नूर
फिल्म में सोनाक्षी नूर नाम की एक जर्नलिस्ट के किरदार में हैं, जो खुद को जर्नलिस्ट कम और जोकर ज्यादा समझती है।
अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा की फिल्म ‘नूर’ पाकिस्तानी पत्रकार और लेखिका सबा इम्तियाज के उपन्यास ‘कराची, यू आर किलिंग मी’ का फिल्मी रूपांतरण है। फिल्म में सोनाक्षी नूर नाम की एक जर्नलिस्ट के किरदार में हैं, जो खुद को जर्नलिस्ट कम और जोकर ज्यादा समझती है। जिसने भी सबा इम्तियाज का उपन्यास पढ़ा है उसे यह फिल्म, उपन्यास के मुकाबले काफी कमजोर लगेगी। उपन्यास का फिल्मीकरण करने में थोड़ी छूट ली जाती है लेकिन यहां शहर, देश, नायिका का नाम और प्लॉट ही बदल गया है।
कहानी
खैर बात करते हैं फिल्म की, सोनाक्षी सिन्हा यानी नूर एक पत्रकार है, जो एक न्यूज एजेंसी में काम करती है, वो पत्रकारिता से दुनिया बदलना चाहती है लेकिन खुद उसके अंदर एक जर्नलिस्ट के गुण नहीं हैं। वो बेहद ही अनप्रोफेशनल है। वो ऑनकैमरा ही सेलिब्रिटी को कोसने लगती है, इंटरव्यू के वक्त अजीब-अजीब हरकतें करती हैं। फिल्म देखकर लगता है फिल्म के निर्देशक और लेखक को पत्रकारिता की कोई जानकारी नहीं है।
नूर की जिंदगी में उसके दो दोस्त जारा पटेल यानी शिबानी दांडेकर और साद सहगल यानी कनन गिल हैं। 28 साल की नूर न ही अपनी नौकरी से खुश है और न ही अपनी जिंदगी से। वो वास्तिवकता से जुड़े मुद्दे पर स्टोरी करना चाहती है लेकिन उसके बॉस से एंटरटेनमेंट स्टोरी के लिए भेजते हैं। अचानक नूर की जिंदगी तब बदल जाती है जब उसके हाथ एक बड़ी स्टोरी लगती है। नूर के घर में काम करने वाली मेड से उसे एक वीडियो मिलता है जिसे वो अपने न्यूज एजेंसी में लेकर पहुंचती है लेकिन वो स्टोरी रिजेक्ट कर दी जाती है। बाद में वही स्टोरी कोई चुरा लेता है, और टीवी की दुनिया में तहलका मच जाता है। बाद में नूर सोशल मीडिया का सहारा लेती है, और अपने मकसद में कामयाब हो जाती है।
फिल्म में एक लंबा मोनोलॉग भी है, जो मुंबई शहर पर है, उसकी लिखावट तो बहुत अच्छी है लेकिन उसका प्रयोग कर पाने में भी निर्देशक असफल रहे हैं। एक और बात खटकती है कि इस मोनोलॉग का फिल्म के मुख्य मुद्दे से कनेक्शन ही नहीं हो पाता है, जबकि इसी वीडियो की वजह से नूर स्टार बन जाती है।
खामियां
फिल्म की कमजोर कड़ी इसकी रफ्तार है, फिल्म बहुत ही स्लो है। शुरूआत के 15 मिनट नूर खुद अपना इंट्रो कराती है जो बहुत ही बोरिंग लगता है। फास्ट मूवी देखने वालों को यह फिल्म बोझिल लगेगी। इस विषय पर और अच्छी फिल्म बनाई जा सकती थी। फिल्म देखते वक्त कोंकणा सेन की ‘पेज 3’ भी याद आती है, लेकिन यह फिल्म पेज 3 के मुकाबले कहीं नहीं ठहरती है।
खूबियां
फिल्म की खूबी वो मैसेज है जो फिल्म हमें देने की कोशिश करती है। फिल्म में सीख दी जाती है कि एक जर्नलिस्ट का काम सिर्फ टीआरपी के लिए न्यूज इकट्ठा करना नहीं है, बल्कि पत्रकारों के भी कुछ एथिक्स होते हैं, कुछ जिम्मेदारियां होती हैं, जिसे उन्हें अनदेखा नहीं करना चाहिए।
अभिनय
अभिनय की बात करें तो सोनाक्षी ने दमदार अभिनय किया है, वे इस बार बिल्कुल अलग और नॉनग्लैमरस किरदार में हैं और अपने किरदार को उन्होंने बखूबी निभाया है। लेकिन कनन गिल अपने रोल में बिल्कुल मिसफिट लगे हैं, उनसे एक्टिंग भी नहीं हो पा रही थी। फिल्म में पूरब कोहली एक इंट्रेस्टिंग किरदार में नजर आते हैं, उन्होंने अपना अभिनय ठीक ढंग से निभाया है।
देखें या नहीं
अगर आप सोनाक्षी सिन्हा के फैन हैं और स्लो फिल्में पसंद करते हैं तो नूर देख सकते हैं, फास्ट और एंटरटेनमेंट फिल्में पसंद करने वाले लोगों को ‘नूर’ बेनूर ही लगेगी।
इस फिल्म को हम 2 स्टार देंगे।