'शिकारा' की आलोचनाओं पर विधु विनोद चोपड़ा ने ओपन लेटर लिखकर दिया जवाब
विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म 'शिकारा' 7 फरवरी 2020 को रिलीज हुई थी। इस फिल्म को मिली जुली प्रतिक्रिया मिली थी।
मुंबई: फिल्मकार विधु विनोद चोपड़ा ने अपनी आगामी फिल्म 'शिकारा' को लेकर हो रही आलोचनाओं का एक खुले पत्र में जवाब दिया है। कश्मीरी मीडिया के विद्यार्थियों द्वारा उनके इस पत्र को लिखा गया है। पिछले महीने विद्यार्थियों ने उनकी यह फिल्म देखी थी। उन्होंने कहा था, "हालांकि फिल्म की कहानी ने बड़ी ही खूबसूरती के साथ इसके शीर्षक 'शिकारा' के साथ न्याय किया है, लेकिन इसका जो टैगलाइन है, 'द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ कश्मीरी पंडित', वह सही नहीं बैठ रहा है क्योंकि कोई भी दर्शक यही सोचेगा कि फिल्म कश्मीरी पंडितों द्वारा झेले गए मुश्किलों व उनकी पीड़ाओं की सही जानकारी देगी। लेकिन, इन्हें एक प्रेम कहानी की पृष्ठभूमि में दिखाया गया है, न कि इसकी सही-सही वास्तविकताओं पर प्रकाश डाला गया है, जिसके चलते यह कुछ हद तक धूमिल व अवास्तविक है।
विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए चोपड़ा ने लिखा, "प्रिय अरबीना और आसिफ, आपको व सभी कश्मीर वासियों को ईद मुबारक। मैंने कश्मीर ऑब्जर्वर में मेरी फिल्म शिकारा को लेकर आपकी समीक्षा पढ़ी। अपने विचारों को प्रस्तुत करने के लिए आपने जो दृष्टिकोण अपनाया है, वह मुझे अच्छा लगा। शिकारा अपनी मां को दी गई मेरी तरफ से एक श्रद्धांजलि है। यह मेरी मां की कहानी है।"
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उन्होंने कहा कि 30 साल पहले कश्मीरी पंडितों का वहां से पलायन 'हमारे इतिहास पर एक गहरा धब्बा है।' उन्होंने कहा, "यह एक बहुत ही संवेदनशील विषय है। जो कुछ भी हुआ, वह गलत था। लोगों को उनके घरों व उनके शहर से बाहर निकाल दिया गया। हां, बाहरी ताकतों का इसमें हाथ था, जिनके चलते यह दुर्भाग्यपूर्ण विभाजन हुआ, लेकिन यह मुद्दा अभी भी अनसुलझा है।"
उन्होंने फिल्म की रिलीज की तारीख में हुए बदलाव के पीछे के कारणों का भी जिक्र किया।
उन्होंने कहा, "शिकारा साल 2019 के बीच में ही बनकर तैयार हो गई थी। हमने शुरू में 2019 के अक्टूबर में इसे जारी करने का सोचा, लेकिन भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के निर्णय के चलते हमने इसकी रिलीज को टाल दिया। हमने कुछ महीनों तक के लिए इंतजार किया और फिर इसकी रिलीज के लिए 7 फरवरी 2020 की तिथि को निर्धारित किया।"
फिल्म के रिलीज होने के बाद वह दर्शकों की प्रतिक्रिया पाने के लिए बेहद उत्साहित थे।
उन्होंने कहा, "मैं फिल्म की पहली स्क्रीनिंग में किसी एक भीड़ भरे थिएटर में चला गया। तीन सौ लोगों ने खड़े होकर तालियां बजाई। अचानक एक महिला ने चिल्ला कर कहा कि फिल्म में उन्हें उनके दर्द की झलक नहीं मिली है। मुझ पर इस त्रासदी के व्यवसायीकरण का आरोप लगाया गया। उस महिला ने जो कुछ भी कहा, मैं उस बारे में कई दिनों तक सोचता रहा और मैंने महसूस किया कि वह फिल्म में और भी ज्यादा नफरत दिखाए जाना चाहती थीं। वह एक ऐसी फिल्म चाहती थीं, जिसमें मुसलमानों की छवि को बिगाड़कर दिखाया जाए, जिससे शत्रुता और खून-खराबा और बढ़े।"
फिल्मकार ने अंत में कहा, "अरबीना और आसिफ, आप भविष्य हैं। आप जिस तरह से अपनी सोच को आकार देंगे, वह एक प्रगतिशील और शांतिपूर्ण कश्मीर को बनाने में एक लंबा रास्ता तय करेगा। मैंने अपने घर को नफरत से नष्ट होते देखा है। ऐसा आप अपने साथ न होने दें। मैं चाहता हूं कि कश्मीर का भविष्य अपने अतीत से अलग हो। इंशाअल्लाह!"