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Rashmi Rocket Review: तापसी पन्नू की 'रश्मि रॉकेट' असमानता के खिलाफ जंग में एक अहम मोहरा है

तापसी पन्नू की फिल्म 'रश्मि रॉकेट' एक तेजतर्रार एथलीट - रश्मि की कहानी है, जिसे ऊंचाई पर चढ़ते हुए देखना लोगों को गंवारा नहीं है। रश्मि को पुरुष करार दे कर उसे दौड़ने से रोक दिया जाता है।

Himanshu Tiwari 14 Oct 2021, 23:47:46 IST
मूवी रिव्यू:: रश्मि रॉकेट
Critics Rating: 3.5 / 5
पर्दे पर: OCT 15, 2021
कलाकार: तापसी पन्नु
डायरेक्टर: आकर्ष खुराना
शैली: स्पोर्ट्स ड्रामा
संगीत: अमित त्रिवेदी

फर्ज करिये हमारे घर में मां-बहनें जिस शिद्दत से घर का काम करने के दौरान अपनी जिम्मेदारी निभाती हैं, वे इन कामों के लिए सैलरी लेने लगें तो क्या होगा? जिस मोटी सैलरी पर हम बड़े दफ्तरों में काम करते हैं और खुद को जिम्मेदार कहते हैं। कभी एक मां से किसी ने नहीं पूछा कि उसकी जिम्मेदारी के लिए उसे कितनी सैलरी मिलनी चाहिए? कहते हैं दुनिया में सबसे बड़ा दर्जा मां का होता है, मगर एक मां, 'मां' होने से पहले एक महिला होती है और एक महिला के प्रति हमारा समाज कितना उदार है यह किसी से छिपा नहीं है। महिलाओं के प्रति समाज के इसी 'उदारता' से पर्दा उठाने का काम तापसी पन्नू की फिल्म रश्मि रॉकेट कर रही है। 

दशहरा पर रिलीज हो रही तापसी पन्नू की फिल्म रश्मि रॉकेट एक तेजतर्रार धावक की कहानी है, जिसे ऊंचाई पर चढ़ते हुए देखना लोगों को गंवारा नहीं है। जिसका गुप्त रूप से लिंग जांच किया जाता है और उसे दौड़ने से रोक दिया जाता है। 

कहानी

कहानी की शुरुआत तब होती है जब दो पुरुष पुलिस वाले एक गर्ल्स हॉस्टल में घुसते हैं और रश्मि (तापसी पन्नू) को जबरन उसके कमरे से बाहर खींचकर गिरफ्तार करते हैं। इस दौरान एक ने रश्मि का मजाक उड़ाते हुए उसे अपशब्द भी कहे।

फिल्म में फ्लैशबैक के जरिए भुज में रश्मि के बचपन और उसके परिवार के बारे में दिखाया है। बड़ी होने पर शहर रश्मि को 'रॉकेट' के नाम से पुकारता है जो एक टूरिस्ट गाइड के रूप में काम करती है। एक मुलाकात में रश्मि कैप्टन गगन (प्रियांशु पेन्युली) से मिलती है, पहली ही मुलाकात में रश्मि, गगन को भा जाती है। खूबसूरती के बजाए रश्मि के फर्राटेदार होने पर गगन का उस दिल आ जाता है।   

गगन को रश्मि की प्रतिभा का पता तब चलता है जब वह उसके सहयोगी के जिंदगी को बचाने के लिए दौड़ती है। रश्मि की स्पीड देख गगन उसे एथलीट बनने के लिए प्रोत्साहित करता है। जल्द ही भुज की रश्मि वीरा देश की उभरती हुई स्टार 'रश्मि रॉकेट' बन जाती है।

साल 2004 के एशियाई खेलों में रश्मि की आश्चर्यजनक परफॉर्मेंस हर किसी का ध्यान अपनी तरफ खींचने में सफल हो जाती है। मगर उसकी यह प्रतिभा एथलेटिक्स एसोसिएशन के सदस्यों की साजिश का शिकार हो जाती है, लिंग परीक्षण किए जाने के बाद रश्मि को करार दे दिया जाता है कि वह एक पुरुष है। इस परिस्थिति में उसकी मुलाकात  एक वकील इशित (अभिषेक बनर्जी)  से होती है जो उसे न्याय दिलाना चाहता है। क्या 'रश्मि' अपने भाग्य के आगे घुटने टेक देगी या भारत की महिला एथलीटों की भलाई के लिए, समाज के पूर्वाग्रहों और साजिश से लड़ेगी? रश्मि रॉकेट की कहानी इसी क्रम में आगे बढ़ती है। 

अभिनय 

तापसी पन्नू अपनी फिल्मों के चुनाव को लेकर काफी सराहनीय इसलिए रही हैं क्योंकि उन्होंने शायद अब तक के अपने करियर में जिस तरह का भी अभिनय किया है, उसे अपने दम पर बेहतर बनाने की कोशिश की है। अपनी फिल्मों के जरिए वह हमेशा सिद्ध करती आईं हैं कि बॉलीवुड में अब महिला प्रधान किरदारों को लेकर बदलाव हो रहा है, स्क्रीन पर ग्लैमर मात्र से ही किसी फिल्म के सफल होने की शायद गारंटी नहीं रही। फिल्म के जरिए तापसी ने एक एथलीट से एक ऐसी महिला तक का सफर तय किया जो न्याय के लिए लड़ती है। जब इस लड़ाई के दौरान वह हारने लगती है तो इस बात - ''हार जीत तो परिणाम है, कोशिश हमारा काम है'' के जरिए हमेशा खुद को जीतने के लिए प्रेरित करती है। तापसी पन्नू भी शायद इसी मंत्र को मान कर अपने अभिनय से लोगों का दिल जीतती आ रही हैं।  

एक दोस्त से पति होने की ऑनस्क्रीन भूमिका में प्रियांशु पेन्युली, तापसी के साथ कदम मिलाते हैं और अपनी एक्टिंग से रश्मि रॉकेट को एक प्रभावी फिल्म बनाने की तरफ रुख करते हुए हमेशा फिनिश लाइन तक सपोर्ट करते हैं। वकील के रूप में अभिषेक बनर्जी अपने काम में बेहतर करते हैं, उनकी प्रतिभा से लोग अब रू-ब-रू होने लगे हैं। तापसी पन्नू के साथ सुप्रिया पाठक की इक्वेशन दोनों के रिश्ते के बीच में प्यार और नोकझोंक बनाए रखता है। वरुण बडोला, मंत्र, आकाश खुराना, श्वेता त्रिपाठी और सुप्रिया पिलगांवकर सहित बाकी कलाकार अपनी-अपनी भूमिकाओं में प्रभावी हैं।

तकनीकी पक्ष

निर्देशक आकर्ष खुराना और उनकी टीम को एक स्पोर्ट्स-थीम वाली फिल्म बनाने के लिए बधाई देनी चाहिए। उन्होंने इस फिल्म के जरिए न सिर्फ एक संवेदनशील विषय पर बात करने की हिम्मत जुटाई बल्कि लंबे समय से एक गर्म बहस में रहे 'लिंग परीक्षण' और हाइपरएंड्रोजेनिज्म की तरफ इस फिल्म के जरिए लोगों का ध्यान खींचा है। उनकी यह फिल्म महिला एथलीटों के प्रति समाज की धारणा और खेल जगत की राजनीति से पर्दा उठाती है। तापसी पन्नू स्टारर यह फिल्म भारतीय स्प्रिंटर दुती चंद के केस को सामने लेकर आती है जिनके लिंग परीक्षण की वैधता पर सवाल उठाया था।

तकनीकी पक्ष के अन्य पहलुओं में रश्मि के किरदार में तापसी पन्नू की बॉडी लैंग्वेज बिल्कुल एक एथलीट की तरह लगी हैं। फिल्म एक एथलीट की कहानी के साथ-साथ एक बेहतरीन कोर्टरूम ड्रामा भी पेश करती है, जिसे देखने के बाद ऐसा महसूस होता है कि जिसे बड़े ही शोध के साथ बनाया गया है। मानवाधिकार और संविधान के अनुच्छेदों को ध्यान में रखते हुए इस फिल्म के जरिए उन कानूनों पर भी चोट करने की कोशिश की गई है जो आज के वक्त के लिए गैर जरूरी हैं। 

फिल्म कहां निराश करती है?

शुरुआती वक्त में फिल्म की कहानी को थोड़ा लय पकड़ने में समय लगता है जिससे शुरुआत के 20 मिनट में दर्शक कहानी से जुड़ने की उकताहट का सामना कर सकते हैं। तापसी के किरदार की अहमियत को दिखाने के दौरान कुछ नाटकीय पक्ष उभर कर आते हैं  मसलन - गगन के साथी का पैर लैंड माइंस पर पड़ने वाला होता है तभी तापसी रश्मि उसे दौड़ कर बचा लेती है। 

बहरहाल, मशहूर उर्दू शायर असरारुल हक 'मजाज़' (1911-1955) ने महिलाओं को दुनिया में अपने न्यायसंगत स्थिति के लिए लड़ने के लिए उनकी हौसला अफजाई करते हुए कहा था - तेरे माथे पे ये आंचल बहुत ही खूब है लेकिन, तू इस आंचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था। तापसी पन्नू की फिल्म रश्मि रॉकेट मजाज़ के इसी 'परचम' के बारे में शायद फिर से जिक्र कर रही है।