BMCM Review: बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभानल्लाह! दोगुने रोमांच, तीन गुने एक्शन के साथ आए हैं अक्षय कुमार-टाइगर श्रॉफ
'बड़े मियां छोटे मियां' सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। हॉलीवुड स्टाइल में धमाका करने आई अक्षय कुमार और टाइगर श्रॉफ की जोड़ी बड़े पर्दे पर कमाल कर पाई या नहीं, इसकी पूरी जानकारी आपको इस समीक्षा में मिलेगी।
'बड़े मियां छोटे मियां' आज रिलीज हो गई है और इसी के साथ फैंस की बेकरारी भी खत्म हो गई है। अक्षय कुमार और टाइगर श्रॉफ की फिल्म शुरू होती है एक आतंकी हमले से, जिसके बाद भारत पर सबसे बड़ा खतरा मंडराने लगता है। भारत को दुश्मन की खतरनाक साजिश से बचाने के लिए दो कोर्ट मार्शल सैनिकों पर आर्मी फिर भरोसा जताने को तैयार होती है। यहीं से कहानी आगे बढ़ती है, बहुत सारे सस्पेंस, एक्शन, रोमांच और सॉलिड अंदाज के साथ। 'बड़े मियां छोटे मियां' की एंट्री के साथ कहानी किस मोड़ तक जाती है ये बताने के साथ ही हम आपको बताएंगे कि फिल्म के एक 'खोटे सिक्के' वाले सीन की तरह ही ये जोड़ी भी खोटा सिक्का साबित हुई या नहीं। ऐसे में शुरुआत करते हैं कहानी के साथ-
कहानी
'बड़े मियां छोटे मियां' की शुरुआत में ही एक आतंकी हमला होता है, जो देश के मंत्रियों से लेकर आर्मी के वरिष्ठ अधिकारियों को हिलाकर रख देता है। इसे अंजाम देने वाला नकाबपोश (पृथ्वीराज) एक वीडियो मैसेज के जरिये आगे होने वाली बड़ी आतंकी गतिविधियों की चेतावनी देता है। कई सैनिकों की शहादत के बाद कर्नल आजाद के किरदार में नजर आ रहे रॉनित रॉय इस मामले से निपटने का प्लान बनाते हैं। इसी दौरान मानुषी छिल्लर (कैप्टन मीशा) की एंट्री होती है, जो कोर्ट मार्शल सैनिक कैप्टन राजीव (टाइगर श्रॉफ) और कैप्टन फिरोज (अक्षय कुमार) को इस मिशन पर लाने के लिए तैयार करती हैं। कहानी आगे बढ़ती और लंदन के ऑक्सफॉर्ड पहुंचती है, जहां चुलबुले अवतार में अलाया एफ (डॉ. परमिंदर) का सामना टाइगर श्रॉफ और मानुषी से होता है और पता चलता है कि वो भी इस मिशन का हिस्सा हैं और एआई और क्लोनिंग जैसे मामलों पर टाइगर और अक्षय की मदद करेंगी।
इस बीच कहानी कई बार फ्लैशबैक में जाती है और नकाबपोश दुश्मन कबीर से 'बड़े मियां छोटे मियां' यानी टाइगर श्रॉफ और अक्षय कुमार के पुराने रिश्ते को स्थापित करती है। इस फ्लैशबैक जर्नी में सामने आता है कि कैसे नकाबपोश दुश्मन कबीर दोस्त से दुश्मन बना। दरअसल वो एआई और क्लोनिंक टेकनीक पर काम करता एक वैज्ञानिक होता है, जो इस तकनीक से भारत के लिए फौज तैयार करना चाहता है, जो पूरी तरह से इशारों पर काम करेंगे, लेकिन आर्मी उसकी इस योजना को नहीं स्वीकार करती और यहीं से उसमें बदले की भावना जाग जाती है। इसी फ्लैशबैक के सफर के बीच ही सोनाक्षी सिन्हा का किरदार स्थापित करने की कोशिश की गई है, जो काफी छोटा है, लेकिन अहम है। वो भी भारतीय सेना की वैज्ञानिक हैं, जो देश की रक्षा के लिए करण कवच तैयार करती हैं। इस सबके बीच कहानी कई घुमावदार टर्न लेती है और कमाल के एक्शन के साथ दर्शकों को बांधे रखने का प्रयास करती है। कहानी में इंटरवल तक भरपूर्ण सस्पेंस है, कहानी परत दर परत ही खुल रही होती है, लेकिन दूसरे भाग में नकाबपोश का मकसद एकदम से खुलता है।
एक्टिंग
शुरुआत करते हैं एक्शन के लिए पहचाने जाने वाले अक्षय कुमार से- अक्षय हमेशा की तरह ही एक्शन में माहिर नजर आए हैं। उनके एक्शन सीन्स में कोई कमी नहीं है। बाइक उड़ाने से लेकर दो घोड़ों को एक साथ दौड़ाने तक वो हर एक्शन सीन में दमदार हैं। 56 की उम्र में अक्षय कुमार किसी न्यूकमर की तरह ही एक्शन सीन्स में जान फूंकते नजर आ रहे हैं। उनकी कॉमिक टाइमिंग की बात की जाए तो वो और बेहतर हो सकती थी, क्योंकि अक्षय का वो फोर्टे रहा है। अक्षय को इससे बेहतर कॉमेडी करते कई फिल्मों में देखा जा चुका है, ऐसे में फिल्म में दिखाए गए जोक्स काफी हल्के पड़ते हैं। वैसे कई सीन्स में वो अपने पुराने वाले एलिमेंट में ही दिखे हैं। टाइगर श्रॉफ, कैप्टन राजीव के किरदार में निखर कर सामने आए हैं। एक्शन उन पर इस बार भी सूट कर रहा है। उनकी सॉलिड बॉडी का भी एक्शन सीन्स में अच्छा प्रदर्शन दिखा है। उनके फेशियल एक्शप्रेशन्स में भी पहले की तुलना में काफी ज्यादा सुधार है। कहा जा सकता है कि इस फिल्म में उनकी अब तक की सबसे बेहतर एक्टिंग लोगों को देखने को मिलेगी। अक्षय और टाइगर के ज्यादातर सीन्स साथ में हैं, ऐसे में दोनों के बीच का तालमेल भी लाजवाब है और 'दोनों बड़े मियां छोटे मियां' वाले टाइटल में सटीक फिट हुए हैं।
अब आते हैं फिल्म में सब पर भारी पड़ने वाले पृथ्वीराज सुकुमारन पर, जो अपनी भारी भरकम आवाज से असल में प्रलय ला रहे हैं। उनकी आवाज का मॉड्युलेशन, उनके एक्सप्रेशन्स के साथ बिल्कुल सही बैठ रहा है। पृथ्वीराज सुकुमारन की चाल-ढाल भी उन्होंने परफेक्ट विलेन बना रही है। एक्टर की दमदार एक्टिंग निखर के सामने आई है। उन्हें देखकर लग रहा है कि उन्होंने कबीर के किरदार को पूरी तरह अपना बना लिया और उसमें ढलने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
फिल्म में तीन खूबसूरत हसीनाएं भी हैं, लेकिन तीनों का किरदार ही प्रभावी नहीं रहा है। मानुषी छिल्लर, एक्शन्स में थोड़ी स्विफ्ट जरूर दिखीं, लेकिन उनके एक्सप्रेशन्स निल बटे सन्नाटा रहे हैं। उनके चहरे पर न तो चमक थी, न डायलॉग डिलिवरी में वो दमखम दिखा, जो एक आर्मी ऑफिसर में होना चाहिए। अलाया एफ, एक नटखट और इंटेलिजेंट के कॉम्बिनेशन वाली क्यूट चश्मिश लड़की के किरदार में अच्छी लगीं, लेकिन उन्हें काफी कम स्क्रीन टाइम मिला है। अगर मानुषी की जगह उन्हें थोड़ा ज्यादा स्क्रीन टाइम मिलता तो वो बेहतर कर सकती थीं। बात करतें हैं सोनाक्षी सिन्हा की, जिनका रोल फिर से न के बराबर ही था। वो फिल्म में एक साइड एलिमेंट की तरह ही आती हैं, जो फिलर से ज्यादा कहानी में कुछ और स्थापित नहीं कर पाती हैं। कई बार आपको लगेगा कि उनका होना न होना बराबर ही रहा है।
निर्देशन, सिनेमैटोग्राफी और एडिटिंग
निर्देशन में भले कहीं-कहीं कमी रही है, लेकिन सिनेमैटोग्राफी-एडिटिंग की तारीफ लाजमी है। फिल्म में कमाल के एक्शन को गजब की सिनेमैटोग्राफी के सहारे ही दिखाया गया है और उसमें और चार-चांद लगाती है एडिटिंग। निर्देशक अली अब्बास जफर एक्शन फिल्मों के लिए जाने जाते हैं। इस फिल्म में भी उन्होंने ताबड़तोड़ एक्शन को दिखाने का सफल प्रयास किया है। निर्देशक ने इस फिल्म के एक्शन से लार्जर देन लाइफ वाला अनुभव देने का वादा किया था, जो असल में देखने को भी मिल रही है। बाइक से लेकर हेलीकॉप्ट और वॉर जोन प्लेन्स के साथ भी एक्शन सीन्स दिखाए गए हैं जो पूरा विदेशी इंपैक्ट क्रिएट कर रहे हैं, लेकिन एक कमी निर्देशक की ओर से रह गई है वो कहानी को और बांध सकते थे। फिल्म में कुछ जगहों पर कहानी बिखरती है, जिसे संभालने और ट्रैक पर लाने में काफी वक्त लग रहा है।
डायलॉग्स
फिल्म के डायलॉग्स लोगों के दिल-दिमाग पर असर डालने का काम करते हैं और वो दर्शकों के साथ लंबे वक्त तक रहते हैं। सिनेमाहॉल से निकलने के बाद कई बार वो लोगों की जुबां पर चढ़ जाते हैं, लेकिन इस फिल्म में एक-दो ही ऐसी डायलॉग हैं, जिनका आप पर कोई असर पड़ेगा। डायलॉग में बहुत दोहराव नजर आया है। अक्षय कुमार-टाइगर श्रॉफ कई बार एक ही डायलॉग को अलग-अलग सीन में प्रयोग करते दिखे हैं। 'शोऑफ' और 'हमारा एगो हमारे टैलेंट से बड़ा है' कई बार दोहराए गए हैं। ऐसे में कमजोर लेखन दिखता है।
म्यूजिक और कोरियोग्राफी
फिल्म में म्यूजिक और कोरियोग्राफी का भी अहम रोल होता है, जहां कहानी कमजोर पड़ती है, वहां ये ढाल की तरह काम आते हैं। फिल्म में कई अच्छे डांस नंबर्स हैं, जिनमें कमाल की कोरियोग्राफी देखने को मिलती है। फिल्म में एक रोमांटिक गाना भी है जो क्रिडिट लाइन्स के साथ आता है। गाने आपको भले ही उतने मजेदार ऐसे सुनने में न लगें, लेकिन फिल्म में उन्हें सीन के बीच सिचुएशन के अनुसार ही डाला गया है, इसलिए उबाऊ नहीं लगते। कोरियोग्राफी में अच्छे डांस मूव्ज देखने को मिले हैं। अक्षय कुमार, टाइगर श्रॉफ से मैच करने की कोशिश में पूरी तरह लगे दिख रहे हैं।
...आखिर कैसी है फिल्म
अगर आप 'मिशन इंपॉसिबल' और 'फास्ट एंड फ्यूरियस' जैसी पलक न झपकने देने वाली एक्शन फिल्में देखना पसंद करते हैं तो ये फिल्म भी आपको पसंद आएगी और छोटी-मोटी खामियां नजरअंदाज कर देंगे। मुख्य तीन कलाकारों का काम शानदार है। हीरोइनें काफी कमजोर दिखीं, लेकिन उनके किरदार इतने अहम नहीं है कि आपके फिल्मी अनुभव के खराब करें। ऐसे में फिल्म एक बार जरूर देखी जा सकती है।