हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में आज एक से बढ़कर एक फिल्में में बन रही हैं। इन फिल्मों के लिए पहले से ही बजट की प्लानिंग की जा रही है, जिसके लिए फाइनेंसर और प्रोड्यूसर्स जुटाए जाते हैं। अब कई एक्टर्स भी ऐसे हैं जो खुद अपनी फिल्मों में पैसे लगाते हैं, लेकिन एक दौर ऐसा भी था कि कलाकार, लेखक, डायरेक्टर तो फिल्म बनाने के लिए मिल जाते थे, लेकिन कोई प्रोड्यूसर तैयार नहीं होता था। फिल्मों में लोग बहुत सोच समझकर ही पैसे लगाते थे। नफा-नुकसान किसी को रिची-रिच तो किसी रोड पर ला देता था। कई प्रोड्यूसर सिर्फ बिग बजट और बड़े एक्टर्स की फिल्मों में ही पैसे लगाते थे। कुछ सालों पहले भी एक ऐसी फिल्म बनीं जिसके लिए कोई पैसा लगाने को तैयार नहीं था, लेकिन जब ये फिल्म बनकर तैयार हुई तो ये कल्ट क्लासिक बन गई। इस फिल्म को क्राउड फंडिंग के जरिए बनाया गया था।
फिल्म के लिए की गई क्राउड फंडिंग
साल 1976 में रिलीज हुई 'मंथन' के लिए क्राउड फंडिंग की गई थी। भारत में इस फिल्म ने इतिहास रच दिया था और ये क्राउड फंडिंग से बनी पहली फिल्म बन गई थी। हाल में ही 77वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में इसकी स्क्रीनिंग हुई। इस फिल्म में दिवंगत अभिनेत्री स्मिता पाटिल लीड रोल में थीं। उनके साथ गिरीश कर्नाड, कुलभूषण खरबंदा, नसीरुद्दीन शाह, मोहन अगाशे, अनंत नाग और अमरीश पुरी भी मुख्य रोल में थे। इसे श्याम बेनेगल ने डायरेक्ट किया। हर किरदार सटीक बैठा था, लेकिन इस फिल्म को बनाने के लिए श्याम बेनेगल कई पापड़ बेले थे।
Image Source : Xस्मिता पाटिल और नसीरुद्दीन शाह। (फिल्म का सीन)
इस तरह बन पाई फिल्म
नसीरुद्दीन शाह उस वक्त नए-नए थे। उन्होंने आर्ट सिनेमा में अपना पैर जमाना शुरू ही किया था। वहीं गिरीश कर्नाड टॉप आर्ट एक्टर रहे। फिल्म में अमरीश पुरी का दमदार निगेटिव रोल रहा। 134 मिनट की इस फिल्म में डेरी कूपरेटिव मूवमेंट को दिखाया गया। फिल्म की कहानी वर्गीस कुरियन से ली गई। उन्हें दूध उत्पादन क्रांति के लिए जाना जाता है। फिल्म में गिरिश ने 'मिल्कमैन ऑफ इंडिया' कहे जाने वाले वर्गीस कुरियन किरदार निभाया था। स्मिता पाटिल गांव की महिलाओं को मुख्य तौर पर दिखाती नजर आईं। इस फिल्म को बनाने के लिए गुजरात के मिल्क उत्पादन समूह वाले 5 लाख किसानों ने 2-2 रुपए दिए तब जाकर फिल्म बन पाई। इस फिल्म की रिलीज के बाद ये किसान ट्रकों में भरकर फिल्म देखने पहुंचे थे।
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