टीवी और सिनेमा में अब वॉर्निंग देकर भी नहीं कर सकते हैं शराब का प्रचार
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि शराब विनिर्माताओं द्वारा इस तरह के विज्ञापनों पर मोटी रकम खर्च की जाती है। वे छद्म तरीके से शराब के सेवन और बिक्री को बढ़ावा देते हैं।
प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार और उत्पाद शुल्क विभाग को टीवी, सिनेमा हॉल और किसी भी अखबार एवं पत्रिका आदि में शराब के परोक्ष विज्ञापन पर रोक लगाने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति अजित कुमार की पीठ ने स्ट्रगल एगेंस्ट पेन नाम की सोसाइटी के अध्यक्ष मनोज मिश्रा द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया।
अदालत ने उत्पाद शुल्क विभाग और पुलिस विभाग को इस तरह के किसी भी छद्म विज्ञापन पर रोक सुनिश्चित करने के लिए उचित कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया है।
इस याचिका में पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में प्रकाशित विभिन्न विज्ञापनों को अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया गया। याचिकाकर्ता की दलील थी कि यद्यपि ये विज्ञापन म्यूजिक सीडी या चश्मे के प्रचार के लिए किए गए, लेकिन इसे बहुत छोटे अक्षरों में लिखा गया और बड़ी मुश्किल ये दिखाई देते हैं।
हालांकि, शराब के ब्रांडों का लोगो इस तरह के विज्ञापनों में स्पष्ट दिखाई देता है। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि शराब विनिर्माताओं द्वारा इस तरह के विज्ञापनों पर मोटी रकम खर्च की जाती है। वे छद्म तरीके से शराब के सेवन और बिक्री को बढ़ावा देते हैं।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि ये विज्ञापन इस तरह से बनाए जाते हैं कि वास्तविक उत्पादों को होलोग्राम/मोनोग्राम के रूप में दिखाया जाता है जिसमें शराब शब्द या शराब के प्रकार का उल्लेख नहीं होता है और इस तरह से वे कानून के तहत दंड से बच जाते हैं।
इस याचिका में पक्षकार बनाई गई कुछ शराब कंपनियों ने इस दावे के साथ अपना बचाव किया कि शराब के अलावा, वे इस तरह के उत्पाद भी बनाती हैं और इस तरह के उत्पादों के विज्ञापन पर कानून में कोई रोक नहीं है।
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