रा की अपनी बाते भी किसी शानदार स्क्रिप्ट से कम नहीं है - "या तो तिरंगा लहरा कर आउंगा, या तो तिरंगे में लिपट के आउंगा। लेकिन आउंगा जरूर!" ये डायलॉग किसी फिल्म के नहीं बल्कि अपने दोस्त से मुखातिब होते हुए खुद विक्रम बत्रा की जुबान से निकला है। विक्रम बत्रा की यही खुशमिजाजी उन्हें बायोपिक के लिए एक सही सब्जेक्ट बनाती है। 

फिल्मांकन
फिल्म के प्रोडक्शन यूनिट की मेहनत फिल्म की स्क्रीन पर नजर आ रही है। वॉर-ज़ोन को हिमालय की पहाड़ियों को ध्यान में रखते हुए फिल्मांकन करना अपने आप में मुश्किल होता है, मगर निर्देशक विष्णुवर्धन की बात करें तो उन्होंने अपनी पहली हिंदी फिल्म में अच्छा प्रभाव डाला है। तमिल निर्देशक अपने अनुभव का उपयोग करते हैं और फिल्म को एक सभ्य तरीके लोगों के बीच रखते हुए इसे बहुत ही भावनात्मक और गर्व के साथ खत्म करते हैं। उन्होंने कारगिल युद्ध को विस्तार से दिखाया है। अगर उन्होंने सहायक कलाकारों के लिए कुछ बेहतर अभिनेताओं का इस्तेमाल किया होता, तो चीजें अगले स्तर पर चली जातीं।

युद्ध के दृश्य वास्तविक लगते हैं। सिनेमैटोग्राफर कमलजीत नेगी के कैमरे में बसे हुआ हरे-भरे कश्मीर के दो पहलू नजर आए। 'शेरशाह' में कश्मीर की वादियों की चटकती चट्टानों, धूल के गुबार और बंकर के पीछे से गोलियों की फायरिंग बहुत हद वास्तविक लगती है। 2 घंटे 15 मिनट की 'शेरशाह' एक स्लीक फिल्म है, जिसमें अपनी कहानी से भटकाव कहीं नजर नहीं आया। फिल्म यदि बड़े पर्दे पर आती तो बेहतर होता, जिसका अफसोस रहेगा।

एक्टिंग
लगभग एक दशक से भी ज्यादा वक्त से एक चॉकलेटी बॉय के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले सिद्धार्थ मल्होत्रा ने अपने करियर में इस इमेज को कायम रखने के लिए कई फिल्में कीं। 'कपूर एंड संस', 'बार बार देखो' और 'हंसी तो फसी' जैसी फिल्मों में जहां उनके लवर बॉय इमेज को स्थापित किया वहीं 'ब्रदर्स' और 'मरजावां' जैसी फिल्मों में सिद्धार्थ मल्होत्रा इस कंफर्ट जोन बाहर भी आए। 'शेरशाह' में विक्रम बत्रा का किरदार, सिद्धार्थ मल्होत्रा के पिछले किरदारों के फेरबदल से आए एक्सपीरिएंस का साझा अनुभव है।

फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी की केमेस्ट्री बेहद उम्दा नजर आई। सिद्धार्थ तो विक्रम बत्रा के किरदार में थे ही लेकिन फिल्म के दौरान कियारा हाव-भाव में बिल्कुल नैचुरल लगीं। ऐसा लग रहा था कि वह डिंपल चीमा के किरदार को खुद में जी रही हों।  खास तौर पर ''चुप माही चुप है रांझा/बोले कैसे वे ना जा...''  गाना दोनों के बीच के इमोशन्स और फिल्म की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा है, जिसमें कियारा के एक्सप्रेशन काबिले तारीफ हैं।  

कहां निराश करती है फिल्म
फिल्म की एक मात्र कमी ये है कि फिल्म में कमजोर सपोर्टिंग कास्ट है। सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी ​​के अलावा कोई भी कलाकार खास तौर पर प्रभावित नहीं करता है। अगर कुछ जाने-माने कलाकार होते तो फिल्म और भी मनोरंजक होती। हालांकि, कारगिल के जवानों के साथ-साथ विक्रम बत्रा के परिवार वालों से मिलते-जुलते चेहरों को ढूंढना और उन्हें कास्ट करना एक टेढ़ी खीर है।

कुल मिलाकर, 'शेरशाह' मनोरंजक वॉर ड्रामा के साथ-साथ अच्छे एक्शन ब्लॉक्स और प्रभावशाली भावनाओं से लबरेज यह फिल्म कारगिल नायक विक्रम बत्रा की शानदार की जिंदगी की बायोपिक होने पर गर्व कर सकती है।