Movie Review: दो नेशनल अवॉर्ड विनर भी नहीं बचा पाए ‘सिमरन’ को
फिल्म 'सिमरन' की कहानी एक गुजराती लड़की प्रफुल्ल पटेल की है, जो 30 साल की तलाकशुदा लड़की है और अपने मां-बाप के साथ अमेरिका में रहती है।
फिल्म समीक्षा: निर्देशक हंसल मेहता राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीत चुके हैं, वहीं अभिनेत्री कंगना रनौत को भी 3 बार नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। ये दोनों जब मिलकर कोई एक फिल्म बनाएंगे तो लोगों को फिल्म से उम्मीद तो होगी ही। जिस फिल्म के प्रमोशन के दौरान कंगना ने अपनी निजी जिंदगी के पन्ने भी लोगों के सामने बेबाक होकर खोल दिए, क्या वो फिल्म भी इतनी ही बेबाक है? कंगना ने 'क्वीन' जैसी फिल्म से अपनी एक अलग पहचान बनाई है, लेकिन क्या 'सिमरन' में भी 'क्वीन' वाला जादू है?
यह कहानी एक गुजराती लड़की प्रफुल्ल पटेल की है, जो 30 साल की तलाकशुदा लड़की है और अपने मां-बाप के साथ अमेरिका में रहती है। प्रफुल्ल एक होटल में हाउसकीपिंग की जॉब करती है। एक दिन प्रफुल्ल भटकते हुए लास वेगास के एक जुएखाने में पहुंच जाती है। वहां वो बहुत सारा पैसा जीत लेती है। इसके बाद प्रफुल्ल को जुए की लत लग जाती है और वो अपने घर के लिए बचाए पैसे भी जुए में हार जाती है। जब उसे एहसास होता है कि वो सारे पैसे हार गई तो एक प्राइवेट मनी वेंडर उसे पैसे देता है, प्रफुल्ल उन पैसों को भी हार जाती है। अब वो गुंडा प्रफुल्ल के पीछे पड़ जाता है कि या तो वो उसे 50 डॉलर दे या फिर वो उसे गोली मार देगा। उधार चुकाने के लिए प्रफुल्ल सिमरन बनकर बैंक लूटना शुरू कर देती है और अंत में पकड़ी जाती है।
जब फिल्म शुरू होती है तो थोड़ी कन्फ्यूजिंग होती है, धीरे-धीरे आपको फिल्म देखते वक्त और प्रफुल्ल का परेशानियों को हैंडल करने का तरीका देखकर हंसी आएगी। कई जगह आप इमोशनल भी होंगे मगर एक ही तरह के सीन बार-बार आने के बाद आप इंटरवल का इंतजार करने लगेंगे। इंटरवल के बाद जब फिल्म शुरू होती है तो लगता है शायद अब कुछ अलग होगा, लेकिन फिर से फिल्म वैसी ही चलने लगती है जैसे पहले थी। फिल्म खत्म होने के बाद भी आपको निराशा हाथ लगेगी।
फिल्म में जिस तरह से प्रफुल्ल बैंक लूटती हैं, वो बचकाना लगता है। फिल्म देखकर लगता है बैंक लूटना बच्चों का खेल है, ‘धूम 3’ में आमिर खान ने बेवजह इतनी मेहनत की थी। उन्हें प्रफुल्ल पटेल से ट्रेनिंग लेनी चाहिए थी। प्रफुल्ल के सामने अमेरिकन पुलिस जोकर की तरह बिहैव करती है। वो लिपिस्टिक से नोट लिखकर धमकी देती है कि उसके शरीर में बम फिट है, लेकिन वो हर बार बचकर निकल जाती है। न ही कैमरा और न ही फिंगर प्रिंट की वजह से वो पकड़ी जाती है।
हंसल मेहता और कंगना ने क्यों सोचा कि इस विषय पर फिल्म बनानी चाहिए यह समझ से परे है। जो फिल्म 15 मिनट की शॉर्ट फिल्म के तौर पर बनाई जा सकती थी उसे ढाई घंटे की फिल्म के रूप में पर्दे में उतारना हजम नहीं होता है। फिल्म में सिर्फ कंगना ही नजर आती हैं, किसी सपोर्टिंग कास्ट की एक्टिंग प्रभावित नहीं करेगी।
फिल्म की लोकेशन और सिनेमेटोग्राफी अच्छी है। मगर स्क्रिप्ट और कहानी पर ज्यादा मेहनत नहीं की गई है। फिल्म का संगीत भी औसत है। कुल मिलाकर कंगना और हंसल मेहता इस बार एक शानदार फिल्म देने से चूक गए।
देखें या नहीं- अगर आप कंगना के जबरदस्त फैन हैं तो सिर्फ उनके लिए यह फिल्म देख सकते हैं। अन्यथा आपको सिर्फ निराशा ही हाथ लगेगी।
स्टार- इस फिल्म को मैं 5 में से 2 स्टार दूंगी।
-ज्योति जायसवाल
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