मुक्काबाज़ मूवी रिव्यू 3/5: अनुराग कश्यप ने दिखाया है कि खेल में राजनीति किस तरह घुसी हुई है
अनुराग कश्यप ने दिखाया है कि खेल में राजनीति किस तरह घुसी हुई है, खासकर यूपी जैसे राज्य में जहां कोई चाहे तो भी नहीं खेल सकता है, खेलता है तो सिर्फ स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी के लिए।
स्पोर्ट्स पर भारत में कई फिल्में बनी हैं, लेकिन जिस तरह की फिल्म अनुराग कश्यप ने हमें ‘मुक्काबाज़’ के रूप में दी है वो फिल्म सबसे अलग है। न कोई बड़ा स्टार और न कोई जबरदस्ती की देशभक्ति की भावना... फिल्म में जो कुछ दिखाया गया है वो आपने रियल लाइफ में देखा है, मसहूस किया है और जिया भी है। फिल्म में प्यार, और मुक्केबाज़ी के अलावा, खेल में राजनीति है, जातिवाद के नाम पर ज़ुल्म, गाय के नाम पर गुंडागर्दी जैसे तमाम मुद्दे दिखाए गए हैं, जिसे देखकर आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे।
अनुराग कश्यप ने दिखाया है कि खेल में राजनीति किस तरह घुसी हुई है, खासकर यूपी जैसे राज्य में जहां कोई चाहे तो भी नहीं खेल सकता है, खेलता है तो सिर्फ स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी के लिए। जिसके सिर पर राजनेता का हाथ है उसका सलेक्शन तय है जिसके पास ज़ुनून है खेलने का उसे बस चक्कर लगाने पड़ते हैं। फिल्म की कहानी यूपी के बरेली और बनारस के इर्द गिर्द घूमती है।
कहानी- यह कहानी यूपी के बरेली में रहने वाले श्रवण कुमार (विनीत कुमार सिंह) की है, जो खुद को यूपी का माइक टायसन कहता है और उसका सपना है कि वो मुक्केबाज़ी में आगे जाए। इसके लिए वह भगवान दास मिश्रा (जिमी शेरगिल) के पास जाता है, जो कोच भी है और बाहुबली नेता भी। मगर वो बॉक्सरों से अपने पर्सनल काम करवाता है जिसमें टॉयलेट साफ करने से लेकर गेंहू पिसवाना तक शामिल होता है। भगवान दास की भतीजी सुनैना (ज़ोया हुसैन) को श्रवण देखता है उसे दिल दे बैठता है, उसे इम्प्रेस करने के चक्कर में वो भगवान दास को मुक्का तक जड़ देता है। इसके बाद उसे खेलने के लिए बरेली छोड़कर बनारस जाना पड़ता है क्योंकि यहां किसी भी कीमत पर भगवान दास उसका लेटर अप्रूव नहीं करते हैं। बनारस में उसे कोच के रूप में संजय कुमार (रवि किशन) मिलते हैं। लेकिन भगवान दास चुप बैठने वाले में से कहां है वो हर ऐसी हरकत करता है जिससे श्रवण अंदर और बाहर हर जगह से टूट जाए। कैसे श्रवण इन सब परिस्थियों का सामना करता है यही फिल्म में दिखाया गया है।
फिल्म का एक सीन देखकर आपको एम एस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी की याद आ जाएगी। जैसे धोनी स्पोर्ट्स कोटे से रेलवे में नौकरी लेकर परेशान रहते हैं कुछ वैसा ही हाल श्रवण का भी होता है। फिल्म में इस चीज का भी जिक्र है कि किस तरह स्पोर्ट्स कोटे से जॉब लेकर आने वाले खिलाड़ियों को सरकारी दफ्तर में चपरासी की जिंदगी जीनी पड़ती है। अगर आप यूपी से हैं तो आपको लगेगा आप अपनी ही कहानी देख रहे हैं, क्योंकि फिल्म में ऐसा बहुत कुछ है जो आपने कभी न कभी कहीं न कहीं झेला जरूर होगा।
अभिनय- फिल्म में श्रवण के रूप में विनीत कुमार सिंह और सुनैना के रूप में ज़ोया पूरी फिल्म में छाए रहे हैं। विनीत ने जितना सहज अभिनय किया है आप उनके फैन हो जाएंगे। ज़ोया जितनी खूबसूरत लगी हैं उतनी ही उम्दा परफॉरमेंस दी है। वो फिल्म में गूंगी हैं इशारों-इशारों में जिस तरह वो बात करती हैं और बिना बोले जिस तरह का अभिनय उन्होंने निभाया है वो आपके दिल को छू जाएगा। फिल्म में सबसे ज्यादा निराश रवि किशन ने किया है उनका अभिनय खास प्रभावित नहीं करता है। जिमी शेरगिल हमेशा की तरह दमदार लगे हैं, लेकिन उनका रोल ठीक तरह से नहीं लिखा गया था।
म्यूज़िक- फिल्म के गाने ‘मुश्किल है अपना मेल प्रिये’ और ‘बहुत हुआ सम्मान’ पहले से ही हिट हो चुके हैं। फिल्म में इन गानों को देखकर आपको खूब मज़ा आएगा।
फिल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी एक स्पेशल अपीयरेंस में नज़र आएंगे जिन्हें देखकर आप सीटी जरूर बजाएंगे।
क्यों देखें? – यह फिल्म आपको समाज का आइना दिखाने के साथ-साथ आपका पूरा एंटरटेनमेंट करेगी। इस वीकेंड अगर आप फिल्म देखने का प्लान बना रहे हैं तो ‘मुक्काबाज़’ देख आइए।