इमपरफेक्ट लुक की राह पर आयुष्मान खुराना
बॉलीवुड में मुख्यधारा की फिल्मों में अब धीरे-धीरे बदलाव आ रहे हैं।
बॉलीवुड में मुख्यधारा की फिल्मों में अब धीरे-धीरे बदलाव आ रहे हैं। ऐसा अब जरूरी नहीं कि फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाने वाले किरदारों की कद-काठी बिल्कुल परफेक्ट हो बल्कि आजकल की फिल्मों में ज्यादातर खामियों और बढ़ती उम्र का ही बोलबाला है। इस बदलाव का श्रेय कहीं न कहीं अभिनेता आयुष्मान खुराना को है। उनका मानना है कि बॉलीवुड अब एक ऐसी जगह है जहां रंग, रूप और उम्र कोई मायने नहीं रखती है।
आयुष्मान ने आईएएनएस को बताया, "हम हमेशा से परफेक्ट हीरोज के आदि रह चुके हैं और एक आम आदमी के लिए ऐसा बनना मुश्किल है। एक साथ दस गुंडों के साथ लड़ना ना ही आसान है और ना ही व्यवहारिक। इसके साथ ही सुबह से शाम नौ-पांच की नौकरी करने वाले किसी इंसान के लिए या निम्न वर्गीय व्यक्ति के लिए, जिसे निरंतर अपने जीवन-यापन के लिए संघर्ष करना पड़ता है, इनके लिए सिक्स पैक एब्स बनाना कोई आम बात नहीं है।"
आयुष्मान ने आगे कहा, "आप एक ऐसे आम इंसान से सिक्स पैक एब्स की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। आम जनता में आत्मविश्वास की भावना को प्रभावित करना महत्वपूर्ण है नहीं तो इन अभिनेताओं को ऑन स्क्रीन देखने में उन्हें परेशानी होती है।" आयुष्मान के मुताबिक, "किसी न किसी को ये बदलाव लाना ही था।"
आयुष्मान अपनी आगामी फिल्म 'बाला' में एक ऐसे युवक का किरदार निभा रहे हैं, जो वक्त से पहले ही गंजेपन का शिकार हो जाता है। आयुष्मान का कहना है कि वह अपनी फिल्मों के माध्यम से 'आम आदमी' को कॉन्फिडेंस देना चाहते हैं। आयुष्मान ने कहा, "आम आदमी को आत्मविश्वासी बनाना महत्वपूर्ण है और यही करने की मैं आकांक्षा रखता हूं क्योंकि खामियां भी खूबसूरत हैं। कोई भी परफेक्ट नहीं है, आपमें खामियां हमेशा ही रहती हैं, चाहें वह आपके व्यक्तिगत जीवन में हो या आपकी बॉडी में या आम जिंदगी में।"
अभिनेत्री भूमि पेडनेकर 'बाला' में एक सांवली लड़की का किरदार निभा रही हैं, उन्होंने 'दम लगा के हईशा' में एक मोटी लड़की के किरदार को निभाया था जिसके लिए उन्हें अपना वजन 30 किलो तक बढ़ाना पड़ा था। हाल ही में आई अपनी फिल्म 'सांड की आंख' में भूमि भारत की सबसे उम्रदराज शार्पशूटर चंद्रो और प्रकाशी तोमर में से एक के किरदार को निभाते नजर आईं। भूमि अपने किरदारों संग हमेशा से ही एक्सपेरीमेंट करती रही हैं।
अभिनेत्री यामी गौतम का भी मानना है कि इंडस्ट्री में अब बदलाव आ रही है।
यामी ने आईएएनएस को बताया, "'विकी डोनर' उन चंद फिल्मों में से एक थी जिसने नए जमाने की फिल्मों में बदलाव लाने के मार्ग को प्रशस्त किया था। यह एक बहुत ही आकांक्षित पेशा और काम है। मुझे याद है कि हम आपमें उनकी तरह दिखने की ख्वाहिश जगाते थे जिन्हें आप पर्दे पर देखते हैं। इसका एक आकांक्षात्मक मूल्य है।"
यामी का ऐसा मानना है कि इमपरफेक्ट कैरेक्टर्स या किरदार लोगों के दिलों में अपनी जगह बना रहे हैं क्योंकि मुद्दों की चर्चा अब हमारी मुख्यधारा की फिल्मों में खुलकर हो रही है।