पीके
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पीके की कहानी
फिल्म में जगत जननी उर्फ जग्गू (अनुष्का शर्मा) विदेश से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी करके वापस अपने घर दिल्ली आती है। वहीं दिल्ली में किसी अनजान ग्रह से एक एलियन आता है जिसका धरतीवासी नाम रखते हैं पीके (आमिर खान)।
टीवी रिपोर्टर बन चुकी जग्गू को जब पीके के धरती पर आने की असली कहानी पता चलती है तो वह उसे वापस भेजने का जिम्मा लेती है। पर इस पूरे प्रोजेक्ट में एक अड़चन है, जिसका नाम है स्वामी जी (सौरभ शुक्ला)। स्वामी जी एक धर्म गुरु है और इन्ही के पास वो यंत्र है जिसके जरिये पीके अपने ग्रह वापस जा सकता है। इसी यंत्र को पाकर स्वामी जी अपने भक्तों से मंदिर बनाने के लिए पैसा इकट्ठा कर रहे हैं, ये कह कर कि ये यंत्र भगवान ने उन्हें दिया है। जग्गू की योजना के अनुसार वो पीके को न केवल वो यंत्र वापस दिलवाना चाहती है, बल्कि स्वामी जी का भंडाफोड़ भी करना चाहती है। तो क्या जग्गू इसमें कामयाब होगी? जानने के लिए देखिए पीके।
क्या है पीके में सफलते के मूल मंत्र-
मेन प्लॉट पता चल जाने के बाद आखिर इस ढाई घंटे की फिल्म में ऐसा क्या है, जो आपको बांधे रखेगा? वो है आमिर खान का बेहतरीन अभिनय और फिल्म में वो छोटी-छोटी बातें जिन्हें आज कोई चौराहे पर करने बैठ जाए तो लोग उसे मिनटभर में पागल या बावला कह कर भगा देंगे। इन छोटी-छोटी बातों को बेहद असरदार बनाया है राजू हिरानी और उनकी टीम ने।
लगभग हर बात काफी हल्के-फुल्के अंदाज में कही गई है। डांसिंग कार क्या है, ये आप फिल्म देख कर जानें तो अच्छा है। और भी कई बातें हैं। जैसे मातम और खुशी का रंग क्या है, काला या सफेद? क्या इंसान धर्म की पहचान साथ लेकर पैदा होता है? और दूसरे ग्रह पर क्या झूठ नाम की कोई चीज होती है? दूसरे ग्रह से आया कोई इंसान धरती से अपने साथ क्या लेकर जाना चाहेगा?
अभिनय के मामले में आमिर खान हर बार की तरह यहां भी अच्छा अपनी छाप छोड़ते दिखते हैं। शायद इसलिए फिल्म में बाकी कलाकारों के लिए कुछ करने का स्कोप बेहद कम दिखता है। सुशांत सिंह राजपूत का रोल बेहद छोटा है। सौरभ शुक्ला काफी सही अभिनय करते हैं।
2014 के बिदाई की बेला में एक बेहतरीन तोहफा 'पीके' के रूप में राजकुमार हिरानी ने सिने प्रेमियों को दिया है और इसे जरूर देखा जाना चाहिए।