Hindi News Entertainment Movie Review Jhund Movie Review: खेल-खेल में जिंदगी की असल तस्वीर दिखाती है 'झुंड', जानें कैसी है फिल्म

Jhund Movie Review: खेल-खेल में जिंदगी की असल तस्वीर दिखाती है 'झुंड', जानें कैसी है फिल्म

यह फिल्म रिएलिटी के इतना करीब है कि आपको इसके जरिए समाज की सच्चाई भी पता लगेगी।

shweta bajpai 02 Mar 2022, 13:04:24 IST
मूवी रिव्यू:: Jhund Movie Review: खेल-खेल में जिंदगी की असल तस्वीर दिखाती है 'झुंड', जानें कैसी है फिल्म
Critics Rating: 3.5 / 5
पर्दे पर: March 4, 2022
कलाकार: अमिताभ बच्चन
डायरेक्टर: नागराज मंजुला
शैली: biopic
संगीत: साकेत कानेतकर

फिल्म 'सैराट' से चर्चा में आए नागराज पोपटराव मंजुले की तरफ से डायरेक्ट की गई मेगास्टार अमिताभ बच्चन स्टारर फिल्म 'झुंड' शुक्रवार को सिनेमाघरों में दस्तक देने वाली है। फैंस को फिल्म का बेसब्री से इंतजार है। अगर आप भी फिल्म देकने का मन बना रहे हैं तो पहले यहां पढ़ लें फिल्म रिव्यू।

फिल्म का प्लॉट-
झुंड' एक स्पोर्ट्स फिल्म है जो आपको जीवन के खेल के बारे में बहुत कुछ बताती है। यह फिल्म रिएलिटी के इतनी करीब है कि आपको इसके जरिए समाज की एक सच्चाई भी पता लगेगी। फिल्म रियल लाइफ किरदार विजय बर्से पर आधारित है, जिन्होंने झुग्गी झोपड़ियों के बच्चों की भलाई के लिए एक फुटबॉल एसोसिएशन की स्थापना की है। फिल्म की शुरुआत नागपुर की झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के संघर्ष से होती है, जिनकी जिंदगी आपराधिक गतिविधियों के इर्द-गिर्द घूमती है। रियल लाइफ की तरह इन बच्चों का कोई लक्ष्य नहीं है। ये सारे ही नशेबाज हैं, गांजा पीते हैं, दारू-जुआ तो रोज का काम है, खाली टाइम में चैन खींचना, मोबाइल छीनकर भाग जाना, चलती मालगाड़ी में चढ़कर कोयला आदि सामान निकाल लेना इनकी दिनचर्या में शामिल है। ऐसे में एक दिन इन बच्चों की जिंदगी में स्पोर्ट्स कोच विजय बोर्डे (अमिताभ बच्चन) की एंट्री होती है। विजय बोर्डे अपनी लग्न, विश्वास के जरिए इन झुग्गी झोपड़ी वाले बच्चों की जिंदगी बदल देते हैं। वह न उन्हें एक अच्छा इंसान बनाते है बल्कि उन्हें एक अच्छा फुटबॉल प्लेयर भी बनाते हैं। 

एक्टिंग-
फिल्म के मुख्य रोल यानी विजय बरसे के किरदार में अमिताभ बच्चन हैं जिन्होंने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है। फिल्म को देखकर लगता कि उन्होंने इस किरदार को जिया है। फिल्म के कई सीन आपको शाहरुख खान की फिल्म चक दे इंडिया की याद दिला देंगे। वहीं फिल्म के क्लाइमैक्स में बिग बी का लंबा मोनोलॉग आपका दिल जीत लेगा। बच्चों की परफॉर्मेंस भी आपको अपनी ओर खींचेगी। सभी की मेहनत आपको साफ पता चलेगी।

डायरेक्शन-
फिल्म के डारेक्शन की बात की जाए तो नागराज मंजुला ने अपनी मराठी फिल्मों की तरह ही इस फिल्म में भी अपना ट्रेडमार्क टच दिया हुआ है। नागराज मंजुला ने कहानी को ऊन की तरह एक फंदे से दूसरे फंदे में बुना है कि आप फिल्म बीच में नहीं छोड़ सकते हैं। फिल्म में बस्ती के युवाओं की आंकाक्षाएं, दिक्कतें, सोच, शौक, मजबूरियां, सपने और परिस्थितियां सबको बखूबी रखा गया है। 

म्यूजिक-
आया ये झुंड है, लफड़ा झाला ये दोनों गाने आपके जहन में फिल्म देखने के बाद भी रह सकते हैं। अजय अतुल ने अच्छी कोशिश की है। बाकी गानों को एवरेज माना जा सकता है।

कमियां- 
वैसे तो फिल्म में कोई ऐसी कमी नहीं है जो आपको बाद में अखरे, लेकिन हां फिल्म की लंबाई आपको निराश कर सकती है। फिल्म के कुछ सीन्स को बेवजह खींचा गया है। साथ ही क्लाइमेक्स पर और काम किया जा सकता था। बाकी फिल्म के गानें भी कुछ खास नहीं हैं।

देखे या नहीं-
फिल्म की कहानी, विजुअल ट्रीट और स्टार कास्ट की बेहतरीन परफॉर्मेंस आपको बांधे रखती है।  फिल्म का डारेक्शन भी शानदार है। फिल्म एक बार देखी जा सकती है।