Jigra Review: कहां चूके और कहां चमके आलिया भट्ट-वेदांग रैना, इमोशन का समंदर है 'जिगरा'
आलिया भट्ट और वेदांग रैना की ड्रामा थ्रिलर फिल्म 'जिगरा' सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। वासन बाला की इस फिल्म में इमोशन, एक्शन और कहानी तो शानदार है, लेकिन फिर भी कुछ कमी है। पूरा रिव्यू पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें।
जिगरा रिव्यू: आलिया भट्ट 14 महीने बाद वासन बाला की 'जिगरा' के साथ बड़े पर्दे पर वापस आ गई हैं। 'द आर्चीज' के अभिनेता वेदांग रैना की यह पहली फिल्म है। फिल्म मुंबई और सिंगापुर में सेट की गई है। 'जिगरा' आलिया भट्ट के किरदार सत्या आनंद के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसका एक भाई है। दोनों की कई चुनौतीपूर्ण स्थिति में परवरिश हुई है। कहानी में तब इमोशनल ड्रामा देखने को मिलता है जब फिल्म का सबसे दुखद मोड़ आता है, जब उसका भाई अंकुर आनंद (वेदांग रैना), जो उसके जीने का एकमात्र सहारा है। वह एक विदेशी जेल में कैद हो जाता है और उसके साथ वहां दुर्व्यवहार किया जाता है। कहानी एक रियल लाइफ के सुपरहीरो के दुख-दर्द को पेश करती है। अपने भाई के लिए वह मामले को अपने तरीके से सुलझाने की कोशिश करती है और जेल से बाहर निकलने में उसकी मदद करने के नए-नए रास्ते खोजती है।
कहानी
'जिगरा' की शुरुआत सत्या और अंकुर से होती है जो अपने घर की सीढ़ियां चढ़ते समय एक सिबलिंग गोल दिखाते हैं। हालांकि, पहले ही सीन से फिल्म में इमोशनल सीन्स देखने को मिलने लगते हैं क्योंकि इसकी शुरुआत उनके पिता की आत्महत्या करने से होती है। पलक झपकते ही फिल्म बड़े हो चुके सत्या और अंकुर पर आ जाती है जो अपने चाचा के घर में रहते हैं। जहां सत्या एक परिवार के सदस्य की तरह नहीं बल्कि कर्मचारी के रूप में रहती है। बाद में, अंकुर अपने चचेरे भाई के साथ सिंगापुर जाता हुआ दिखाई देता है, जहां वह अपना करियर बनाने की उम्मीद में जाता है। आखिरकार, सत्या का सबसे बुरा सपना तब सच होता है जब उसके छोटे भाई को विदेश में किसी झूठे मामले में दोषी ठहराया जाता है और वह भी अपने स्वार्थी चचेरे भाई को बचाने के लिए।
ये फिल्म का वही पल है जब किरदार पूरी दुनिया के खिलाफ लड़ने का फैसला करता है, जिसका मकसद किसी भी कीमत पर सिर्फ अपने भाई को बचाना है। हालांकि, न्याय की लड़ाई में सत्या अकेली नहीं होती हैं। उसके साथ राहुल रविंद्रन द्वारा अभिनीत मुथु और सिंगापुर में मनोज पाहवा द्वारा अभिनीत प्यारे मिस्टर भाटिया भी दिखाई देते हैं। अपने प्रियजनों को बचाने के लिए एक ही मकसद से तीनों जेल में घुसने और उन लोगों को आजाद कराने के लिए एकजुट होते हैं। हालांकि, उनका सामना एक ऐसे इंसान से होता जो खूंखार होता है और वो विवेक गोम्बर द्वारा अभिनीत सेंट्रल जेल कमांडर होता है। क्या भाटिया, सत्या और मुथु अपने प्लान को अंजाम देने में सफल होते हैं या इस बीच उन्हें मार दिया जाता है? जवाब जानने के लिए जिगरा देखें।
निर्देशन और लेखन
लेखक और निर्देशक वासन बाला ने 'जिगरा' की स्क्रीन प्ले के साथ शानदार काम किया है। बाला और देबाशीष इरेंगबाम ने इस कहानी को बहुत ही बेहतरीन अंदाज में पेश की है और हर कमी को पूरी करने की कोशिश की है। इसके अलावा, फिल्म का हर सीन काफी महत्वपूर्ण है। कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ाती है और भी ज्यादा सस्पेंस बढ़ता जाता है। हालांकि, निर्माता फिल्म में बेहतर कास्टिंग कर सकते थे। आलिया भट्ट, जो वेदांग रैना की बड़ी बहन का किरदार निभा रही हैं, कुछ सीन्म में उसी उम्र की लग रही हैं और भाई-बहन की बॉन्ड उतने अच्छे से पेश नहीं कर पाई, जिसकी कमी फिल्म में खल रही है। अगर बाला ने आलिया की तुलना में किसी बड़ी उम्र की अभिनेत्री को कास्ट किया होता तो शायद ऑनस्क्रीन ये सिबलिंग बॉन्ड और भी ज्यादा शानदार होता और फिल्म हद से ज्यादा शानदार होती।
'जिगरा' में एक और कमी यह है कि निर्माता सत्या के स्वभाव को खास तारीके से पेश करने में असफल दिखा रही है। कोई यह समझ सकता है कि बचपन में अपने पिता को खोना और मतलबी और स्वार्थी चाचा-चाची के साथ रहना उसे एक गंभीर और एंग्री यंग वूमन बना देगा, लेकिन किरदार में फिल्म की शुरुआत से ही एंग्री स्वभाव दिखाया गया है। इसके अलावा, 'जिगरा' फिल्म के पहले भाग की तुलना में इंटरवल के बाद का दूसरा भाग ज्यादा बेहतर और बेहतरीन है। लेकिन निर्माताओं को एक अच्छे जेल ब्रेक सीक्वेंस बिल्डअप के लिए श्रेय जरूर दिया जाना चाहिए। इसके अलावा, बाला और देबाशीष ने फिल्म में लीड किरदारों के बचपन से लेकर बड़े होने तक की जर्नी को काफी हद तक दर्शाया है।
संगीत
'जिगरा' की सबसे अच्छी बात इसका संगीत रहा है। 'फूलों का तारों का' और 'संग रखना' गाने फिल्म की धड़कन हैं। अरिजीत सिंह और वेदांग रैना की आवाज आपको आंसू बहाने पर मजबूर कर सकती है, लेकिन मसान के लेखक को ऐसे दिल को छू लेने वाले गीतों के लिए सबसे ज्यादा सराहना मिलनी चाहिए। वरुण ग्रोवर ने अपने गीत लेखन से इस फिल्म की धुन तय कर धमाका कर दिया है। हालांकि, यह दुखद है कि दिलजीत दोसांझ के 'चल कुड़िए' को जिगरा में जगह नहीं मिली है, यहां तक कि लास्ट में क्रेडिट तक नहीं दिया गया।
अभिनय
आलिया भट्ट कुछ मामलों में फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी लगी हैं। ट्रेलर में 'अब तो बचपन बनना पड़ेगा' वाला डायलॉग कितना भी बेहतरीन क्यों न लगा हो, लेकिन फिल्म देखते समय यह उतना असरदार नहीं लगा। आलिया की भारी आवाज वाली एक्टिंग फिल्म के साथ अच्छी नहीं लगी। इसके अलावा, 'जिगरा' में गंगूबाई काठियावाड़ी की धीमी आवाज भी कुछ खास नहीं कमाल नहीं कर पाई। जेल में पहली बार अंकुर से सत्या की मुलाकात फिल्म में एक यादगार और भावनात्मक रूप से दिल दहला देने वाला सीन हो सकता था, लेकिन आलिया ने बिना किसी भाव और आंखों से एस भी आंसू बहाए बिना सीन को अच्छे से पेश नहीं किया है। फिल्म के क्लाइमेक्स में वह सबसे अच्छी दिखीं।
वेदांग रैना ने अंकुर के रूप में जिगरा में बहुत ही अच्छा काम किया है। अभिनेता को 'द आर्चीज' की तुलना में 'जिगरा' में उन्हें ज्यादा काम करने का मौका मिलता है। हालांकि, जेल में बिना आंसू बहाए उनका रोना भी लोगों के दिलों को छू गया। इसके अलावा, अंकुर का किरदार सिर्फ 'बड़ी दीदी के छोटे भाई' होने के बजाय और भी मजबूत हो सकता था। दूसरी ओर सहायक कलाकार बेहतरीन हैं! जिगरा में मनोज पाहवा ने कमाल किया है। कुछ ही समय में वह फिल्म की धड़कन बन जाते हैं। पाहवा के आखिरी सीन में बैकग्राउंड में बजने वाला 'यारी है ईमान' गाना निर्माताओं द्वारा एक बेहतरीन शॉट है। मुथु के रूप में राहुल रविंद्रन बेहद भरोसेमंद और सटीक हैं। लेकिन विलेन की भूमिका में विवेक गोम्बर को देखना आंखों को सुकून देने वाला है। सर अभिनेता सिंगापुर के जेल कमांडर के रूप में शक्तिशाली हैं और हर चीज को बखूबी पेश करते हैं। उच्चारण से लेकर कठोर अभिनय तक, अभिनेता ने जिगरा में सब कुछ सही किया है।
कैसी है फिल्म
वासन द्वारा निर्देशित यह फिल्म भाई-बहनों के बीच बहादुरी, वफादारी और प्यार के लिए कभी-कभी किए जाने वाले त्याग की दिल को छू लेने वाली कहानी है। फिल्म में आलिया भट्ट का वेदांग रैना के लिए बहन जैसा प्यार आपको भाई-बहन के प्यार का दीवाना बना सकता है। इस फिल्म में रोमांचकारी एक्शन और पारिवारिक भावनाओं के अलावा भी बहुत कुछ देखने को मिलने वाला है। 'रमन राघव', 'मोनिका ओ माई डार्लिंग' और '83' जैसी कई बेहतरीन फिल्मों के स्क्रीन प्ले लेखक वासन बाला ने जिगरा में भी यही किया है। वह आपको किरदारों के लिए इतना ज्यादा महसूस कराते हैं कि आप उनके हारने पर रोना चाहेंगे और जीतने पर ताली बजाना चाहेंगे। इंडिया टीवी ने 'जिगरा' को 3 स्टार दिया है।