Chhichhore Movie Review: गलत टाइटल वाली बहुत सही फ़िल्म
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Movie Review Chhichhore: साल 2016 में निर्देशक नितेश तिवारी ने आमिर खान को लेकर फिल्म 'दंगल' बनाई थी। यह फिल्म आमिर खान की थी और इस फिल्म के लिए आमिर ने खूब प्रमोशन किए थे। अब 3 साल बाद नितेश 'छिछोरे' फिल्म लेकर आए हैं, इस फिल्म का कोई बज़ नहीं रहा, सुशांत सिंह राजपूत प्रमोशन से वैसे भी दूर भागते हैं और श्रद्धा कपूर 'साहो' के प्रमोशन में व्यस्त रहीं। सच कहूं तो मुझे भी इस फिल्म से ज्यादा उम्मीदें नहीं थीं और बिना मन के मैं ये फिल्म देखने पहुंची थी। हालांकि नितेश पर मुझे भरोसा फिर भी था। 'छिछोरे' शुरू होती है और फिल्म आपको अपने सफर में बहा ले जाती है।
'छिछोरे' कहानी की शुरुआत राघव नाम के टीन-एज लड़के से होती है जिसके तलाकशुदा माता-पिता (श्रद्धा कपूर-सुशांत सिंह राजपूत) इंजीनियरिंग कॉलेज के रैंक होल्डर स्टूडेंट रह चुके हैं और माता-पिता की वजह से उसपर इस बात का बहुत प्रेशर होता है कि वो भी सलेक्ट हो जाए। फिर कुछ ऐसा होता है कि खुद को लूज़र समझ रहे बेटे को अनिरुद्ध पाठक (सुशांत सिंह राजपूत) अपने कॉलेज के दिनों के किस्से सुनाता है। इन किस्सों को देखकर आपको अपने कॉलेज के दिन याद आ जाएंगे और अगर आप हॉस्टल में रहे हैं तो आपको नॉस्टैल्जिया जरूर फील होगा। अन्नी, सेक्सा, एसिड, मम्मी, डेरेक, बेवड़ा और माया के किस्से आपकी 90s की यादें ताजा कर देंगे। नितेश तिवारी ने इस बात का बहुत ध्यान रखा है कि सब कुछ 90s का ही लगे, और आप गलतियां नहीं ढूंढ़ पाएंगे।
फिल्म के पंच और कुछ सीन इतने फनी हैं कि आप तालियां पीटने पर मजबूर हो जाएंगे। खास बात ये है कि हॉस्टल लाइफ होने के बाद भी फिल्म में अश्लीलता नहीं है। निर्देशक ने ह्यूमर और अश्लीलता की लाइन को क्रॉस या मिक्स नहीं किया है। फिल्म का म्यूजिक सॉफ्ट है लेकिन कोई भी गाना ऐसा नहीं है जो आपको बाहर निकलने के बाद याद रहे। हां गाने आपको बीच-बीच में आकर डिस्टर्ब नहीं करते हैं।
एक्टिंग
सुशांत सिंह राजपूत ने अच्छा काम किया है, श्रद्धा कपूर के पास ज्यादा कुछ करने को था नहीं लेकिन जो भी उनके हिस्से आया उन्होंने अच्छा किया। फिल्म के साइड एक्टर्स ने कमाल का काम किया है। डेरेक के रोल में ताहिर भसीन, मम्मी के रोल में तुषार पांडे, सेक्सा के रोल में वरुण शर्मा, एसिड के रोल में नवीन पॉलिशेट्टी, बेवड़ा के रोल में सहर्ष कुमार शुक्ला और अपोजीशन सीनियर के रोल में प्रतीक बब्बर ने शानदार लगे हैं। हर किरदार का अलग फ्लेवर है और सभी ने अपना काम पूरे डेडिकेशन के साथ परदे पर उतारा है।
कमियां
नितेश ने इस फिल्म में उन सितारों को लिया है जो कॉलेज के भी दिख सके और अधेड़ का रोल भी कर पाएं, कलाकारों ने रोल में ढलने के लिए वेट भी बढ़ाया है लेकिन अधेड़ वाले लुक में कुछ एक्टर्स का मेकअप और लुक नकली-नकली सा लगता है। यह फिल्म आपको 'जो जीता वही सिकंदर', '3 इडियट्स' और 'स्टूडेंट्स ऑफ द ईयर' का कॉकटेल जैसी लगेगी। कहीं-कहीं ये फिल्म प्रेडिक्टिबल भी लगती है। इसके अलावा फिल्म का नाम 'छिछोरे' की जगह कुछ और रखा जाता तो बेहतर लगता। कई बार मन में आता है फिल्म का नाम 'लूजर्स' ज्यादा अच्छा होता।
'छिछोरे' आपको जिंदगी के बारे में अच्छा महसूस करने का लेसन देती है और बताती है कि जिंदगी में हार और जीत से ज्यादा जरूरी जिंदगी है। फिल्म हमें बताती है कि जीतेंगे तो क्या करेंगे इसका प्लान सबके पास होता है लेकिन हारने के बाद का प्लान किसी के पास नहीं होता है। तो सोचियो मत तुरंत टिकट बुक करिए और हां अपने टीनएज बच्चों को ये फिल्म जरूर दिखाइए खासकर उन्हें जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियां कर रहे हैं या कॉलेज के फर्स्ट ईयर में एडमिशन लेने जा रहे हैं। उनके लिए यह एक जरूरी फिल्म है। इंडिया टीवी इस फिल्म को दे रहा है 5 में से 4 स्टार।