गुड्डू रंगीला
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आज कल की फिल्मों में एक फॉर्मूला लगातार इस्तेमाल होते हुए दिख रहा है। कुछ मसखरों को लीजिए, उनको किसी मुसीबत में डालिए और फिर देखिए कैसे झटपटाते हुए ये बाहर निकलते है।
Jolly LLB से चर्चा में आए निर्देशक सुभाष कपूर की गुड्डू रंगीला भी उसी फॉर्मूले को अपनाती है लेकिन ऑनर किलिंग जैसे गंभीर मुद्दे को यहां केंद्रित करते हुए।
फिल्म की कहानी है दो भाइयों गुड्डू (अमित साध) और रंगीला (अर्शद वारसी) के बारे में जो ऑकेस्ट्रा चलाते हैं और अपनी जिंदगी का गुजारा करते है। कुछ ज्यादा ही धन के लालच में एक दिन ये दोनों एक बंगाली की मदद से बेबी (अदिति रीव) को किडनैप कर लेते है। लेकिन यहां उनको पता चलता है वो लड़की बिल्लू पहलवान (रोनित रॉय) की बहन है जिसने गुड्डू के पिता को भरे बाजार में जिंदा जला डाला था।
यहां पर आता है ट्विस्ट और हंसी-मजाक की जगह ले लेती है बदले की भावना, जिसमें मज़ाक अपनी जगह बरकरार हैं।
फिल्म रियल लाईफ इन्सीडेंट पर आधारित है लेकिन इसमें काम फिक्शन का ही है। हरियाणा, जहां पर खाप पंचायत कानून बनाते है, ये फिल्म वहां की विसंगतिया को दर्शाती हैं लेकिन जगह-जगह पर हास्य का तड़का डालने के साथ।
पहले हाफ में तो फिल्म की पकड़ उसी हास्य की वजह से मज़बूत रहती है। गुड्डु रंगीला का ऑकेस्ट्रा, जो संगीतकार अमित त्रीवेदी के गीतों से समां बांधता है, आपको ठहाके लगाने का मौका देता है।
लेकिन जब इसमे बदले की भावना का एंगल जुड़ता है तब फिल्म ड्रामाटिक हो जाती है और फिल्म का क्लाईमेक्स तो अपके गाले ही नहीं उतरता। ये कपूर का स्टाइल नहीं है।
फिल्म में किरदारों को वो गढ़ते है लेकिन उनके साथ न्याय नहीं कर पाते। हर किरदार की अपनी एक कहानी है लेकिन उससे हमें लगाव इसलिए नहीं होता है क्योंकि जिस गंभीरता की जरूरत थी वो फिल्म से गायब है।
मौत का बदला लेते वक्त वो तीव्रता नहीं है जो होनी चाहिए बल्कि हंसी-मज़ाक उसको और हल्का बनाता है।
लेकिन फिल्म को उर्जा प्रदान करती है यहीं हंसी-मज़ाक करते कलाकार। अरशद वारसी काफी नैचुलर अभिनय करते है और फिल्म के कुछ सीन्स में वो जान डालते है।
अमित साध अपने किरदार में भोलापन लाते है और आप इसमें उन्हें काफी पसंद करेंगे। रोनित राय एक गुस्सेल और अड़ियल पहलवान के किरदार से हम खूब नफरत करते है जो उनकी जीत है। अदिति राव को फिल्म में ज्यादा मौका नहीं मिला है।
एक अभिनेता जो अपने हर सीन में छा जाते है वो हैं राजीव गुप्ता। एक हरियाणवी पुलिस अफसर के किरदार में ये कमाल का प्रदर्शन देते हैं।
एक लाइट-हार्टेड फिल्म जिसमें एक गंभीर मुद्दा है अपनी पटकथा की वजह से आसानी से खराब हो सकती थी लेकिन नहीं होती । ये एक रोचक, हंसी से भरी फिल्म है जो कभी-कबार कुछ सोचने पर मजबूर करती है। अपनी खामियों के बावजूद गुड्डु रंगीला देखने लायक है।