प्रेम रतन धन पायो
Salman Khan and Sonam Kapoor starring movie Prem Ratan Dhan Payo review is here.
सूरज ब़ड़जात्या की खासियत है कि वो पारिवारिक रिश्तों में प्यार का ऐसा रस घोलते हैं जिसका स्वाद हम हमेशा याद रखते हैं।
हालांकि आज के जमाने, या यूं कहे कि परिवारों के समकरण में पिछले कुछ वर्षों में ऐसा बदलाव आया है कि उनमें सूरज के 'परिवार' जैसी खुशबू मिलना मुश्किल है, लेकिन उनकी कोशिश फिर भी सकारात्मक है। फिल्म ‘प्रेम रतन धन पायो’ सूरज की ऐसी ही एक कोशिश का नतीजा है, जो हमे फिर से परिवार के हर एक रिश्ते की कीमत समझाता है। थोड़ा सा मेलोड्रामा, हंसना-रोना, ये सब निर्देशक की ताकत है।
प्रेम दिलवाला (सलमान खान) आयोध्या का रहने वाला सीधा-साधा राम-भक्त है जो 'राम-लीला' में फैशनेबल तरीके से भाग लेता है। प्रेम एक रानी मैथिली (सोनम कपूर) के सामाजिक कार्यों को देख उनका दिवाना हो जाता है और उनसे मिलना चाहता है। वहीं दूसरी तरफ प्रीतमपुर के युवराज विजय (सलमान खान) पर उनके छोटे भाई अजय (नील नितिन मुकेश) की साजिश के तहत हमला होता है। हालांकि वो बच जाता है और उसके ईमानदार कार्यकारी दिवान साहब (अनुपम खेर) के अंतर्गत एक खूफिया जगह उसका इलाज चलता है।
विजय को बचाने के लिए दिवान साहब उसकी जगह प्रेम को लाते हैं और उसे युवराज के रूप में पेश करते हैं। अब सीधा-साधा प्रेम कैसे अपनी सादगी से घर में टूटे रिश्तों को जोड़ता है, और क्या होगा जब विजय होश में आएगा, फिल्म हंसी-मजाक के साथ इन सभी सवालों के जवाब आपको देती है।
शुरुआत में अयोध्या की नगरी और कुछ पवित्र श्लोक देखकर ही आपको अंदाजा हो जाता है कि सलमान खान स्टारर ये फिल्म पूर्ण रूप से नैतिकता और हर जगह केवल प्रेम की परिभाषा ही फैलाने वाली है।
खूब सारे गीतों, रंगारंग सेट्स और अच्छी कहानी के बलबूते पर ये फिल्म आपका मनोरंजन करती है। ये तो आपको मानना पड़ेगा कि सलमान की फिल्म बहुत ज्यादा खीचा-तानी किए बगैर बड़ी-बड़ी बातों को कुछ ही मोटे-मोटे शब्दों में समझा जाती हैं। ऐसा ही फिर से देखने को मिलता है। फिल्म के डायलॉग्स शक्कर की चाश्नी में डूबो-डूबोकर किरदारों के मुंह से निकलते हैं, लेकिन ये इतने भी मीठे नहीं कि आपको डायबटीज हो जाए।
सूरज की पिछली फिल्मों की तुलना में यहां डायलॉग्स और मेलोड्रामा का जो टोन है वो कम है और आज के जमाने के हिसाब से ये ठीक भी है, हालांकि कुछ जगह सूरज बाज नहीं आते। कई जगह फिल्म इसी मेलोड्रामा की वजह से मात खाती है, लेकिन सहीं समय पर ये संभल भी जाती है।
फिल्म की कहानी प्रेडिक्टिबल है, हालांकि सूरज की पिछली फिल्मों की तुलना में इसमें ससपेंस भी है।
सलमान और बाकी कलाकारों में पनपते हंसी-मजाक के बीच सदाचार-पूर्ण ज्ञान है जो उबाउ नहीं लगता बल्कि आपको एक सुखद एहसास देता है।
सलमान खान के लिए फिल्म में फिर से अपने प्रेम रूप को दिखाना कितना चुनौतीपूर्ण रहा होगा ये समझा जा सकता है।
फिल्म में उनके दो रूपों को दिखाना एक रणनीति भी कही जा सकती है जिससे दर्शक ये जान ले कि 'दबंग' खान में प्रेम अब भी जिंदा है। प्रेम की वो मासूमियत और शरारत आज भी उतनी ही मोहित करती है जितनी 16 वर्ष पहले करती थी। सलमान फिर से हर दृश्य में आपको हंसाते है और रिश्तों की अहमियत समझाते-समझाते आपको भावुक भी करते हैं।
सोनम कपूर राजश्री की फिल्मों में चंचल अभिनेत्रियों की जगह को बखूबी भरती हैं। सलमान से उनके सीन सूरज की पिछली फिल्मों की याद दिलाते हैं। जैसे माधुरी दीक्षित के संग सलमान का किचन वाला सीन।
स्वरा भास्कर एक स्वाभिमानी बहन के किरदार को इमानदारी के साथ निभाती हैं। नील नितिन मुकेश एक इर्ष्यालु छोटे भाई के किरदार में नफरत भरने में कामयाब होते हैं।
अनुपम खेर एक इमानदार कार्कारी के रुप में जंचते हैं। प्रेम के दोस्त के रूप में दीपक डोब्रियाल जितनी बार भी पर्दे पर आते हैं, वो हंसी का तड़का जरूर डालते हैं।
फिल्म के गीत, जैसे की बताया कि काफी हैं, सीन के हिसाब से ठीक बैठते है। 'आज उनसे मिलना हैं हमें' और फिल्म का टाइटल ट्रैक यादगार है।
अंत में ये कहा जा सकता है कि सूरज का 'प्रेम' आपका फिर से मनोरंजन जरूर करेगा। दिवाली और भैयादूज की थीम के साथ ये फिल्म एक परफेक्ट फैमिली इंटरटेनर है।