फिल्मकार तिग्मांशु धूलिया ने जताई सेंसर बोर्ड के पक्षपातपूर्ण रवैये पर आपत्ति
सेंसर बोर्ड के आदेशों से काफी परेशान है। लगभग हर फिल्म पर सीबीएफसी अपनी कैंची चला ही देता है। इसे लेकर आए दिन हस्तियां कोई न कोई बयान देती ही रहती हैं। अब फिल्मकार तिग्मांशु धूलिया ने कहा है कि उन्हें केंद्रीय फिल्म प्रमाणन समिति (सीबीएफसी) के...
मुंबई: फिल्मी इंडस्ट्री में इन दिनों हर कोई सेंसर बोर्ड के आदेशों से काफी परेशान है। लगभग हर फिल्म पर सीबीएफसी अपनी कैंची चला ही देता है। इसे लेकर आए दिन हस्तियां कोई न कोई बयान देती ही रहती हैं। अब फिल्मकार तिग्मांशु धूलिया ने कहा है कि उन्हें केंद्रीय फिल्म प्रमाणन समिति (सीबीएफसी) के दिशा-निर्देशों से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन उन्हें सीबीएफसी के पक्षपातपूर्व रवैये से परेशानी है। धूलिया ने बताया, "सीबीएफसी के दिशा-निर्देशों से मुझे कोई शिकायत नहीं है। एक फिल्म निर्माता के रूप में अगर मैं एक वयस्क फिल्म बनाता हूं तो मैं यू/ए प्रमाणपत्र नहीं मांगूंगा। हमें यह समझना होगा कि भारत एक जटिल देश है, जहां हम विभिन्न धार्मिक/सांस्कृतिक भावनाओं के साथ रहते हैं। इसके बावजूद, मुझे उसके पक्षपातपूर्ण रवैये से परेशानी है।"
उन्होंने कहा, "वह (सीबीएफसी) बड़े निर्माताओं, बड़े उद्योगों के लोगों को प्राथमिकता देते हैं, जो गलत है। मैं इसका समर्थन नहीं करता। दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि पत्रकार भी इसके बारे में बात नहीं करते।" धूलिया की अगली फिल्म 'राग देश' 28 जुलाई को रिलीज हो रही है, जिसकी कहानी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सुभाष चंद्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) के योगदान पर आधारित है। यह पूछे जाने पर कि क्या यह फिल्म युद्ध का समर्थन करती है और हिंसा किसी भी राजनीतिक उथल-पुथल का समाधान है, उन्होंने कहा, "हमें यह समझना होगा कि बोस (आईएनए नेता नेताजी सुभाष चंद्र बोस) ने बेहद संकटकालनी स्थिति में 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा' का नारा दिया था।"
उन्होंने कहा, "इस फिल्म के जरिए मैं किसी भी प्रकार के युद्ध की वकालत नहीं कर रहा हूं। यह ऐसा समय है जब हम अपनी समस्याओं के समाधान के लिए बातचीत कर सकते हैं। जब तक हम नहीं समझते कि ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी हासिल करने की प्रक्रिया में हमें हमारे लोगों का कितना खून बहाना पड़ा है, तब तक नई पीढ़ी हमारी स्वतंत्रता का मोल नहीं समझेगी।" अगर आपका उद्देश्य नए युग के दर्शकों तक पहुंचने का है, तो आपने फिल्म की बजाय वेब श्रृंखला का माध्यम क्यों नहीं चुना? (IIFA 2017: एक बार फिर दिखी सलमान और कैटरीना के बीच हॉट कैमेस्ट्री)
इस सवाल पर उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि सिनेमा अब भी (और अधिक) डिजिटल से अधिक शक्तिशाली माध्यम है, शायद पांच साल बाद चीजें बदल जाएं।" कई पटकथा लेखक छोटी-छोटी कहानियों के साथ आ रहे हैं। इस तरह के बदलाव का कितना स्वागत हो रहा है, इस पर धूलिया ने कहा, "अगर आप वैश्विक मंच पर ‘दंगल’ की सफलता की बात कर रहे हैं, तो मैं कहूंगा कि यह एक बड़ा संकेत है कि ऐसी फिल्में विदेशों में कारोबार कर रही हैं। लेकिन आपने महसूस किया हो तो हमारी हिंदी सिनेमा को गैर-भारतीय दर्शक अधिक नहीं देखते।" उन्होंने कहा, "अगर लोग हिंदी फिल्में देखते हैं तो वह केवल फिल्म के सितारों के लिए। विदेशों में लोग भारतीय फिल्में देखते हैं, क्योंकि वह शाहरुख खान और सलमान खान के प्रशंसक हैं, हिंदी सिनेमा के नहीं।"