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रिव्यू: 'मैं अटल हूं' में दिखती है त्याग, देशप्रेम और समर्पण की कहानी, पंकज त्रिपाठी की दमदार एक्टिंग ने जीता दिल

'मैं अटल हूं' एक ऐसी फिल्म है, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के पूरे जीवन को बखूबी दिखाया गया है। पंकज त्रिपाठी की दमदार एक्टिंग ने पूरी फिल्म में जान डाल दी है। मानो अटल बिहारी वाजपेयी का किरदार कोई दूसरा एक्टर बखूबी निभा ही नहीं सकता था।

Jaya Dwivedie 19 Jan 2024, 9:42:23 IST
मूवी रिव्यू:: मैं अटल हूं
Critics Rating: 3.5 / 5
पर्दे पर: 19/01/2024
कलाकार:
डायरेक्टर: रवि जादव
शैली: बायोग्राफिकल डॉक्यूमेंटेशन
संगीत: सलीम सुलेमान, पायल देव, कैलाश खेर और अमित राज

'मैं अटल हूं' एक बायोग्राफिकल डॉक्यूमेंटेशन है। फिल्म में पंकज त्रिपाठी अटल बिहारी वाजपेयी की मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म की कहानी अटल बिहारी वाजपेयी के हर छोटे बड़े पहलु को रेखांकित करती है। 'दलों के इस दलदल के बीच एक कमल खिलाना है' जैसे दमदार संवाद से ही साफ हो जाता है कि अटल बिहारी वाजपेयी कितने सौम्य और दूरदर्शी विचार रखने वाले व्यक्ति थे। ये डायलॉग तब आता है जब भाजपा के गठन की योजना बनाई गई। पंकज त्रिपाठी इस संवाद को पूरा करने के लिए हर वो भाव प्रकट किए, जो अटल बिहारी वाजपेयी की छवि को प्रस्तुत कर सकते थे। पाकिस्तानी मीडिया की एक महिला जर्नलिस्ट के साथ भी फिल्म में एक संवाद है, जो दर्शाता है कि किस तरह वाजपेयी गंभीर बातें भी सरल अल्फ़ाज़ों में कह जाते थे।'मैं आपसे शादी करने को तैयार हूँ लेकिन दहेज में पूरा पाकिस्तान चाहिए', इस डायलॉग के जरिये पंकज त्रिपाठी ने वाजपेयी के मज़ाकिया अंदाज से भी रूबरू कराया है। फिल्म के हर पहलू को आप इस रिव्यू के जरिये समझ पाएंगे।

फिल्म की कहानी

अटल बिहारी वाजपेयी की जिंदगी के हर पहलू को छूने का दो घंटे में फिल्म प्रयास करती है। 'मैं अटल हूं' की कहानी  की शुरुआत पाकिस्तान के प्रति वाजपेयी के नर्म-गर्म तेवर से शुरू होती है। फिर कहानी फ्लैशबैक में जाती है। एक अच्छा वक्ता बनने के साथ ही एक सफल इंसान और महान राजनेता बनने में पिता के योगदान के साथ कहानी आगे बढ़ती है। अटल बिहारी वाजपेयी के बचपन से शुरुआत होकर युवास्था में पहुंचना, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का निडर कार्यकर्ता बनने से देश के प्रधान मंत्री बनने के सफर को इस कहानी में दिखाया गया है। अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेम कहानी कैसे देश प्रेम में बदलती है इसका भी सजीव चित्रण है। आजादी में योगदान देते हुए हेडगेवार को अपना आइडियल मानने वाले वाजपेयी कैसे पंडित दीनदयाल से मिले और श्यामा प्रासाद मुखर्जी के करीबी बने ये दिखाया गया है। फिल्म में उनके पॉलिटिकल करियर की झलक के साथ उनकी अचीवमेंट पर भी जोर दिया गया है, जिसमें परमाणु परीक्षण से लेकर कारगिल युद्ध की जीत शामिल हैं। संसद और UN के जोरदार भाषणों को भी शामिल किया गया है। बतौर प्रधानमंत्री उनके निर्णायक कदमों को दिखाते हुए कारसेवक गोली कांड में उनके टूटे दिल को दिखाने का प्रयास किया गया है। चुनाव में जीत हार के साथ अविश्वास प्रस्ताव पर भी फिल्म में फोकस करती है। कुल मिलाकर फिल्म उनकी जिंदगी के मुश्किल और सफल दोनों दौर को दिखाती है। उनकी कविताओं का भी सही उपयोग फिल्म में हुआ है।

अभिनय

पंकज त्रिपाठी ने बखूबी अटल बिहारी वाजपेयी की छवि को पेश किया। पंकज ने पॉश्चर, हाथों की हरकतें, चेहरे के हाव-भाव उतारने का प्रयास किया है। वाजपेयी को हू-ब-हू परदे पर उतारना जरा भी आसान नहीं है। हिंदी पर जैसी पकड़ वाजपेयी की थी, वैसे पकड़ किसी भी एक्टर की होना मुश्किल है, ऐसे में पंकज को चुनना इस रोल के लिए सही रहा। हिंदी बेल्ट से आने के चलते उनकी हिंदी पर कमांड फिल्म में देखने को मिल रही है। कविताओं और भाषण शैली भी कमाल के हैं। वाजपेयी की कविताएं उनकी जिंदगी की हर कमी की पूरक रही है, ठीक वैसे ही पंकज के अभिनय में ये कविताएं और भाषण पूरक बने हैं। कुल मिलाकर वाजपेयी के विचारों को लोगों तक पहुंचाने में पंकज सफल हुए हैं। वाजपेयी की प्रेमिका राजकुमारी के रोल में एकता कॉल ने अच्छा काम किया है। टीवी की दुनिया से इतर उनका काम निखर कर सामने आया है। पियूष मिश्रा फिल्म में नरेटर के साथ ही वाजपेयी के पिता के किरदार में हैं। छोटे से रोल में भी उनकी छाप अमिट है। वहीं दीनदयाल उपाध्याय के अहम किरदार को सही रूप रंग दया शंकर पांडेय ने दिया है। ये भी टीवी इंडस्ट्री का जाना माना नाम हैं।

डायरेक्शन 

रवि जादव ने 'मैं अटल हूं' का डायरेक्शन किया है। डायरेक्शन की भी तारीफ बनती है। बिना लग लपेट के अटल के बचपन से लेकर उनके देश के प्रति समर्पण की यात्रा  को 2 घंटे में समेटना अपने आप में बड़ी बात है। इतना ही नहीं फिल्म में हर लाइफ स्टेज को बराबरी से अहमियत दी गई है। बचपन से युवावस्था और फिर स्वयंसेवक से एक महान राजनेता में तब्दील होने की दास्तान को दिखाना आसान नहीं है, लेकिन बेजोड़ डायरेक्शन के चलते ही जिंदगी की हर बारीकी को दिखाया गया, फिर चाहे वो हैंड मूवमेंट हो या वाजपेयी की तरह पंकज का बार-बार पलकें झपकाना रहा हो। 

सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग

सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग की बात करें तो फिल्म में वाइड, लॉन्ग और क्लोज अप शॉट्स का शानदार इस्तेमाल हुआ है। रैलियों में भीड़ दिखाने के लिए वाइड शॉट और इमोशंस दिखाने के लिए क्लोज अप शॉट्स लिए गए हैं। इसके आलावा परछाई यानी शैडो को ध्यान में रखते हुए कई शॉट्स लिए गए हैं। संसद में दिखाए गए दृश्यों को और जीवंत दिखाने के लिए लाइट का ऐसा इस्तेमाल किया गया है मानो सूरज की रोशनी सीधे अटल बिहारी वाजपेयी पर पड़ रही हो। ऐसा करने से उनके किरदार पर फोकस और अधिक बढ़ गया है, जिससे वो भव्य प्रतीत हो रहा है। फिल्म की एडिटिंग भी शानदार है और कलर्स का अच्छा प्रयोग दिखा है। कई जगहों पर असल फुटेज का इस्तेमाल भी किया गया है।

म्यूजिक

फिल्म को और दमदार इसका म्यूजिक बना रहा है। कमाल के लिरिक्स सिचुएशन के हिसाब से सटीक बैठे हैं। पूरी फिल्म में गानों का सही इस्तेमाल किया गया है। इससे दर्शकों को बांधे रखने में मदद मिली है और इसी के चलते कहानी कहीं भी कमजोर नहीं पड़ी है।सलीम सुलेमान, पायल देव, कैलाश खेर और अमित राज फिल्म में म्यूजिक कम्पोज़र्स हैं।

कैसी है फिल्म

अटल बिहारी वाजपेयी को समझना है तो ये फिल्म 'मैं अटल हूं' आपको जरूर देखनी चाहिए। इस फिल्म में आपको उनकी जिंदगी के ऐसे शानदार पहलू भी देखने को मिलेंगे, जिनके बारे में लोगों को आज तक पता नहीं है। वाजपेयी एक राजनेता के साथा-साथ निजी जिंदगी में भी कितने शानदार व्यक्ति थे, आपको इस फिल्म में देखने को मिलेगा। पंकज त्रिपाठी के अभिनय के कारण आपको ऐसा लगेगा, मानो आपके सामने खुद अटल बिहारी वाजपेयी ही हैं।