फीका पड़ा अजय देवगन और तब्बू का ओल्ड स्कूल रोमांस, जानें 'औरों में कहां दम था' की कहानी में कितना दम
अजय देवगन और तब्बू की फिल्म 'औरों में कहां दम था' आज रिलीज हो गई है। इस फिल्म में 90 के दशक के प्यार को दिखाने की कोशिश की गई है। ये प्रयास कितना सफल रहा, कहानी में कितना दम है और किरदारों को पेश करने वाले एक्टर्स में कितना जुनून है, ये जानने के लिए पढ़ें सटीक रिव्यू।
'औरों में कहां दम था', फिल्म का नाम सुनते ही लगता है कि इसमें खूब दमखम दिखाया जाएगा, लेकिन मामला इससे उलट है। एक रोमांटिक इमोशनल ड्रामा के तौर पर सामने आई ये फिल्म काफी ओल्ड स्कूल है। अजय देवगन और तब्बू की सुपरहिट जोड़ी से लोगों को काफी उम्मीदें थीं, ऊपर से नीरज पांडेय जैसे कमाल के निर्देशक का साथ सोने पर सुहागा जैसा लग रहा था, पर फिल्म की कहानी काफी प्रेडिक्टेबल और सपाट है। फिल्म 2 अगस्त यानी आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है, ऐसे में आपको बताते हैं कि इस फिल्म को देखना आपके लिए कितना रोमांचकारी अनुभव साबित हो सकता है। इस रिव्यू में आपको कहानी से लेकर अभिनय और निर्देशन की बारीकियों पर विस्तार से जानकारी मिलने वाली है।
कहानी
फिल्म शुरू होती है कृष्णा (अजय देवगन) नाम के शख्स के जेल में बीत रहे दिनों से, ये शख्स बार-बार फ्लैशबैक में जाता है और अपने पुराने बीते दिनों के बारे में सोचता है। कहानी आगे बढ़ती है तो कृष्णा का जुर्म सामने आता है और इसी के साथ सामने आती है उसकी 22 साल पुरानी प्रेम कहानी, जहां कृष्णा गांव से मुंबई आता है और उसे वसुधा (तब्बू) नाम की लड़की से बेइंतहा प्यार हो जाता है और वसुधा का प्यार भी उतना ही सच्चा होता है। अब आप सोचेंगे प्यार है तो धोखा और बेवफाई भी होगी लेकिन ऐसा नहीं है, सीधी सड़क की तरह फिल्म एक ही दिशा में आगे बढ़ती है। एक यंग कपल की नौकरी से लेकर शादी तक की प्लानिंग दिखाई जाती है। (यंग कृष्णा और वसुधा के रोल में शांतनु महेश्वरी और सई मांजरेकर हैं) इसी बीच एक हादसा होता है जो तीन बार फ्लैशबैक में दिखाया जा रहा है, इसमें न कोई नया एंगल है और न कोई ट्विस्ट आएगा। ये हादसा कृष्णा को जेल पहुंचा देगा और कृष्णा को किए वादे के चलते असहज स्थिति में वसुधा किसी और से शादी कर लेंगी, जिसका नाम अभिजीत (जिमी शेरगिल) होगा। कहानी यहां तक बिना किसी सस्पेंस के पहुंचेगी और आगे भी कोई खास सस्पेंस नहीं आएगा। अभिजीत भी वसुधा से सच्चा प्यार करेगा, उसकी परिस्थितियों को समझेगा, मन में इनसिक्योरिटी लिए हुए भी वो कृष्णा को जेल से बाहर निकलवाएगा। कहानी के एंड में हादसे से जुड़ा एक सच सामने आएगा जिसे हो सकता है आप पहले ही गेस कर लें। इसके आगे नई शुरुआत करते हुए कृष्णा देश छोड़ देगा और वसुधा अपने पति अभिजीत के साथ जिंदगी गुजारेगी।
निर्देशन और लेखन
इस फिल्म का निर्देशन और लेखन दोनों ही नीरज पांडेय ने किया है। नीरज सधी और बंधी तेज रफ़्तार फिल्मों के लिए जाने जाते हैं, जिन्हें आप पलक बिना झपकाए एक टक देख सकते हैं, लेकिन इस बार तो खेला हो गया है। एक निर्देशक और लेखक के रूप में नीरज पूरी तरह चूक गए हैं। फिल्म की कहानी शुरुआत से ही ढीली और उबाऊ है। ऐसे में दर्शकों का इंटरेस्ट लूज करना लाज़मी है। खिंची और घिसी-पिटी कहानी दिखाई गई है जिसे आप पहले ही कई बार बेहतर तरीके से बड़े पर्दे पर देख चुके हैं। नीरज पांडेय ने कहा था कि इस कहानी को वो 11 साल से सहेज रखे थे, उनकी इस बात ने और उम्मीदें बांध दी थी, लेकिन बिना किसी रोमांच वाली ये अधूरी लव स्टोरी काफी निराश करेगी। इस फिल्म में न सिर चढ़कर बोलने वाली आशिक़ी है और न तड़कता भड़कता रोमांस। फिल्म की कहानी ही इसकी पेशकश को सबसे कमजोर बना रही है।
अभिनय
एक्टिंग की बात करें तो अजय देवगन एक दुखियारे और सच्चे प्रेमी के तौर पर दिखाए गए हैं। अजय दमदार एक्टर हैं, लेकिन इस फिल्म में उनके लिए कुछ नया नहीं था, न एक्शन और न रोमांस। संजीदा दिखने वाले शख्स के तौर पर उनके सीन्स बार-बार फ्लैशबैक में जाते हैं, पुरानी यादों में खोया उनका किरदार काफी कमज़ोर लगता है। अच्छे अभिनय के दम पर भी वो इस किरदार को मजबूती से पेश नहीं कर पाए हैं। कुल मिलकर एक मंझे हुए एक्टर के लिए ये उनके करियर की सबसे कमज़ोर परफॉरमेंस में से एक है। अजय देवगन के साथ ही तब्बू भी पूरी फिल्म में दो जोड़ी कपड़ों में नजर आई हैं। बात करें तब्बू की एक्टिंग की तो वो एक वर्सटाइल और अनुभवी एक्ट्रेस हैं, लेकिन उनके लिए भी इस फिल्म में करने को कुछ खास नहीं था। तकलीफ और दर्द का इमोशन दिखाने में वो भले ही कामयाब रहीं, लेकिन उनका किरदार प्रभावी नहीं था। जिमी शेरगिल का रोल काफी छोटा है। इंटरवल के बाद उनकी एंट्री होती है और लोगों को लगता है कि वो कहानी में रोमांच भर देंगे, लेकिन ऐसा नहीं होता। जिमी शेरगिल की दमदार आवाज, उनके प्रभावी चाल-ढाल को फिल्म सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया गया। काश उनका किरदार थोड़ा और लंबा होता तो कहानी और बेहतर तरीके से इस्टैब्लिश की जा सकती थी। इस लव ट्रायंगल में वो साइड रोल वाले एक्टर बनकर ही रह गए हैं।
युवा प्रेमियों के तौर पर नजर आ रहे शांतनु महेश्वरी और सई मांजरेकर को फिल्म में कुछ अच्छे सीन मिले हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि फिल्म की कहानी को ये दोनों ही चला रहे हैं। शांतनु महेश्वरी एक सुलझे-शरीफ लड़के के रोल में जच रहे हैं, लेकिन हलके-फुल्के एक्शन सीन भी उन पर नहीं फब रहे। चॉकलेटी बॉय वाली उनकी इमेज यहां भी बरकरार है। सई मांजरेकर की एक्टिंग की तारीफ बनती है। वो एक सरल लड़की के लुक में बेहद मासूम और प्यारी लगी हैं। मराठी होने का उन्हें पूरा फ़ायदा मिला है क्योंकि फिल्म में भी उनका किरदार मराठी लड़की का ही है। शांतनु महेश्वरी और सई मांजरेकर की केमिस्ट्री भी अच्छी है बस कमी है तो बार-बार दोहराए जा रहे उनके सीन्स। कहानी में एक ही सबसे जबरदस्त किरदार है जिसका नाम जिग्नेश है। इस किरदार को जय उपाध्याय ने निभाया है। अजय देवगन के दोस्त के रोल में वो लोगों को इस उबाऊ फिल्म के बीच भी हँसाने में कामयाब रहे।
गाने और सिनेमेटोग्राफी
फिल्म के गाने और सिनेमेटोग्राफी में ही थोड़ा दम दिखा है। 'किसी रोज...' और 'अये दिल जरा...' दोनों ही गाने कानों को भाएंगे। सिनेमेटोग्राफी और कैमरा हैंडलिंग की बात करें तो ये शानदार है। समुद्र को दिखाने वाले लॉन्ग शॉट्स प्रभावी हैं। कहा जा सकता है कि गाने और सिनेमेटोग्राफी ही फिल्म को थोड़ा बहुत बांध रहे हैं।
आखिर कैसी है फिल्म
बेशर्त मोहब्बत और त्याग की कहानी बेहद फीकी है, यानी 'औरों में कहां दम था' की कहानी में जरा भी दम नहीं दिखा। एक बार भी इस फिल्म को देख पाना अच्छा अनुभव नहीं देगा। हर फिल्म में कुछ नया खोजने वाले सिनेमा लवर्स के लिए ये फिल्म काफी घिसी-पिटी है। ऐसे में इसे हम 2 स्टार ही दे रहे हैं।