सोनाक्षी सिन्हा: मेरे सगे-संबंधियों ने कभी भी मेरे साथ 'स्टार' जैसा बर्ताव नहीं किया
जल्द ही फिल्म कलंक में नजर आने वाली अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा का कहना है कि उनके परिवार और दोस्तों ने उन्हें हमेशा जमीन से जोड़े रखा और यही बात अभिनय के प्रति उनके जोश को बनाए रखती है।
जल्द ही फिल्म कलंक में नजर आने वाली अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा का कहना है कि उनके परिवार और दोस्तों ने उन्हें हमेशा जमीन से जोड़े रखा और यही बात अभिनय के प्रति उनके जोश को बनाए रखती है। सोनाक्षी से आईएएनएस ने पूछा कि वह कैसे सितारों वाले नखरों से अलग हमेशा मुस्कराती रहती हैं, तो उन्होंने कहा, "इसकी वजह शायद यह है कि मैं हमेशा वही करती हूं, जो मुझे पसंद है। मेरे लिए हर फिल्म नई होती है, जैसे वो मेरी पहली फिल्म हो। मैं अपने किरदार के बारे में जानने की कोशिश करती हूं, उसे जीती हूं, ताकि पर्दे पर वह बनावटी न लगे। मेरे पास रॉ एनर्जी है जिसका प्रयोग मैं खुद को किरदार में ढालने के लिए करती हूं।"
अभिनेत्री ने कहा, "व्यक्तिगत जीवन में मेरे माता-पिता, भाई मेरे सगे संबंधी, मेरे बचपन के फिल्म जगत से बाहर के दोस्त, कोई भी कभी भी मुझसे एक स्टार की तरह पेश नहीं आता। वे हमेशा मुझे जमीन से जोड़कर रखते हैं...वही सोना जिसे वे जानते हैं।"
प्रख्यात अभिनेता व राजनेता शत्रुघ्न सिन्हा की बेटी सोनाक्षी ने कहा, "मेरा मानना है कि अगर आपको सच्चाई से जुड़े रहना है तो जी हुजूरी करने वाले लोगों से दूर रहना चाहिए। जो मेरे अपने हैं, वे मुझे प्यार देने के साथ ही मेरी आलोचना भी करते हैं।"
इस साल सोनाक्षी की कई फिल्में रिलीज होने वाली हैं।
उन्होंने कहा, "मैं ये कहना चाहूंगी कि ये साल मुझे उत्साहित करने वाला है। कलंक मेरी इस साल की पहली फिल्म है, जिसके बाद मेरी और तीन फिल्में आने वाली हैं। हां, मेरी चार फिल्में रिलीज होंगी। सभी फिल्मों में मेरे किरदार एक दूसरे से काफी अलग हैं, यही वजह थी कि घंटों शूट के दौरान भी मुझे मजा आता था।"
मल्टी स्टारर फिल्म कलंक में सोनाक्षी महत्वपूर्ण किरदार निभा रही हैं। फिल्म में सोनाक्षी के अलावा आलिया भट्ट, वरुण धवन, आदित्य राय कपूर, माधुरी दीक्षित नेने और संजय दत्त भी हैं।
कलंक फिल्म 1940 के दशक की कहानी पर आधारित है। जब उनसे यह पूछा गया कि तब की महिलाओं में और आज के दौर की महिलाओं में वह क्या परिवर्तन देख रही हैं, तो सोनाक्षी ने कहा, "महिलाओं की बेहतरी के लिए समाज में कई बदलाव आए हैं और अभी भी बहुत से बदलाव की आवश्यकता है। वर्तमान दौर में जब हम महिला सशक्तिकरण की खुशी मनाते हैं और जब शहरों में उनकी भीड़ देखते हैं तो अच्छा लगता है। लेकिन, हम इससे भी इनकार नहीं कर सकते कि समाज के हर कोने में शायद परंपरावादी स्त्री द्वेष की वजह से कई महिलाएं आज भी अपने सपनों का बलिदान कर रही हैं।"
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