ट्रेजिडी किंग दिलीप कुमार आज हो गए 95 साल के
भारतीय सिनेमा के ट्रेजिडी किंग दिलीप कुमार का आज जन्मदिन है। आज वह 95 साल के हो गए हैं। दिलीप साहब को हिंदी फ़िल्म जगत में वह मुक़ाम हासिल है जो हर कलाकार का एक सपना रहता है और सपना ही रह जाता है।
भारतीय सिनेमा के ट्रेजिडी किंग दिलीप कुमार का आज जन्मदिन है। आज वह 95 साल के हो गए हैं। दिलीप साहब को हिंदी फ़िल्म जगत में वह मुक़ाम हासिल है जो हर कलाकार का एक सपना रहता है और सपना ही रह जाता है। उम्र और बीमारियों की वजह से दिलीप कुमार इन दिनों सार्वजिनक जीवन में कम ही नज़र आते हैं लेकिन उनसे जुड़े क़िस्से और कहानियों आज भी पढ़ने-सुनने को मिलती हैं। (Bigg Boss 11 से बाहर हुईं सपना चौधरी की किस्मत चमकी, इस स्टार के साथ कर रहीं फिल्म )
दिलीप कुमार का जन्म पेशावर में हुआ था। भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के समय में ही उनके पिता मुंबई आ गए थे। दिलीप कुमार का असली नाम युसुफ खान है। दिलीप कुमार ने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत 'ज्वार भाटा' से की थी। दिलीप कुमार ने 'मेला', 'शहीद', 'अंदाज़', 'आन', 'देवदास', 'नया दौर', 'मधुमती', 'यहूदी', 'पैगाम', 'मुगल-ए-आजम', 'गंगा-जमना', 'लीडर' और 'राम और श्याम' जैसी फ़िल्मों में काम किया जिनमे उनके किरदार को लोग आज भी याद करते हैं।
दरअसल शुरु में दिलीप कुमार की छवि एक ट्रेजडी किंग की तरह बनी थी यानी फ़िल्म का ऐसा हीरो जिसकी जिंदगी में ग़म ही ग़म रहते हैं और जो अक़्सर अपनी अधूरी हसरतों के साथ ही इस दुनियां से बिदा हो जाता है। लोगों को उनका ये अंदाज़ इतना पसंद आया कि वह रातों रात सैकड़ों लोगों के दिलों पर राज करने लगे। देवदास ट्रेजडी किंग की एक बेहतरीन मिसाल है जिसकी आज भी नक़ल की जा रही है। दिलीप कुमार ने अपनी छवि को बदलने के लिए कॉमेडी फ़िल्में भी की जैसे गोपी, राम और श्याम, लीडर इत्यादि. इन किरदारों में भी वह छा गए।
दिलीप कुमार ने अपने फिल्मी करियर में सिर्फ 54 फिल्में ही की है लेकिन उनकी इन 54 फिल्मों ने हिंदी सिनेमा में अभिनय की कला को एक नई परिभाषा दी। 44 साल की उम्र में दिलीप कुमार ने सायरा बानो से विवाह किया। सायरा बानो दिलीप कुमार से 18 साल छोटी हैं। कहते हैं कि दूल्हा बने दिलीप कुमार की घोड़ी की लगाम पृथ्वीराज कपूर ने थामी थी और दाएं-बाएं राज कपूर तथा देव आनंद नाच रहे थे। बेहतर अभिनय के लिए दिलीप कुमार को 1991 में भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण की उपाधि से नवाज़ा गया था और साल 1995 में उन्हें दादा साहब फालके अवॉर्ड भी दिया गया था।