'चैंपियन गिरता है लेकिन रुकता नहीं', सपनों की ऊंची उड़ान को पूरा करने में कामयाब है कार्तिक आर्यन की 'चंदू चैंपियन'
कार्तिक आर्यन की फिल्म 'चंदू चैंपियन' सच्चे जज्बे के साथ सपने देखने और संघर्ष करते हुए उस सपने को पूरा करने की असल और ऊंची उड़ान की कहानी दिखाती है। भारत के इतिहास में दर्ज नाम मुरलीकांत पेटकर की कहानी दिखाने में कार्तिक आर्यन कितना सफल रहे, चलिए जानते हैं...
'चंदू नहीं, चैंपियन है मैं' जब आप कार्तिक आर्यन को ये कहते सुनेंगे तो जाहिर तौर पर कहेंगे कि उनकी बातों में मुरलीकांत पेटकर का जज्बा दिख रहा है। कार्तिक आर्यन की आंखों में भी वही जोश देखने को मिल रहा है जो मुरलीकांत पेटकर कि आंखों में उस वक्त रहा होगा जब उन्होंने भारत के लिए पहला एकल पैरालंपिक गोल्ड मेडल अपने नाम किया। इस स्पोर्ट्स बायोपिक के माध्यम से कार्तिक और कबीर ने मुरलीकांत पेटकर के जीवन की एक दिल छू लेने वाली कहानी, उनके संघर्ष और उनके करियर में हासिल किए गए मील के पत्थर को बड़े पर्दे पर शानदार तरीके से पेश किया है। नाडियाडवाला ग्रैंडसन्स द्वारा निर्मित, यह फिल्म आपको 1970 के दशक में ले जाती है जब पेटकर पैरालंपिक चैंपियन बनने के लिए सभी बाधाओं को पीछे छोड़ते हुए अपनी मंजिल तक पहुंचे थे। 'चंदू चैंपियन' आज सिनेमाघरों में रिलीज़ हो रही है और उसे देखने से पहले एक नज़र डाले फिल्म के सटीक रिव्यु पर।
फिल्म की कहानी
कहानी शुरू होती है 1965 की जंग से जहां मुरलीकांत पेटकर को गोलियों से भून दिया जाता है। अगले ही सीन में कहानी 40 साल आगे बढ़ जाती है जहां एक बुजुर्ग व्यक्ति थाने में भारत के राष्ट्रपति के खिलाफ ठगी का मुकदमा दर्ज करने आता है। ये शख्स मुरलीकांत पेटकर है। कौन है मुरलीकांत, क्या करता है, क्यों मुकदमा दायर कर रहा रहा है? इन सवालों के साथ कहानी फ्लैशबैक में जाती है। युवा और तारों भरी आंखों वाले मुरलीकांत पेटकर उस पहलवान को देखकर तुरंत मंत्रमुग्ध हो जाते हैं, जिसने हाल ही में कुश्ती में ओलंपिक पदक जीता है। वो उसे अपनी प्रेणना मान लेते हैं। जब उनकी महत्वाकांक्षाओं और सपनों का मज़ाक उड़ाया जाता है तो वह क्रोधित होते हैं और अपने साथियों और गांववालों के लिए हंसी का पात्र बन जाते हैं। कहानी के इस हिस्से को स्थापित करने के लिए कई मनमोहक और मनोरंजक दृश्य और गाने भी हैं, जो मुरलीकांत के कठिन लम्हों के साथ भी आपके चेहरे पर मुस्कान लाते हैं।
इस पूरी पृष्ठभूमि में निर्देशक कबीर खान ने गानों का बेजोड़ इस्तेमाल किया है। हर मोड़ पर एक नया गाना है लेकिन वो कहानी का ही हिस्सा लगता है या कहें कि वो गाने खास तौर पर फिल्माए गए दृश्यों के लिए ही हैं। मुरलीकांत पेटकर का शुरुआती जीवन संघर्ष आपको 'भाग मिल्खा भाग' की याद दिलाएगा। अब कहानी की और आगे बढ़ते हैं, जहां परिवार के बीच भी मुरलीकांत अकेला है, लेकिन यही अकेला चना ही भाड़ फोड़ेगा और भारत को गौरवशाली पल देता फिल्म में नज़र आएगा। फिल्म का नाम भी तब उजागर होता है जब पहली बार मुरलीकांत पेटकर को अखाड़े में जीत हासिल होती है। कहानी आगे बढ़ती है जहां बच्चा बड़ा होकर फ़ौज में भर्ती होता, उसकी आंखों में ओलंपिक गोल्ड जीतने का सपना होता है, मंज़िल के करीब आकर वो चूकता है। नौ गोलियों से भून उठने के बाद भी वो आगे बढ़ता है, आत्महत्या की कोशिश के बाद भी वो बच जाता है, अपने एकलौते दोस्त को खो देने के बाद भी वो खुद को संभालता है और जिस्म में एक गोली के साथ वो पैरालंपिक में भारत का पहला गोल्ड मेडल हासिल करता है। सपना पूरा होने के बाद भी वो नहीं रुकता, वो बार बार गिरता है, खड़ा होता है और चैंपियन कहलाता है। कुछ ऐसी ही है 'चंदू चैंपियन' मुरलीकांत पेटकर की कहानी जिसे बखूबी दिखाने में कार्तिक आर्यन सफल रहे हैं।
कैसी है एक्टिंग
एक बार फिर कार्तिक आर्यन जटिल किरदार को निभाने में अव्वल आए हैं। मुरलीकांत पेटकर के किरदार को निभाते हुए उनकी उत्सुकता और ईमानदारी साफ झलक रही है। कार्तिक आर्यन को संजीदा रोल में सोचना थोड़ा मुश्किल लगता रहा है, लेकिन अब वो इस दीवार को लांघ चुके हैं। पिछली कई फिल्मों की तुलना में इस बार उनकी एक्टिंग में बारीकी आई है। उन्होंने हर इमोशन को सही पकड़ा है। कार्तिक का किरदार भोलेपन से शुरू होता है जो गहराई की खोज तक जाता है। एक पैरा एथलीट की भाव भंगिमा और चाल-ढाल को भी वो पर्दे पर अच्छे से प्रदर्शित कर रहे हैं। कुल मिलकर उनका फिल्म सिलेक्शन बिलकुल सही रहा है। फिल्म में कोई लीड हीरोइन नहीं है और उसकी कमी जरा भी नहीं खलती।
हमेशा आकर्षक रहने वाले विजय राज, जिन्होंने सूरमा और शाबाश मिठू जैसे किरदार निभाकर लीड हीरो से ज्यादा लाइमलाइट चुराई है वो इस बार भी ऐसा करने में पूरी तरह कामयाब हैं। अपने डायलॉग्स से वो किसी की भी रगों में जोश भर सकते हैं। टाइगर अली के किरदार में वो एक बार फिर दिल जीत रहे हैं। विजय राज गंभीर रहते हुए भी आपको हसाएंगे भी और इमोशनल भी करेंगे। वैसे भी संजीदा रहते हुए कमाल की कॉमिक टाइमिंग दिखाना उनका पेटेंट स्टाइल है। यह फिल्म एक पुलिस स्टेशन में अति-उत्साही श्रेयस तलपड़े और ब्रिजेंद्र काला के सामने फ्लैशबैक में जाती है। दोनों ही किरदारों का रोल थोड़ा छोटा है लेकिन इनकी एक्टिंग अव्वल दर्ज़े की है। मराठी स्टाइल वाले पुलिस वाले को श्रेयस तलपड़े मक्खन की तरह पर्दे पर उतारते दिख रहे हैं। अब आते है राजपाल यादव पर जिन्हें कॉमेडी किंग कहना हरगिज़ गलत नहीं होगा। कॉमेडी का तड़का उन्होंने एकदम सही और सटीक जगह मारा है। टोपेज़ का किरदार छोटा जरूर है, लेकिन वो आपके साथ सिनेमाघरों से बाहर आएगा और ज़ेहन में रहेगा। मुरलीकांत पेटकर को उसकी मंज़िल तक पहुंचाने वाले करनैल सिंह को तो भूल ही नहीं सकते। भुवन अरोड़ा एक सच्चे साथी के रोल में दिल जीत लेते हैं, लेकिन उनकी मौत आपको उतना ही अखरेगी जितना मुरलीकांत के दिल को चीर गई। भाई के रोल में नज़र आए अनिरुद्ध दवे बेमिसाल है। छोटे मुरलीकांत पेटकर के किरदार में हिमांशु जयकर जुनूनी हैं।
डायरेक्शन और लेखन
फिल्म की शुरआत में ही मिल्खा सिंह का जिक्र है और यह महान एथलीट की बायोपिक 'भाग मिल्खा भाग' की हलकी-फुलकी झलक भी पेश करती है। गाना 'सत्यानास', 'हवन करेंगे' की पूरी याद दिलाता है। दो घंटे तीस मिनट की ये फिल्म शानदार निर्देशन के चलते ही बांधे रखती है। निर्देशन में इस बार कबीर खान को फुल मार्क्स मिल रहे हैं। 'बजरंगी भाईजान' और 'एक था टाइगर' जैसी कमर्सियल फिल्में बनाने वाले निर्देशक ने अपनी पहली बायोपिक इनिंग में ही शतक जड़ दिया है। फिल्म का स्क्रीनप्ले एक असल जिंदगी को कहानी के रूप में चरितार्थ कर रहा है। हर किरदार को परफेक्ट स्क्रीन टाइम दिया गया है। कोई भी सीन बोझिल नहीं करता, हर पल आपकी निगाहें इस पर टिकी रहेंगी और आप सोचेंगे कि आगे क्या होगा। फिल्म में रोमांच है और एक पल के लिए भी कुर्सी छोड़ने का मन नहीं होगा। इस बार कबीर खान ने जाहिर कर दिया कि उन्हें टाइपकास्ट नहीं किया जा सकता।
फिल्म के प्रोड्यूजर साजिद नाडियडवाला को भी इसके कारगर होने का श्रेय जाता है। एक बार फिर उन्होंने कॉमर्शियल सिनेमा की होड़ के बीच मीनिंगफुल सिनेमा को बढ़ावा दिया है। पैरालिंपिक गोल्ड मेडलिस्ट मुरलीकांत पेटकर की अनसुनी कहनी को दिखाने के लिए साजिद ने बेजोड़ टीम का चयन किया है।
कैमरावर्क और एडिटिंग
कैमरावर्क और एडिटिंग पर अच्छा काम किया गया है।सिनेमेटोग्राफी और एडिटिंग फिल्म देखने के मज़े को दोगुना करेगी। एक सिंगल टेक सीन में एक बच्चा बड़ा होकर वयस्क (और फिल्म का हीरो) बन जाता है, यह एक सिनेमाई शॉट है जिसे हाल के दिनों में नहीं देखा गया है। इसके अलावा भी फिल्म में एक ऐसा शॉट दिखाया गया जहां शुरुआत ठीक सूरज के सामने से विमान गुजरने से होती है और अंत उस सूरज के जापान के झंडे के गोले बनने पर ख़त्म होता है। कई लॉन्ग शॉट और सिनेमेटिक कट शॉट्स फिल्म को डेप्थ दे रहे हैं।
फिल्म के गाने
'चंदू चैंपियन' के गानों में नयापन है, जो जीत, इमोशंस और उत्साह का मिश्रण पेश करते हैं। 'सत्यानाश', 'तू है चैंपियन' और 'सरफिरा' तीनों ही गानों में अलग-अलग इमोशंस हैं। म्यूजिक और लिरिक्स का चयन फिल्म के फील के साथ जाता है।
आखिर कैसी है फिल्म
'चंदू चैंपियन' एक मस्ट वॉच फिल्म है। बायोपिक होते हुए भी ये मनोरंजन का फुल डोज़ है। कार्तिक आर्यन कभी न देखे गए अंदाज़ में हैं, ऐसे में सिनेमाघरों में इस फिल्म को देखने का अलग ही मज़ा है।